कर्ज़ की चक्की में पिसता भारत: 03 ने किया सुसाइड।

देश की बड़ी आबादी कर्ज़ की चक्की में पिसती हुई दिखाई दे रही है। चौथी अर्थव्यवस्था का दम भरने वाले देश में आए दिन लोग कर रहे सुसाइड! असल सवाल, जिम्मेदार कौन?

लखनऊ, 1 जुलाई 2025: 48 वर्षीय कपड़ा व्यापारी शोभित रस्तोगी ने पत्नी शुचिता (45) और बेटी ख्याति (16) के साथ जहर खाकर आत्महत्या कर ली। सुसाइड नोट में लिखा था:

“40 लाख के बैंक लोन का बोझ नहीं उठा पा रहे थे… जान देने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा था।”

कर्ज़ की चक्की लील लिया परिवार: सिस्टम की नाकामी पर सवाल

लखनऊ के चौक इलाके में एक दिल दहला देने वाली घटना ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया। कपड़ा कारोबारी शोभित रस्तोगी (48), उनकी पत्नी शुचिता (45) और 16 साल की बेटी ख्याति ने जहर खाकर सामूहिक आत्महत्या कर ली।

सोमवार सुबह अशरफाबाद के फ्लैट में तीनों के शव मिले, मुंह से झाग निकल रहा था। पुलिस को मौके से एक सुसाइड नोट मिला, जिसमें लिखा था, “हम कर्ज से परेशान हैं। बैंक से लिया लोन चुका नहीं पा रहे। लोन बढ़ता जा रहा है। हमारे पास जान देने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा।”

यह त्रासदी सिर्फ एक परिवार की कहानी नहीं, बल्कि उस सिस्टम की क्रूरता का सबूत है, जो कर्ज के बोझ तले मासूम जिंदगियों को कुचल रहा है।

शोभित की बेटी ख्याति ने मरने से पहले अपनी बड़ी मां तृप्ति को फोन कर कहा, “मम्मी-पापा की तबीयत ठीक नहीं, जल्दी आ जाइए।” लेकिन जब तक पुलिस और परिजन फ्लैट में पहुंचे, तीनों ने दम तोड़ दिया था।

शोभित ने एक दिन पहले अपने भाई शेखर को घर की चाबी सौंपी थी, शायद यह उनका आखिरी संदेश था कि अब वे इस दुनिया को अलविदा कहने जा रहे हैं।

पड़ोसियों और रिश्तेदारों का कहना है कि शोभित हमेशा हंसमुख और सामाजिक थे, फिर आखिर क्या हुआ कि एक खुशहाल परिवार को मौत को गले लगाना पड़ा? जवाब है—हमारा लालची और संवेदनहीन सिस्टम।

कर्ज़ की चक्की:सिस्टम की साजिश या नाकामी?

शोभित रस्तोगी राजाजीपुरम में ‘जुगल फैशन पॉइंट‘ नाम से कपड़े की दुकान चलाते थे। पड़ोसियों के मुताबिक, उन पर 40-45 लाख रुपये का कर्ज था, और बैंक कर्मचारी बार-बार उनके घर वसूली के लिए दबाव डालने आते थे।

यह कोई इकलौता मामला नहीं है। कुछ महीने पहले कपूरथला, पंचकूला में प्रवीण मित्तल और उनके परिवार के सात लोगों ने भी कर्ज के बोझ तले जहर खाकर आत्महत्या कर ली थी। प्रवीण ने सुसाइड नोट में लिखा, “हम कर्ज से परेशान हैं। किसी ने मदद नहीं की।” क्या यह संयोग है कि देश भर में कर्ज के चलते परिवार-दर-परिवार अपनी जिंदगी खत्म कर रहे हैं?

बैंकों और वित्तीय संस्थानों की लूटतंत्र नीतियां छोटे कारोबारियों और मध्यमवर्गीय परिवारों को निगल रही हैं। आसान लोन के नाम पर लोगों को जाल में फंसाया जाता है, लेकिन जब चुकाने की बारी आती है, तो ब्याज की दरें और रिकवरी एजेंटों की प्रताड़ना जिंदगी को नरक बना देती हैं।

शोभित जैसे कारोबारी, जो समाज का हिस्सा थे, मोहल्ले के कार्यों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते थे, आखिर क्यों इस कदर टूट गए? सवाल यह है कि क्या सरकार और बैंकिंग सिस्टम की कोई जिम्मेदारी नहीं बनती? क्या यह सिस्टम आम आदमी को बचाने के लिए नहीं, बल्कि उसे दबाने और खत्म करने के लिए बना है?

सिस्टम की चुप्पी: आत्महत्याएं बढ़ रही हैं, जवाब कौन देगा?

लखनऊ में यह पहला मामला नहीं है। जानकीपुरम में 2022 में नलकूप विभाग के इंजीनियर शैलेंद्र कुमार और उनके परिवार ने 60 लाख के कर्ज के चलते जहर खा लिया। मड़ियांव और ठाकुरगंज में भी सूदखोरों और बैंक रिकवरी एजेंटों के दबाव में कई परिवारों ने आत्महत्या की।

कानपुर में विश्वविद्यालय के कर्मचारी राकेश कुमार गौड़ ने 20 लाख के कर्ज और सूदखोरों की प्रताड़ना के चलते फांसी लगा ली। ये घटनाएं सिर्फ आंकड़े नहीं, बल्कि उस सिस्टम की नाकामी का सबूत हैं, जो छोटे कारोबारियों और मध्यमवर्ग को कर्ज के जाल में फंसाकर उनकी जिंदगी छीन रहा है।

आर्थिक तंगी और कर्ज का दबाव अब देश में महामारी बन चुका है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आंकड़ों के मुताबिक, भारत में हर साल हजारों लोग आर्थिक तनाव और कर्ज के कारण आत्महत्या कर रहे हैं। फिर भी सरकार और वित्तीय संस्थान चुप्पी साधे हुए हैं।

क्या यह सिस्टम जानबूझकर छोटे कारोबारियों को खत्म करना चाहता है? क्या यह पूंजीवादी ताकतों का खेल है, जहां आम आदमी की जिंदगी की कीमत कुछ लाख रुपये के लोन से तय होती है?

यह घटना कोई अपवाद नहीं, सिस्टम की सुनियोजित हत्या है! जिम्मेदार कौन? आइए टुकड़ों में बाँटकर देखते हैं:

🔍 1. सीधे जिम्मेदार: बैंकों का शिकारी चेहरा

  • ब्याज़ का गणित: बचत खातों पर 3.5% ब्याज देकर जमाकर्ताओं का पैसा जुटाना, फिर उसी पैसे को 14-18% ब्याज + प्रोसेसिंग फीस पर ऋण देना ।
  • छिपे शुल्क: प्रीपेमेंट पेनाल्टी, फॉरक्लोजर चार्ज, चेक बाउंस फीस जैसे 20+ हिडेन कॉस्ट!
  • रीकवरी का आतंक: शोभित के पड़ोसी बताते हैं— “हफ्ते में तीन बार बैंक एजेंट तगादे के लिए आते थे।”

सवाल: क्या RBI और सरकार ने जानबूझकर बैंकों को “कर्ज़ शार्क” बनने की छूट दी है?

🏛️ 2. सरकारी विफलताएँ: योजनाओं का ढोंग और वास्तविकता

  • MSME पैकेज का झूठ: शोभित की दुकान “जुगल फैशन पॉइंट” बंद हुई, लेकिन आत्मनिर्भर पैकेज उसे क्यों नहीं बचा सका?
  • सहकारी बैंक घोटाले: छत्तीसगढ़ के अंबिकापुर में सहकारी बैंक ने किसानों की फसल बीमा राशि डकार ली! 100 करोड़ का घोटाला, पर एक भी मंत्री जेल में नहीं ।
  • सी-मार्ट बनाम शराब दुकान: महिला स्वावलंबन के प्रतीक “सी-मार्ट” को बंद कर उसी जगह प्रीमियम वाइन शॉप खोली गई— सरकार की प्राथमिकताओं का सनसनीखेज खुलासा!

“भारत सरकार खुद ही अपनी पीठ थपथपाते हुए कहती है— ‘हम दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था हैं!'”
अरे! खाक की चौथी अर्थव्यवस्था है जो:

  • 80 करोड़ लोगों को मुफ्त राशन पर जीवित रखती है,
  • MSME को बचाने में फेल होती है,
  • भारी टैक्स वसूलकर भी सामाजिक सुरक्षा नहीं दे पाती!

📊 3. समाज का रवैया: “खुशदिल इंसान” का दिखावा क्यों?

  • पड़ोसी का बयान: “शोभित तो हमेशा हँसते-बोलते थे!”
  • भाभी की हैरानी: “बुधवार को शुचिता ने भीमशाह दर्शन की बात की थी।”
    सच्चाई: कर्ज़ग्रस्त लोग मुस्कुराते इसलिए हैं क्योंकि रोने से सिस्टम को फर्क नहीं पड़ता!

⚖️ 4. कानून-प्रशासन की भूमिका: गुनहगारों को बचाना

  • पुलिस की भूमिका: लखनऊ में ही 2024 में कारोबारी मोहित पांडेय को पुलिस ने 600 रुपये के झगड़े में पीट-पीटकर मार डाला
  • ऋण हत्या: जून 2025 में उमाशंकर की हत्या सिर्फ इसलिए हुई क्योंकि वह 60 लाख वापस नहीं कर पाया!

💔 5. पीड़ितों का सिलसिला: पंचकूला से लखनऊ तक

  • प्रवीण मित्तल (पंचकूला): परिवार के 7 सदस्यों के साथ आत्महत्याएँ। सुसाइड नोट— “15 करोड़ का कर्ज़, कोई मदद नहीं की!”
  • शैलेंद्र कुमार (लखनऊ, 2022): 60 लाख के कर्ज़ में परिवार समेत जहर खाया।
    क्या ये संयोग है? नहीं! ये सिस्टम का सुनियोजित नरसंहार है।

जिम्मेदार कौन? हर कोई!

  1. बैंक: शिकारी ऋण नीतियों के लिए।
  2. सरकार: MSME को बचाने में विफल, सहकारी बैंक घोटालों पर चुप्पी ।
  3. प्रशासन: रिकवरी एजेंटों के उत्पीड़न पर मौन।
  4. समाज: “खुशदिल इंसान” का ढोंग करने वाला पड़ोसी!

“ख्याति के 7 जुलाई के एग्जाम थे… आज वह एक लाश है। क्या सिस्टम इस बच्ची की आँखों में झाँक सकता है?”

नोट: जब तक बैंकिंग नीतियों में मानवीयता नहीं आएगी, अगला शोभित आपके शहर में हो सकता है! सिस्टम से पूछो— “कब तक चलेगा यह खूनी खेल?”

Avadhesh Yadav
Avadhesh Yadav
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