Big News: योगी सरकार के बुलडोजर एक्शन पर सुप्रीम कोर्ट की सख्त फटकार: अब सरकार को अपने खर्चे पर बनवाने होंगे ध्वस्त घर!

बुलडोजर एक्शन पर सुप्रीम कोर्ट ने सख्त फटकार लगाते हुए कहा कि अब सरकार को अपने खर्चे पर ध्वस्त मकान बनाने होंगे।

न्याय के नाम पर अन्याय अब नही चलेगा।

Big News: योगी सरकार के बुलडोजर एक्शन पर सुप्रीम कोर्ट की सख्त फटकार: अब सरकार को अपने खर्चे पर बनवाने होंगे ध्वस्त घर!

योगी सरकार के बुलडोजर एक्शन पर सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर जोरदार फटकार लगाई है। कोर्ट ने कहा कि अगर इस तरह से मकान गिराए गए हैं, तो सरकार को अपने खर्चे पर पुनर्निर्माण करवाना होगा। यह फैसला उत्तर प्रदेश में कानून के नाम पर की जा रही ध्वस्तिकरण की कार्यवाही पर गहरा सवाल खड़ा करता है।

यह पहली बार नहीं है जब यूपी सरकार को ऐसी कड़ी टिप्पणी सुननी पड़ी है। बार-बार बुलडोजर एक्शन को लेकर अदालतें सवाल उठा चुकी हैं, लेकिन सरकार अपनी मनमानी पर अड़ी रही। अब सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया है कि “बुलडोजर न्याय” किसी भी कीमत पर स्वीकार्य नहीं होगा।


क्या था मामला?

यह केस प्रयागराज में गिराए गए उन मकानों से जुड़ा है, जिन्हें यूपी सरकार ने माफिया अतीक अहमद से जोड़कर तोड़ दिया था। याचिकाकर्ताओं का कहना था कि बिना उचित कानूनी प्रक्रिया अपनाए, केवल कुछ घंटों के नोटिस के भीतर उनके घरों को मलबे में बदल दिया गया।

सुनवाई के दौरान जस्टिस अभय एस. ओका और जस्टिस एन. कोटेश्वर सिंह की पीठ ने सरकार से पूछा—
“आपने बिना प्रक्रिया अपनाए मकान गिरा दिए, अब क्यों न इन्हें फिर से बनाने का आदेश दिया जाए?”

कोर्ट की यह टिप्पणी सरकार के उस बुलडोजर मॉडल पर करारा तमाचा है, जो कानून और न्याय की परवाह किए बिना, अपनी सत्ता का प्रदर्शन करने के लिए गरीबों के घरों पर कहर बनकर टूट रहा है।


सुप्रीम कोर्ट की सख्त गाइडलाइंस, फिर भी क्यों नहीं रुका बुलडोजर?

बुलडोजर एक्शन पर सुप्रीम कोर्ट पहले भी गाइडलाइंस जारी कर चुका है, जिसमें कहा गया था कि—
✔️ मकान गिराने से पहले कम से कम 15 दिन का नोटिस देना अनिवार्य होगा।
✔️ हर विध्वंस की वीडियोग्राफी होगी और उसे रिकॉर्ड पर रखा जाएगा
✔️ बिना अदालत की मंजूरी के किसी का घर नहीं गिराया जा सकता
✔️ अगर कोई अधिकारी गैर-कानूनी तरीके से मकान गिराता है, तो उसे उसका पुनर्निर्माण कराना होगा

इसके बावजूद यूपी सरकार ने इन नियमों को ताक पर रखकर बुलडोजर चलाया। अब सवाल यह है कि जब कोर्ट पहले ही आदेश दे चुका था, तो फिर सरकार ने इन्हें क्यों नहीं माना?


बुलडोजर की जद में कौन?

अगर हम देखें कि ये बुलडोजर किन घरों पर चला, तो आंकड़े खुद सरकार की नीयत पर सवाल उठाते हैं।
🔴 90% से अधिक मामलों में बुलडोजर मुस्लिम घरों पर चला
🔴 प्रयागराज, मुरादाबाद, बरेली, अलीगढ़ जैसे मुस्लिम बहुल इलाकों में सबसे ज्यादा कार्रवाई हुई
🔴 राजनीतिक विरोधियों और गरीबों के घर निशाने पर रहे, जबकि रसूखदार बचते रहे

जब सरकार का बुलडोजर केवल एक समुदाय विशेष पर चले और दूसरी ओर बड़े अपराधी, उद्योगपति, और राजनीतिक रसूख वाले लोगों के अवैध निर्माणों पर कोई कार्रवाई न हो, तो सवाल उठना लाज़मी है—
बुलडोजर का इस्तेमाल सिर्फ कमजोरों को दबाने के लिए किया जा रहा है?


क्या सरकार अब भी सुधरेगी या कोर्ट को और कड़े कदम उठाने होंगे?

सुप्रीम कोर्ट ने अब साफ कर दिया है कि बुलडोजर एक्शन ऐसे ही नहीं चल सकता। अगली सुनवाई 21 मार्च को होगी, और इसमें सरकार को जवाब देना होगा कि—
क्या सरकार पुनर्निर्माण के लिए तैयार है?
क्या बिना प्रक्रिया अपनाए घरों को गिराने के लिए जिम्मेदार अधिकारियों पर कोई कार्रवाई होगी?
क्या अब भी यूपी सरकार अपनी मनमानी जारी रखेगी, या सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का पालन करेगी?


न्यायपालिका बनाम बुलडोजर सरकार: आगे क्या?

सुप्रीम कोर्ट के इस रुख के बाद यूपी सरकार के लिए अब यह आसान नहीं होगा कि वह “बुलडोजर” को ही न्याय बता सके। यह फैसला पूरे देश के लिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि अगर सरकारें इसी तरह बिना कानून की परवाह किए किसी का घर गिराने लगें, तो कल यह किसी के भी दरवाजे तक आ सकता है!

सवाल सिर्फ बुलडोजर पर नहीं, बल्कि लोकतंत्र और न्याय व्यवस्था की साख पर भी है। क्या हम एक ऐसे भारत में रह रहे हैं, जहां किसी का घर गिराने से पहले कानून की कोई परवाह नहीं की जाती? अगर ऐसा है, तो यह न्याय नहीं, बल्कि सत्ता का भय है।

अब देखना होगा कि 21 मार्च की सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट सरकार को क्या और कड़े निर्देश देता है। क्या सरकार सुधरेगी, या कोर्ट को और बड़ा फैसला सुनाना पड़ेगा?

आपकी राय?

क्या आपको लगता है कि बुलडोजर का यह मॉडल सिर्फ कमजोरों को निशाना बना रहा है? क्या सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला सरकार को जवाबदेह बनाएगा? कमेंट में अपनी राय दें

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