यूपी बन रहा शराब उद्योग का हब!
बन रहा शराब उद्योग का हब!
योगी आदित्यनाथ की सरकार में उत्तर प्रदेश शराब उद्योग का हब बनकर 1 ट्रिलियन डॉलर अर्थव्यवस्था बनने की कागार पहुंच सकता है। यूपी की बंटी-बबली ब्रांड की शराब ने पूरे विश्व का ध्यान अपनी ओर खींचा।
उत्तर प्रदेश, भारत का सबसे अधिक आबादी वाला राज्य, अब केवल अपनी सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विरासत के लिए ही नहीं, बल्कि एक उभरते हुए आर्थिक पावरहाउस के रूप में भी चर्चा में है। विशेष रूप से, आबकारी विभाग की नई पहल और निवेशक-केंद्रित नीतियों ने इसे शराब और अल्कोहल आधारित उद्योगों का हब बनाने की दिशा में तेजी से आगे बढ़ाया है।
हाल ही में, आबकारी विभाग ने लखनऊ के इंदिरा गांधी प्रतिष्ठान में अपनी पहली इन्वेस्टर्स समिट आयोजित करने की घोषणा की, जो राज्य की 1 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था के लक्ष्य को हासिल करने में महत्वपूर्ण कदम साबित हो सकती है।
इस लेख में, हम इस समिट के महत्व, यूपी की आबकारी नीतियों, निवेश के अवसरों, और इसके सामाजिक-आर्थिक प्रभावों पर विस्तार से चर्चा करेंगे।
आबकारी विभाग की पहली इन्वेस्टर्स समिट तय करेगी क्या शराब उद्योग का हब बनेगा यूपी?
उत्तर प्रदेश का आबकारी विभाग पहली बार इन्वेस्टर्स समिट का आयोजन कर रहा है, जो 9 जुलाई 2025 को लखनऊ में होगा। यह एक दिवसीय आयोजन निवेशकों, उद्योगपतियों और नीति निर्माताओं के लिए एक मंच प्रदान करेगा, जहां नए निवेश के अवसरों, मौजूदा परियोजनाओं की प्रगति, और भविष्य की योजनाओं पर चर्चा होगी।
इस समिट का उद्देश्य न केवल आबकारी क्षेत्र में निवेश को बढ़ावा देना है, बल्कि स्थानीय किसानों और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को भी मजबूत करना है। अगर 9 जुलाई को योगी आदित्यनाथ सरकार की यह पहल सफल होती है तो आने वाले दिनों में यूपी शराब उद्योग का हब बनकर 1 ट्रिलियन अर्थव्यवस्था वाला राज्य बन सकता है।
समिट के तीन प्रमुख वर्ग
यूपी को शराब उधोग का हब बनाने के लिए योगी सरकार ने कमर कस ली है। इसके लिए आबकारी विभाग ने इस समिट को तीन श्रेणियों में बांटा है:
- मौजूदा निवेशक: वे उद्यमी जो पहले से ही आबकारी विभाग के साथ जुड़े हैं और डिस्टलरियों, ब्रुअरीज, या अन्य अल्कोहल आधारित उद्योगों में सक्रिय हैं।
- एमओयू धारक: जिन निवेशकों ने पहले निवेश के लिए समझौता पत्र (MoU) साइन किए हैं, लेकिन विभिन्न कारणों से उनकी परियोजनाएं रुकी हुई हैं। इस समिट में इन परियोजनाओं को गति देने की रणनीति बनाई जाएगी।
- नए निवेशक: वे उद्योगपति जो आबकारी क्षेत्र में पहली बार निवेश करना चाहते हैं। विभाग उन्हें सुगम नीतियों और प्रोत्साहनों के जरिए आकर्षित करेगा।
इस समिट के दौरान नए एमओयू साइन होने की उम्मीद है, जो यूपी को शराब और इथेनॉल उद्योग का एक प्रमुख केंद्र बनाने में मदद करेंगे।
यूपी की आबकारी नीतियां: निवेशकों की पहली पसंद
पिछले कुछ वर्षों में, उत्तर प्रदेश की आबकारी नीतियों में किए गए सुधारों ने निवेशकों का ध्यान आकर्षित किया है। आबकारी मंत्री नितिन अग्रवाल के अनुसार, विभाग ने 15% की औसत वार्षिक वृद्धि दर दर्ज की है, जिसके परिणामस्वरूप राज्य की राजस्व आय में भारी वृद्धि हुई है। ये नीतियां न केवल निवेशकों के लिए अनुकूल हैं, बल्कि स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी गति दे रही हैं। इसे देखकर लगता है कि आने वाले समय मे उत्तर प्रदेश शराब उद्योग का हब बन सकता है।
- प्रमुख नीतिगत सुधार: शराब उद्योग का हब बनाने के लिए यूपी सरकार निवेशकों को सभी अनुमतियां एक ही स्थान से प्राप्त करने की सुविधा दी जा रही है, जिससे लालफीताशाही कम होगी और निवेश प्रक्रिया तेज होगी।
- प्रमियम और स्थानीय उत्पादों को बढ़ावा: यूपी ने प्रीमियम शराब की बिक्री को बढ़ावा देने के लिए मॉल्स में प्रीमियम रिटेल स्टोर्स की अनुमति दी है। साथ ही, स्थानीय फल-आधारित वाइन को पांच साल तक उत्पाद शुल्क से छूट दी गई है ताकि शराब उद्योग का हब जल्द से जल्द बन सकें।
- ग्रेन-आधारित शराब को प्रोत्साहन: पहले यूपी को पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों से ग्रेन अल्कोहल आयात करना पड़ता था। अब, नई नीति के तहत स्थानीय स्तर पर ग्रेन-आधारित शराब का उत्पादन बढ़ाया जा रहा है, जिससे आयात पर निर्भरता कम हुई है और उत्तर प्रदेश शराब उधोग का हब बन सकेंगा।
- निर्यात शुल्क में कमी: बियर निर्यात शुल्क को 50 पैसे प्रति लीटर कम किया गया है, जिससे यूपी को बियर निर्यात में मजबूत स्थिति मिलेगी।
राजस्व में वृद्धि
आबकारी विभाग ने वित्तीय वर्ष 2024-25 के लिए 50,000 करोड़ रुपये के राजस्व का लक्ष्य रखा है। अप्रैल से सितंबर 2024 तक, विभाग ने 22,563 करोड़ रुपये का राजस्व अर्जित किया, जो पिछले वर्ष की तुलना में उल्लेखनीय वृद्धि दर्शाता है। यह वृद्धि नई नीतियों, डेटा एनालिटिक्स के उपयोग, और बेहतर आपूर्ति श्रृंखला प्रबंधन का परिणाम है।
यूपी: शराब और इथेनॉल उद्योग का उभरता हब
उत्तर प्रदेश कई कारणों से शराब और इथेनॉल उद्योग के लिए एक आकर्षक गंतव्य बन रहा है। ये कारक न केवल निवेशकों को आकर्षित कर रहे हैं, बल्कि यूपी को वैश्विक स्तर पर एक प्रमुख अल्कोहल उत्पादन केंद्र के रूप में स्थापित कर रहे हैं।
1. प्रचुर कच्चा माल
- गन्ना उत्पादन में अग्रणी: यूपी भारत में गन्ने का सबसे बड़ा उत्पादक है, जो शराब और इथेनॉल उत्पादन के लिए प्राथमिक कच्चा माल है। राज्य में 182 चीनी मिलें और 88 डिस्टलरियां हैं, जो स्थानीय स्तर पर कच्चे माल की आपूर्ति सुनिश्चित करती हैं।
- वैकल्पिक कच्चे माल: गन्ने के अलावा, मक्का, गेहूं, और जौ जैसे अनाजों का उपयोग शराब उत्पादन में बढ़ रहा है। सरकार ने वैकल्पिक कच्चे माल को बढ़ावा देने की नीति बनाई है, जिससे डिस्टलरियों की क्षमता बढ़ेगी।
2. बढ़ती शराब की डिमांड
- यूपी की 24 करोड़ से अधिक की आबादी और बढ़ता मध्यम वर्ग शराब और इथेनॉल उत्पादों के लिए एक विशाल बाजार प्रदान करता है। शहरीकरण और डिस्पोजेबल आय में वृद्धि ने प्रीमियम और आयातित शराब की मांग को बढ़ाया है।
- प्रीमियमाइजेशन का रुझान: उपभोक्ता अब गुणवत्ता पर ध्यान दे रहे हैं और प्रीमियम ब्रांड्स के लिए अधिक खर्च करने को तैयार हैं। भारतीय सिंगल माल्ट और क्राफ्ट जिन जैसे उत्पाद इस रुझान का हिस्सा हैं।
3. बेहतर परिवहन नेटवर्क
- यूपी का मजबूत परिवहन नेटवर्क, जिसमें प्रमुख राजमार्ग और रेलवे लाइनें शामिल हैं, डिस्टलरियों को अपने उत्पादों को देश और दुनिया भर में आसानी से पहुंचाने में मदद करता है। यह निवेशकों के लिए एक बड़ा लाभ है।
4. इथेनॉल ब्लेंडिंग प्रोग्राम
- भारत सरकार का इथेनॉल ब्लेंडिंग प्रोग्राम (EBP) 2025 तक 20% इथेनॉल मिश्रण का लक्ष्य रखता है। यूपी, अपने गन्ना उत्पादन और डिस्टलरी बुनियादी ढांचे के साथ, इस लक्ष्य को प्राप्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।
100 डिस्टलरियों का लक्ष्य
वर्तमान में, यूपी में 90 डिस्टलरियां कार्यरत हैं, और आबकारी विभाग का लक्ष्य अगले एक वर्ष में इसे 100 तक ले जाना है। इसके लिए विभाग नई नीतियां और निवेशकों को सुविधाएं प्रदान कर रहा है। उदाहरण के लिए:
- फ्रेंचाइजी शुल्क की शुरुआत: वैश्विक ब्रांड्स को यूपी की डिस्टलरियों के साथ फ्रेंचाइजी स्थापित करने की अनुमति दी गई है। इससे उत्पादन क्षमता बढ़ेगी और राजस्व में वृद्धि होगी।
- प्रीमियम रिटेल और माइक्रोब्रुअरीज: मॉल्स में प्रीमियम शराब स्टोर्स और माइक्रोब्रुअरीज को बढ़ावा दिया जा रहा है, जो विशेष रूप से नोएडा और गाजियाबाद जैसे एनसीआर क्षेत्रों में लोकप्रिय हो रहे हैं।
स्थानीय किसानों और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को लाभ
आबकारी विभाग की नई नीतियां न केवल उद्योगपतियों को लाभ पहुंचाएंगी, बल्कि स्थानीय किसानों और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को भी मजबूत करेंगी।
- बेहतर मूल्य: शराब और इथेनॉल उत्पादन में उपयोग होने वाले कच्चे माल (जैसे गन्ना, मक्का) के लिए किसानों को बेहतर मूल्य सुनिश्चित करने की नीति बनाई जा रही है।
- रोजगार सृजन: नई डिस्टलरियों और ब्रुअरीज की स्थापना से ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के अवसर बढ़ेंगे।
- आर्थिक विकास: ग्रामीण क्षेत्रों में आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा मिलेगा, जिससे यूपी की समग्र अर्थव्यवस्था को बल मिलेगा।
चुनौतियां और समाधान
हालांकि यूपी शराब उद्योग में एक हब बनने की ओर अग्रसर है, लेकिन कुछ चुनौतियां भी हैं:
- सामाजिक धारणाएं: शराब से संबंधित उद्योग को बढ़ावा देने से कुछ सामाजिक और सांस्कृतिक समूहों में विरोध हो सकता है। उदाहरण के लिए, कांवड़ यात्रा मार्ग पर शराब की दुकानों को ढकने के बारे में कोई स्पष्ट निर्देश नहीं है, और यह निर्णय जिला प्रशासन पर छोड़ दिया गया है।
- अवैध शराब का खतरा: उच्च कर दरों (यूपी में 69% कर) के कारण अवैध शराब का बाजार बढ़ सकता है, जो स्वास्थ्य और आर्थिक जोखिम पैदा करता है।
- विनियामक जटिलताएं: भारत में शराब नीतियां राज्य-विशिष्ट हैं, जिससे निवेशकों को विभिन्न नियमों का पालन करना पड़ता है। सिंगल विंडो सिस्टम इस समस्या का समाधान करने की दिशा में एक कदम है।
समाधान:
- जागरूकता और जिम्मेदार उपभोग: विभाग जिम्मेदार शराब खपत को बढ़ावा देने के लिए डेटा एनालिटिक्स का उपयोग कर रहा है।
- कठोर प्रवर्तन: अवैध शराब की तस्करी को रोकने के लिए सख्त निगरानी और प्रवर्तन नीतियां लागू की जा रही हैं।
- सामुदायिक सहभागिता: समिट के माध्यम से स्थानीय समुदायों को शामिल करके सामाजिक स्वीकृति बढ़ाने की कोशिश की जा रही है।
यूपी का भविष्य: 1 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था
उत्तर प्रदेश की अर्थव्यवस्था को 1 ट्रिलियन डॉलर तक ले जाने का लक्ष्य महत्वाकांक्षी है, और आबकारी विभाग इसमें महत्वपूर्ण योगदान दे रहा है। ग्राउंड ब्रेकिंग सेरेमनी 2.0 में, 46 निवेशकों ने 8,000 करोड़ रुपये के निवेश की प्रतिबद्धता जताई थी, जो इस दिशा में एक मजबूत शुरुआत है। आबकारी क्षेत्र से प्राप्त राजस्व का उपयोग बुनियादी ढांचे, स्वास्थ्य, और शिक्षा जैसे क्षेत्रों में विकास के लिए किया जा रहा है।
वैश्विक स्तर पर यूपी की स्थिति
- प्रीमियमाइजेशन और निर्यात: यूपी न केवल घरेलू बाजार बल्कि वैश्विक बाजार में भी अपनी स्थिति मजबूत कर रहा है। भारतीय सिंगल माल्ट और क्राफ्ट जिन की बढ़ती मांग यूपी के लिए एक बड़ा अवसर है।
- मेक इन इंडिया: सरकार की “मेक इन इंडिया” पहल के तहत, यूपी में स्थानीय उत्पादन को बढ़ावा दिया जा रहा है, जिससे विदेशी निवेश भी आकर्षित हो रहा है।
उत्तर प्रदेश का आबकारी विभाग अपनी पहली इन्वेस्टर्स समिट के माध्यम से न केवल शराब और इथेनॉल उद्योग को एक नई ऊंचाई दे रहा है, बल्कि राज्य की अर्थव्यवस्था को 1 ट्रिलियन डॉलर के लक्ष्य की ओर ले जा रहा है। नई नीतियां, निवेशक-केंद्रित दृष्टिकोण, और स्थानीय संसाधनों का उपयोग यूपी को शराब उद्योग का हब बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम हैं। साथ ही, स्थानीय किसानों और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को लाभ पहुंचाने की योजनाएं इस पहल को सामाजिक और आर्थिक रूप से समावेशी बनाती हैं।
यूपी शराब उद्योग का हब बनने की ओर अग्रसर है, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा लखनऊ में 09 जुलाई 2025 को हो रही इन्वेस्टर्स समिट का आयोजन सफल रहता है तो आने वाले दिनों में यूपी देश में शराब उद्योग का हब बन कर अपने 1 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था का लक्ष्य हासिल कर सकता है।
यह भी पढ़े: यूपी भवन निर्माण नियम 2025
Pingback: शराब उत्पादन में यूपी बनेगा नंबर 1: योगी सरकार की नई आबकारी नीति कैसे लाएगी बड़ा बदलाव? - Smart Khabari