जर्जर छत, टूटी दीवारें, और मासूमों की जिंदगी दांव पर!
कानपुर देहात, यूपी 29 जुलाई: कानपुर देहात के चिराना गांव में 1987 में बना एक प्राथमिक स्कूल आज खंडहर बन चुका है, फिर भी 172 बच्चे हर दिन अपनी जान जोखिम में डालकर पढ़ने को मजबूर हैं।
यूपी स्कूलों की बदहाली उत्तर प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था का कड़वा सच है। सरकारी स्कूलों की जर्जर हालत अब बच्चों के लिए खतरा बन रही है। आम आदमी पार्टी (AAP) ने इस मुद्दे को लेकर योगी आदित्यनाथ सरकार पर तीखा हमला बोला है। पार्टी ने सोशल मीडिया पर लिखा, “किसके भरोसे छोड़े जाएं ये मासूम? मौत के मुहाने पर स्कूल!” यह सवाल न सिर्फ चिराना गांव के स्कूल की बदहाली को उजागर करता है, बल्कि पूरे यूपी में सरकारी स्कूलों की जर्जर स्थिति पर सवाल उठाता है। इस आर्टिकल में हम इस स्कूल की हकीकत, बच्चों पर मंडराते खतरे और सरकार की लापरवाही को गहराई से समझेंगे।
चिराना गांव का स्कूल: विद्या का मंदिर या खतरे का गलियारा?
कानपुर देहात के सरवन खेड़ा ब्लॉक में स्थित चिराना गांव का प्राथमिक स्कूल 1987 में बना था। उस समय यह स्कूल गांव के बच्चों के लिए शिक्षा की रोशनी लेकर आया था, लेकिन आज यह खंडहर में तब्दील हो चुका है। छत से प्लास्टर गिर रहा है, दीवारों में गहरी दरारें हैं, और बारिश में पानी टपकने से फर्श गीला रहता है। स्थानीय लोग बताते हैं कि छत किसी भी वक्त ढह सकती है, फिर भी 172 बच्चे रोज इस जर्जर इमारत में पढ़ने आते हैं।
स्थानीय लोगों का दर्द:
चिराना गांव के निवासी रामसेवक यादव ने बताया, “हमारे पास दूसरा कोई स्कूल नहीं है। अगला स्कूल 3 किलोमीटर दूर है, जहां छोटे बच्चे पैदल नहीं जा सकते। मजबूरी में बच्चों को यहीं भेजना पड़ता है, लेकिन हर दिन डर सताता है।” कक्षा 5 की छात्रा राधा ने मासूमियत से कहा, “बारिश में मैम हमें बाहर बैठने को कहती हैं, क्योंकि छत से पानी टपकता है।”
शिक्षकों की अनसुनी पुकार
स्कूल के शिक्षकों ने कई बार जिला प्रशासन और बेसिक शिक्षा विभाग को पत्र लिखकर स्कूल की खस्ता हालत की शिकायत की है। एक शिक्षक ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, “हमने बार-बार बताया कि इमारत खतरनाक है, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। अगर कोई हादसा हो गया, तो जिम्मेदारी कौन लेगा?”
हाल ही में राजस्थान के एक स्कूल में छत गिरने से मासूम बच्चों की जान चली गई थी। इस हादसे ने पूरे देश को झकझोरा, लेकिन यूपी सरकार पर इसका कोई असर नहीं दिखता। चिराना गांव का यह स्कूल उसी तरह के हादसे का इंतजार करता नजर आ रहा है।
AAP का ‘स्कूल बचाओ अभियान’: योगी सरकार पर तीखे सवाल
आम आदमी पार्टी ने यूपी स्कूलों की बदहाली को लेकर ‘स्कूल बचाओ अभियान’ शुरू किया है। पार्टी के वरिष्ठ नेता और राज्यसभा सांसद संजय सिंह ने इस मुद्दे को जोर-शोर से उठाया है। उन्होंने X पर लिखा, “योगी सरकार ने 27,000 स्कूल बंद कर दिए और अब 27,000 और बंद करने की तैयारी है। दूसरी ओर, शराब के ठेके खुल रहे हैं। क्या यही है डबल इंजन सरकार की प्राथमिकता?”
AAP ने चिराना गांव के स्कूल को ‘मौत का गलियारा’ करार देते हुए योगी सरकार से पूछा है, “क्या मासूमों की जान से ज्यादा चुनावी प्रचार जरूरी है?” पार्टी का कहना है कि शिक्षा का अधिकार (RTE) कानून के तहत हर बच्चे को 1 किलोमीटर के दायरे में स्कूल मिलना चाहिए, लेकिन यूपी में स्कूलों का विलय और बंदी बच्चों को शिक्षा से वंचित कर रही है।
यूपी स्कूलों की बदहाली पर संजय सिंह का तंज: पाठशाला या मधुशाला?
संजय सिंह ने यूपी स्कूलों की बदहाली पर आंकड़े पेश करते हुए कहा कि यूपी में पिछले 10 साल में 25,000 सरकारी स्कूल बंद हो चुके हैं, जबकि 27,308 शराब के ठेके खोले गए हैं। उन्होंने कहा, “यह सरकार गरीबों, दलितों और वंचितों के बच्चों को शिक्षा से दूर कर रही है। बाबा साहब अंबेडकर ने कहा था कि शिक्षा शेरनी का दूध है, लेकिन योगी सरकार इसे कुचल रही है।”
योगी सरकार का यूपी स्कूलों की बदहाली पर दावा और हकीकत
योगी सरकार का दावा है कि स्कूलों का विलय ‘शिक्षा की गुणवत्ता’ सुधारने के लिए किया जा रहा है। सरकार का कहना है कि कम छात्रों वाले स्कूलों को बड़े स्कूलों में मर्ज करने से संसाधनों का बेहतर उपयोग होगा। लेकिन हकीकत में, यह नीति ग्रामीण क्षेत्रों में बच्चों को स्कूल से दूर कर रही है। चिराना गांव जैसे स्कूलों की जर्जर हालत पर सरकार की ओर से कोई ठोस जवाब नहीं आया है।
आंकड़ों की सच्चाई:
- यूपी में 10,827 प्राथमिक स्कूलों का विलय हो चुका है।
- देशभर में 90,000 सरकारी स्कूल बंद हुए, जिनमें से 25,000 अकेले यूपी में हैं।
- यूपी में शिक्षकों के हजारों पद खाली हैं, जिससे शिक्षा व्यवस्था और कमजोर हो रही है।
ग्रामीण बच्चों का भविष्य दांव पर
चिराना गांव का यह स्कूल यूपी स्कूलों की बदहाली का सिर्फ एक नमूना है। प्रदेश के तमाम ग्रामीण इलाकों में स्कूलों की हालत ऐसी ही है। जर्जर दीवारें, टूटी छतें, और बुनियादी सुविधाओं का अभाव। कई स्कूलों में बिजली, पानी, शौचालय तक नहीं हैं। AAP का कहना है कि यह सिर्फ स्कूल बंद करने की साजिश नहीं, बल्कि गरीब और वंचित बच्चों के भविष्य को छीनने की कोशिश है।
स्थानीय लोगों की मांग:
- चिराना गांव के स्कूल का तुरंत जीर्णोद्धार।
- शिक्षकों की नियुक्ति और बुनियादी सुविधाओं की व्यवस्था।
- स्कूलों के विलय पर रोक और नए स्कूल खोलने की मांग।
शिक्षा का अधिकार: कानून या खोखला वादा?
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21A और शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 के तहत 6 से 14 साल के हर बच्चे को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का हक है। लेकिन यूपी में स्कूलों की बदहाली और विलय की नीति इस अधिकार को कमजोर कर रही है। AAP नेता संजय सिंह ने कहा, “शिक्षा का मंदिर होना चाहिए, न कि मौत का गलियारा। योगी सरकार को जवाब देना होगा कि वह बच्चों की जिंदगी के साथ खिलवाड़ क्यों कर रही है?”
समाधान के रास्ते
चिराना गांव जैसे स्कूलों की स्थिति सुधारने के लिए कुछ ठोस कदम उठाए जा सकते हैं:
- स्कूलों का जीर्णोद्धार: जर्जर स्कूलों की मरम्मत के लिए तुरंत फंड जारी करना।
- शिक्षकों की भर्ती: यूपी में खाली पड़े हजारों शिक्षक पदों को भरना।
- RTE का पालन: हर 1 किलोमीटर के दायरे में स्कूल सुनिश्चित करना।
- जागरूकता अभियान: ग्रामीण क्षेत्रों में अभिभावकों और बच्चों को शिक्षा के अधिकार के बारे में जागरूक करना।
- निगरानी तंत्र: स्कूलों की स्थिति पर नजर रखने के लिए स्वतंत्र कमेटी का गठन।
सोशल मीडिया पर लोगों का गुस्सा
X पर इस मुद्दे को लेकर यूजर्स में गुस्सा और चिंता साफ दिख रही है। @AamAadmiParty ने लिखा, “शिक्षा का अधिकार कानून कहता है कि स्कूल 1 किलोमीटर के दायरे में होना चाहिए, लेकिन योगी सरकार स्कूल बंद कर रही है। अगर मासूम बच्चों के साथ हादसा हुआ, तो जिम्मेदार कौन होगा?” एक अन्य यूजर @VikasYadavUP ने लिखा, “यूपी सरकार की इस नीति से बच्चे स्कूल नहीं जा पा रहे। यह शिक्षा का नहीं, भविष्य का अपमान है।”
यूपी को चाहिए शिक्षा, मधुशाला नहीं
चिराना गांव का यह जर्जर स्कूल यूपी स्कूलों की बदहाली का दर्दनाक चेहरा है। योगी सरकार की प्राथमिकताएं सवालों के घेरे में हैं। एक तरफ शराब के ठेके खुल रहे हैं, दूसरी तरफ स्कूल बंद हो रहे हैं। AAP का ‘स्कूल बचाओ अभियान’ इस मुद्दे को सड़क से लेकर सदन तक ले जा रहा है। लेकिन सवाल यह है कि क्या सरकार अब भी चुप रहेगी?
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