लखनऊ (उत्तर प्रदेश), 17 सितंबर: यूपी की सियासी गलियों में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) एक बार फिर हलचल मचा रही है। मायावती, जो कभी चार बार मुख्यमंत्री रहीं, अब 2027 के विधानसभा चुनावों को लक्ष्य बनाकर मैदान में उतर आई हैं। 9 अक्टूबर को कांशीराम की पुण्यतिथि पर लखनऊ के स्मारक स्थल पर होने वाले मेगा कार्यक्रम से बसपा न सिर्फ अपनी ताकत दिखाएगी, बल्कि एनडीए और इंडिया गठबंधन को साफ संदेश देगी कि वह भी एक मजबूत तीसरा विकल्प है।
9 अक्टूबर का कार्यक्रम: बसपा की ताकत का प्रदर्शन
बसपा 2027 चुनाव रणनीति का आगाज 9 अक्टूबर को होगा, जब लखनऊ के कांशीराम स्मारक स्थल पर लाखों कार्यकर्ता जुटेंगे। पार्टी सूत्रों के मुताबिक, मायावती इस रैली को ऐतिहासिक बनाने के लिए जोर-शोर से तैयारी कर रही हैं। 8 अक्टूबर को ही रमाबाई अंबेडकर मैदान में कार्यकर्ता इकट्ठा होंगे, और अगले दिन स्मारक स्थल पर पहुंचेंगे। शहर की सड़कों पर नीले झंडे लहराते दिखेंगे, जो बसपा की पुरानी चमक को याद दिलाएंगे।
हमने पार्टी के एक वरिष्ठ नेता से बात की, जो नाम न छापने की शर्त पर बोले, “यह सिर्फ पुण्यतिथि नहीं, बल्कि 2027 की चुनावी रणनीति का लॉन्च है। मायावती कार्यकर्ताओं को संबोधित करेंगी और सोशल इंजीनियरिंग का नया फॉर्मूला बताएंगी।” 2022 के विधानसभा चुनाव में बसपा का वोट शेयर 12% रहा था, जबकि 2024 लोकसभा में यह 2.06% तक गिर गया। अब पार्टी इसे पलटने के लिए बेताब है। 5
भाईचारा कमेटी का पुनर्गठन: सोशल इंजीनियरिंग का मास्टरस्ट्रोक
बसपा 2027 चुनाव रणनीति का केंद्र बिंदु है भाईचारा कमेटी का पुनर्गठन। 2007 की तरह, जब दलित-ब्राह्मण गठजोड़ ने पार्टी को पूर्ण बहुमत दिलाया था, अब भी यही फॉर्मूला दोहराया जा रहा है। प्रदेश के 90% बूथ स्तर पर ये कमेटियां गठित हो चुकी हैं, जो दलितों, पिछड़ों, ब्राह्मणों और मुस्लिमों को एकजुट करने का काम करेंगी। प्रदेश अध्यक्ष विश्वनाथ पाल ने हाल ही में लखनऊ में पिछड़ा वर्ग भाईचारा कमेटी की बैठक में संकल्प लिया कि 9 अक्टूबर का कार्यक्रम ऐतिहासिक बनेगा।
यह कमेटियां सपा के PDA (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) फॉर्मूले का जवाब हैं, लेकिन बसपा इसे ‘सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय’ से जोड़कर ब्राह्मणों को भी शामिल कर रही है। 75 जिलों में OBC, दलित और मुस्लिम नेताओं को जिम्मेदारी सौंपी गई है। एक नेता ने बताया, “डोर-टू-डोर कैंपेन चलेंगी, जहां कांशीराम के विचारों को फैलाया जाएगा। हर बूथ पर 20-30 युवाओं की टीम होगी।” यूपी में दलित 21%, OBC 40% और मुस्लिम 19% हैं – अगर ये एकजुट हुए, तो भाजपा-सपा का गणित बिगड़ सकता है।
आकाश आनंद: बसपा की नई उम्मीद और उत्तराधिकारी
मायावती के भतीजे आकाश आनंद अब पार्टी में नंबर-2 की हैसियत में आ चुके हैं। दो बार निष्कासन के बाद लौटे आकाश को नेशनल संयोजक बनाया गया है – यह पद बसपा में पहली बार बना है। वह बिहार चुनावों के प्रभारी हैं और युवा विंग को मजबूत करने में जुटे हैं। 9 अक्टूबर के कार्यक्रम में उन्हें प्रमुख भूमिका मिलेगी। आकाश की युवा अपील दलित वोटरों, खासकर जाटव समुदाय को आकर्षित कर रही है, जो 2024 में चंद्रशेखर आजाद की आजाद समाज पार्टी की ओर मुड़े थे।
सूत्र बताते हैं कि आकाश के जरिए पार्टी से दूर हुए दलित युवाओं को वापस लाया जा रहा है। उन्होंने हाल ही में कहा, “बहन जी के मार्गदर्शन में बसपा सत्ता में लौटेगी।” 2027 में उन्हें बड़ी भूमिका मिल सकती है, जो बसपा को नई ऊर्जा देगी।
सतीश चंद्र मिश्रा की ब्राह्मण आउटरीच: 2007 का फॉर्मूला दोहराना
बसपा के ब्राह्मण चेहरे सतीश चंद्र मिश्रा फिर सक्रिय हो गए हैं। 2007 में ब्राह्मण वोटों ने बसपा को 80 सीटें दिलाई थीं। अब मिश्रा ब्राह्मण सम्मेलनों का आयोजन करेंगे – अयोध्या से मथुरा तक 30 से ज्यादा कार्यक्रमों की रूपरेखा तय है। मिश्रा कहते हैं, “भाजपा ने ब्राह्मणों को सत्ता में लाया, लेकिन सम्मान नहीं दिया। डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक को वैसी हनक नहीं मिली।”
मिश्रा MBCS (मोस्ट बैकवर्ड क्लासेस) को भी जोड़ रहे हैं, क्योंकि दलित-मुस्लिम से ज्यादा फायदा MBCS-दलित गठजोड़ से होगा। हाल की बैठक में उन्होंने कहा, “2007 की एकजुटता फिर लानी होगी।” 9 अक्टूबर के कार्यक्रम की तैयारियों में मिश्रा की सक्रियता से साफ है कि बसपा ब्राह्मण वोटों पर फिर दांव खेल रही है।
2007 की यादें: बसपा का स्वर्णिम अध्याय
2007 का विधानसभा चुनाव बसपा के लिए मील का पत्थर था। ‘सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय’ के नारे के साथ मायावती ने 206 सीटें जीतीं और पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई। दलित-ब्राह्मण गठजोड़ ने सवर्णों को गोद में लिया। लेकिन 2012 के बाद ग्राफ गिरा – 2017 में 19 सीटें, 2022 में सिर्फ एक, और 2024 लोकसभा में 2.06% वोट। अब मायावती उसी फॉर्मूले को दोहराने को बेताब हैं।
पार्टी चौपालों के जरिए जनता तक पहुंचेगी। मायावती तीनों मुख्यमंत्रियों (अखिलेश, योगी, अपने) के कार्यकाल की तुलना करेंगी। बताएंगी कि 2007-2012 में कानून का राज था, कोई भेदभाव नहीं। विकास के नाम पर ताजमहल, लोहिया आवास, नोएडा-ग्रेटर नोएडा एक्सप्रेसवे जैसे प्रोजेक्ट्स को गति दी। योगी सरकार पर अत्याचार के आरोप लगाएंगी, सपा को ‘गुंडाराज’ कहेंगी।
पंचायत चुनाव 2025: 2027 की सीढ़ी
बसपा 2025 के पंचायत चुनावों को 2027 की सीढ़ी मान रही है। मायावती ने सदस्यता अभियान तेज करने के निर्देश दिए हैं। गांव-गांव जाकर वोटर लिस्ट तैयार हो रही है। बूथ कमेटियों का 90% गठन हो चुका, बाकी 9 अक्टूबर के बाद पूरा होगा। पार्टी ‘वन डिवीजन, वन कोऑर्डिनेटर’ पॉलिसी अपनाने की सोच रही है, ताकि जवाबदेही तय हो। 8
सूत्रों के मुताबिक, मार्च 2026 से दूसरे दलों के बड़े नेताओं को सदस्यता दिलाई जाएगी। कई OBC नेता, जो पहले बसपा में थे, संपर्क में हैं। मायावती ने ड्रेस कोड भी अनिवार्य करने की सोच रखी है, जो 9 अक्टूबर को घोषित हो सकता है। 6
चुनौतियां और उम्मीदें
बसपा अकेले लड़ने की रणनीति पर अड़ी है। मायावती ने कहा, “बसपा जातिवादी गठबंधनों से स्वतंत्र है।” 9 लेकिन सपा-कांग्रेस गठबंधन और भाजपा की मजबूत पकड़ चुनौती हैं। फिर भी, वरिष्ठ पत्रकार सैय्यद कासिम कहते हैं, “बसपा की 12% वोट शेयर इसका सबूत है कि वह जिंदा है। 9 अक्टूबर की भीड़ से मैसेज साफ होगा।” 2
पार्टी का लक्ष्य साफ है – कोर जाटव वोटरों को लौटाना, MBCS पर फोकस, और सर्वजन गठजोड़। अगर यह रणनीति काम आई, तो यूपी की राजनीति बदल सकती है।
आगे की राह: क्या होगा 2027 का परिणाम?
बसपा 2027 चुनाव रणनीति से साफ है कि मायावती सत्ता की कुर्सी पर वापसी के सपने देख रही हैं। 9 अक्टूबर का कार्यक्रम न सिर्फ कार्यकर्ताओं को उत्साहित करेगा, बल्कि विपक्ष को सतर्क भी। लेकिन सफलता के लिए ग्राउंड वर्क मजबूत होना जरूरी है।
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