19 जून, 2025 को कुनमिंग, चीन में चीन, पाकिस्तान और बांग्लादेश के बीच पहली त्रिपक्षीय बैठक हुई, जो दक्षिण एशियाई भू-राजनीति में एक महत्वपूर्ण विकास है। यह बैठक व्यापार, निवेश, कृषि और डिजिटल अर्थव्यवस्था जैसे क्षेत्रों में क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ावा देने पर केंद्रित थी। लेकिन इस बैठक के पीछे की कहानी क्या है, और इससे भारत, अमेरिका, और वैश्विक राजनीति पर क्या असर पड़ रहा है? साथ ही, ईरान-इजरायल युद्ध और चीन-रूस की भूमिका भी इस कहानी का हिस्सा है। आइए, इन सवालों के जवाब तलाशते हैं।
चीन, पाकिस्तान और बांग्लादेश की त्रिपक्षीय बैठक
इस त्रिपक्षीय बैठक में चीनी उप विदेश मंत्री सुन वेइदोंग, बांग्लादेश के कार्यवाहक विदेश सचिव रुहुल आलम सिद्दीकी, और पाकिस्तान के अतिरिक्त विदेश सचिव इमरान अहमद सिद्दीकी ने व्यक्तिगत रूप से भाग लिया। पाकिस्तान की विदेश सचिव अमना बलोच वीडियो लिंक के माध्यम से जुड़ीं।
बैठक में तीनों देशों ने व्यापार, निवेश, कृषि और डिजिटल अर्थव्यवस्था में सहयोग बढ़ाने पर सहमति जताई। संयुक्त बयान में समुद्री मामले, जल संसाधन, जलवायु परिवर्तन, स्वास्थ्य, शिक्षा, युवा संलग्नता, संस्कृति और थिंक टैंक सहयोग जैसे क्षेत्रों में सहयोग पर भी जोर दिया गया।
तीनों देशों ने एक संयुक्त कार्य समूह बनाने का भी फैसला किया, जो बैठक में हुई समझौतों को लागू करने के लिए काम करेगा।
चीन, पाकिस्तान और बांग्लादेश की त्रिपक्षीय बैठक का भारत पर असर
भारत के लिए यह बैठक चिंता का विषय है, क्योंकि यह चीन के भारत के तत्काल पड़ोस में बढ़ते प्रभाव का संकेत देता है। चीन के पाकिस्तान के साथ मजबूत संबंध हैं, और अब बांग्लादेश के साथ भी संबंध मजबूत कर रहा है, जो भारत का पूर्वी पड़ोसी है। यह संभावित रूप से भारत की रणनीतिक घेराबंदी की ओर ले जा सकता है।
जानकार बताते है कि यदि रक्षा सहयोग गहरा होता है, तो भारत को कई मोर्चों पर दबाव का सामना करना पड़ सकता है। हाल के विकास, जैसे कि मई 2025 में भारत द्वारा बांग्लादेश से वस्त्र आयात पर रोक लगाना, और शेख हसीना सरकार के अगस्त 2024 में हटने के बाद तनावपूर्ण संबंध, इस जटिलता को और बढ़ा रहे हैं।
हाला कि भारत और बांग्लादेश के नजरिये से देखे तो भारत को बांग्लादेश के साथ अपने ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संबंधों को मजबूत करने की जरूरत है, खासकर आर्थिक परियोजनाओं पर ध्यान देकर और लंबित मुद्दों को हल करके। इसमे न केवल भारत का हित है बल्कि बांग्लादेश का भी इस मे हित है।
इस बैठक का फायदा और नुकसान!
- सबसे अधिक फायदा: चीन को, क्योंकि वह दक्षिण एशिया में अपना दबदबा बढ़ा रहा है और भारत को घेरने की रणनीति अपना रहा है।
- नुकसान: भारत को, क्योंकि इस बैठक से उसके पड़ोस में चीन का प्रभाव बढ़ेगा, जिससे उसकी सुरक्षा और कूटनीतिक चुनौतियां बढ़ेंगी।
चीन, पाकिस्तान और बांग्लादेश की त्रिपक्षीय बैठक का अमेरिका पर असर
अमेरिका भी चीन के इस कदम से चिंतित है। अमेरिका दक्षिण एशिया में चीन के बढ़ते प्रभाव को रोकना चाहता है। इसलिए, अमेरिका भारत के साथ अपनी दोस्ती को और मजबूत कर रहा है। लेकिन हाल ही में, 18 जून, 2025 को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने पाकिस्तान के सेनाध्यक्ष आसिम मुनीर को व्हाइट हाउस में लंच पर बुलाया, जो एक अप्रत्याशित कदम था। यह बैठक अमेरिका और पाकिस्तान के बीच संबंधों में सुधार का संकेत देती है, शायद चीन को संतुलित करने के लिए। लेकिन यह भारत के लिए एक नई चिंता भी पैदा कर सकता है, क्योंकि पाकिस्तान और अमेरिका के करीबी रिश्ते भारत की रणनीति को प्रभावित कर सकते हैं।
फायदा और नुकसान का विश्लेषण:
- सबसे अधिक फायदा: चीन को, क्योंकि उसकी रणनीति से अमेरिका को भी जवाब देना पड़ रहा है, जो उसके क्षेत्रीय प्रभाव को और मजबूत करता है।
- नुकसान: अमेरिका को, क्योंकि चीन की बढ़ती पकड़ से उसकी वैश्विक रणनीति को चुनौती मिल रही है, और उसे भारत और पाकिस्तान दोनों के साथ संतुलन बनाना होगा।
अमेरिकी राष्ट्रपति ने पाकिस्तान के सेनाध्यक्ष को दावत पर बुलाया: क्या मायने हैं?
18 जून, 2025 को व्हाइट हाउस में हुई इस बैठक ने कई सवाल खड़े कर दिए। ट्रंप का पाकिस्तान के सेनाध्यक्ष को लंच पर बुलाना एक असामान्य कदम था, जो यह दिखाता है कि अमेरिका मध्य पूर्व और दक्षिण एशिया में अपनी रणनीति को फिर से तैयार कर रहा है। शायद यह चीन को संतुलित करने की कोशिश है, या फिर पाकिस्तान को अपने पक्ष में रखने का प्रयास। लेकिन भारत के लिए यह चिंता का विषय है, क्योंकि इससे पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय मंच पर मजबूती मिल सकती है।
ईरान-इजरायल युद्ध और अमेरिका का हस्तक्षेप
22 जून, 2025 तक, ईरान और इजरायल के बीच संघर्ष जारी है। यह युद्ध अब नौवें दिन में है, और हालात और बिगड़ते जा रहे हैं। ईरान ने इजरायल पर मिसाइल हमले किए हैं, जो अमेरिका द्वारा ईरानी परमाणु स्थलों पर हमले का जवाब है। अमेरिका का इस युद्ध में कूदना मध्य पूर्व में तनाव को और बढ़ा रहा है, और इससे वैश्विक ऊर्जा आपूर्ति पर भी असर पड़ सकता है।
क्या ईरान का साथ देंगे चीन और रूस?
चीन और रूस दोनों ने ईरान का समर्थन किया है और इजरायल की कार्रवाई की निंदा की है। चीन ने संभावित मध्यस्थ के रूप में अपनी भूमिका की पेशकश की है, हालांकि यह संभावना कम है कि इजरायल चीन को मध्यस्थ के रूप में स्वीकार करेगा। रूस ने भी मध्यस्थता की पेशकश की है, लेकिन उसकी प्रभावशीलता संदिग्ध है। दोनों देशों का ईरान के साथ खड़ा होना वैश्विक राजनीति में एक नया समीकरण पैदा कर सकता है।
इस बैठक का असर।
चीन, पाकिस्तान और बांग्लादेश की त्रिपक्षीय बैठक दक्षिण एशिया में रणनीतिक संतुलन को बदलने की क्षमता रखती है, जिसका भारत और अमेरिका दोनों पर गहरा असर पड़ सकता है।
भारत को इस स्थिति का ध्यानपूर्वक मूल्यांकन करना होगा और तदनुसार अपनी विदेश नीति को समायोजित करना होगा, जबकि अमेरिका भी इस क्षेत्र में अपने हितों को बनाए रखने के लिए कदम उठा रहा है। साथ ही, ईरान-इजरायल संघर्ष में चीन और रूस की भूमिका वैश्विक राजनीति पर असर डाल सकती है। इन विकासों को ध्यान से देखना होगा, क्योंकि ये भविष्य में क्षेत्रीय और वैश्विक संतुलन को प्रभावित करेंगे।