ना ‘लव’ ना ‘वोट’, अब ‘शरबत जिहाद’ के बाद पतंजलि पर वित्तीय ‘स्ट्राइक’! सरकार ने मांगा 2 महीने में जवाब

नई दिल्ली (30 मई, 2025): योग गुरु बाबा रामदेव और उनके विशाल पतंजलि साम्राज्य पर एक बार फिर संकट के बादल मंडरा रहे हैं। स्वदेशी और “शुद्धता” के नाम पर खड़े हुए इस व्यापारिक किले की दीवारों में अब वित्तीय अनियमितताओं और कॉर्पोरेट गवर्नेंस के उल्लंघन की दरारें दिखने लगी हैं।

ब्लूमबर्ग की हालिया रिपोर्ट के अनुसार, केंद्र सरकार ने पतंजलि आयुर्वेद को पैसों के लेन-देन में गंभीर गड़बड़ियों के आरोप में नोटिस जारी किया है। कॉर्पोरेट अफेयर्स मंत्रालय ने कंपनी को दो महीने के भीतर इस पर स्पष्टीकरण देने को कहा है, अन्यथा कड़ी कार्रवाई की चेतावनी दी है। यह नोटिस ऐसे समय में आया है जब बाबा रामदेव पहले से ही अपने विवादास्पद “शरबत जिहाद” वाले बयान को लेकर कानूनी और सामाजिक आलोचना झेल रहे हैं।

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वित्तीय ‘आसन’ में गड़बड़ी? जांच के घेरे में पतंजलि

रिपोर्ट के मुताबिक, सरकारी जांच एजेंसियों को पतंजलि के कई वित्तीय ट्रांजैक्शंस संदिग्ध लगे हैं। हालांकि जांच अभी शुरुआती चरण में है और कथित गड़बड़ी की रकम का खुलासा नहीं हुआ है, लेकिन आशंका जताई जा रही है कि यह मामला कॉर्पोरेट गवर्नेंस नियमों के उल्लंघन और फंड के संभावित डायवर्जन से जुड़ा हो सकता है। क्या “स्वदेशी” और “पारदर्शिता” का दावा करने वाली कंपनी अपने ही वित्तीय सिद्धांतों का पालन करने में विफल रही है?

यह सवाल अब जांच एजेंसियों के साथ-साथ देश की जनता के मन में भी कौंध रहा है। जिस तेजी से पतंजलि ने बाजार में अपना साम्राज्य फैलाया, क्या उसी तेजी से उसके वित्तीय बहीखातों में भी “सफाई” रखी गई, यह देखना बाकी है।

“शरबत जिहाद”: जब राष्ट्रवाद का शरबत कड़वा हो गया

वित्तीय नोटिस की यह खबर पतंजलि के लिए दोहरी मार जैसी है। अभी कुछ ही हफ्ते पहले, 3 अप्रैल को, बाबा रामदेव ने पतंजलि के नए शरबत की लॉन्चिंग के दौरान एक ऐसा बयान दिया जिसने पूरे देश में बवाल खड़ा कर दिया।

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उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘X’ पर एक वीडियो में कहा कि “एक कंपनी (अप्रत्यक्ष रूप से रूह अफजा बनाने वाली हमदर्द की ओर इशारा करते हुए) शरबत बनाती है और उससे मिले पैसे से मदरसे और मस्जिदें बनवाती है।” इसे उन्होंने “शरबत जिहाद” की संज्ञा दी और कहा कि जैसे “लव जिहाद” और “वोट जिहाद” चल रहा है, वैसे ही यह भी है। उन्होंने दावा किया कि पतंजलि का शरबत पीने से गुरुकुल और आचार्य कुलम बनेंगे।

इस बयान पर हमदर्द कंपनी ने दिल्ली हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी ने दलील दी कि यह धर्म के नाम पर सीधा हमला है और समाज को बांटने वाली “हेट स्पीच” की तरह है। दिल्ली हाईकोर्ट ने भी रामदेव के वीडियो पर गहरी नाराजगी जताते हुए जस्टिस अमित बंसल की बेंच ने कहा कि यह बयान “माफी लायक नहीं है” और इसने “कोर्ट की अंतरात्मा को झकझोर दिया है।” कोर्ट की फटकार के बाद पतंजलि ने ऐसे सभी वीडियो हटाने और एफिडेविट दाखिल करने का आदेश दिया।

लेकिन बाबा रामदेव शायद पीछे हटने वालों में से नहीं हैं। 12 अप्रैल को एक और वीडियो में उन्होंने कहा, “मैंने एक वीडियो डाला, उससे सबको मिर्ची लग गई… अरे मैंने क्या छोड़ा, ये तो है ही। लव जिहाद, लैंड जिहाद, वोट जिहाद, बहुत तरह के जिहाद चलाते हैं ये लोग।” उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि वह उन्हें आतंकवादी नहीं कह रहे, लेकिन “उनकी इस्लाम के प्रति निष्ठा है।”

सवाल उठता है कि क्या एक योग गुरु और एक बड़े व्यापारिक समूह के प्रमुख को ऐसे बयान देने शोभा देते हैं जो समाज में विभाजन पैदा करें? क्या यह अपने उत्पाद को बेचने के लिए अन्य समुदायों को निशाना बनाने की सोची-समझी रणनीति है?

विवादों का पुराना नाता: सुप्रीम कोर्ट की फटकार से माफीनामे तक

पतंजलि और विवादों का चोली-दामन का साथ रहा है।

  • अगस्त 2022: इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA) ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर आरोप लगाया कि पतंजलि कोविड और अन्य गंभीर बीमारियों के इलाज के झूठे और भ्रामक दावे कर रही है, जिससे आधुनिक चिकित्सा प्रणाली की अवमानना हो रही है।
  • नवंबर 2023: सुप्रीम कोर्ट ने पतंजलि को भ्रामक विज्ञापनों पर तुरंत रोक लगाने का आदेश दिया। लेकिन आदेश के बावजूद कंपनी ने प्रचार जारी रखा, मानो अदालत के निर्देशों का कोई मोल ही न हो।
  • फरवरी-अप्रैल 2024: अदालत की अवमानना पर सुप्रीम कोर्ट ने पतंजलि को फिर कड़ी फटकार लगाई और बाबा रामदेव तथा आचार्य बालकृष्ण को व्यक्तिगत रूप से हाजिर होने का आदेश दिया। कोर्ट ने यहाँ तक कहा कि क्यों न उन्हें सजा दी जाए।
  • 2025 की शुरुआत: अंततः, बाबा रामदेव और आचार्य बालकृष्ण ने सुप्रीम कोर्ट में “बिना शर्त माफीनामा” दाखिल किया, जिसके बाद उस विशिष्ट अवमानना मामले को बंद किया गया।

लेकिन यह पैटर्न क्या दर्शाता है? क्या यह एक ऐसी कार्यशैली का हिस्सा है जहां पहले भ्रामक दावे किए जाते हैं, नियमों की अनदेखी की जाती है, और जब कानूनी शिकंजा कसता है तो माफी मांगकर बच निकलने का प्रयास किया जाता है? और अब, यह वित्तीय अनियमितताओं का नया नोटिस!

सरकार की भूमिका: निगरानी या नरमी?

यह देखना महत्वपूर्ण है कि सरकार इस नए मामले में कितनी गंभीरता और तेजी से कार्रवाई करती है। पतंजलि ने “स्वदेशी” और “राष्ट्रवाद” के सहारे एक विशाल उपभोक्ता आधार बनाया है। क्या यही कारण है कि अक्सर उस पर नियामक संस्थाओं की पकड़ ढीली पड़ जाती है? क्या कॉर्पोरेट गवर्नेंस के नियम सभी के लिए समान नहीं होने चाहिए, चाहे कंपनी का नाम कितना भी बड़ा या “पवित्र” क्यों न हो?

जब दावे और हकीकत का हो टकराव

पतंजलि का यह ताजा प्रकरण कई गंभीर सवाल खड़े करता है – कॉर्पोरेट नैतिकता पर, धार्मिक भावनाओं के इस्तेमाल पर, नियामक संस्थाओं की भूमिका पर, और उन सार्वजनिक हस्तियों की जवाबदेही पर जो अपने प्रभाव का इस्तेमाल समाज को जोड़ने के बजाय बांटने के लिए करते प्रतीत होते हैं।

“शरबत जिहाद” जैसे बयान जहां सामाजिक सौहार्द को चोट पहुंचाते हैं, वहीं वित्तीय अनियमितताओं के आरोप कंपनी की साख पर बट्टा लगाते हैं। यह देखना होगा कि पतंजलि इन नए आरोपों का क्या जवाब देती है और जांच एजेंसियां कितनी निष्पक्षता से अपना काम करती हैं। लेकिन एक बात तो तय है – जब दावे और हकीकत के बीच की खाई बढ़ती है, तो विश्वास की नींव दरकने लगती है, चाहे वह योग गुरु का आभामंडल हो या किसी “स्वदेशी” साम्राज्य का तिलिस्म। आम आदमी अब केवल लच्छेदार बातों और भावनात्मक अपीलों से परे जाकर ठोस जवाबदेही चाहता है।

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