Kanpur Police Training Scandal: कानपुर में महिला पुलिस ट्रेनी सिपाहियों को नाली के किनारे बैठकर खाना खाने को मजबूर होना पड़ा! 825 ट्रेनियों के लिए सिर्फ 4 टॉयलेट! जानिए कैसे सोशल मीडिया वायरल ने पुलिस कमिश्नर को कार्रवाई पर मजबूर किया।
कानपुर। यूपी पुलिस में भर्ती होने का सपना लेकर कानपुर पहुंचे हज़ारों ट्रेनी सिपाहियों के साथ क्या हुआ, वह पूरे प्रशासनिक तंत्र पर एक काला धब्बा है। यहां महिला ट्रेनी कांस्टेबलों को नाली के किनारे जमीन पर बैठकर खाना खाते हुए देखा गया। पुरुष ट्रेनियों के लिए सिर्फ 4 टॉयलेट की व्यवस्था थी। यह नौकरी की “खुशी” नहीं, बल्कि व्यवस्था की बदइंतजामी और संवेदनहीनता की शर्मनाक तस्वीर है। जब ये तस्वीरें सोशल मीडिया पर आग की तरह वायरल हुईं, तब कहीं जाकर पुलिस कमिश्नर अखिल कुमार ने संज्ञान लिया।
क्या हुआ? घटना का पूरा कालक्रम

- ट्रेनी आगमन: कानपुर के ज्वाइनिंग ट्रेनिंग सेंटर (JTC) में करीब 2,000 ट्रेनी सिपाहियों (400 महिला, 1,600 पुरुष) को प्रशिक्षण लेना था। उन्हें चार अलग-अलग स्थानों पर ठहराया गया:
- 400 महिला ट्रेनी: ट्रैफिक पुलिस लाइन
- 825 पुरुष ट्रेनी: रिजर्व पुलिस लाइन
- 556 ट्रेनी: फायर सर्विस, बिठूर
- 220 ट्रेनी: आईटीबीपी केंद्र रूमा और थाना बादशाहीनाका
- दिन-1 की हकीकत (गुरुवार):
- खाने का संघर्ष: महिला ट्रेनियों को दोपहर का खाना (लंच पैकेट) बाहर से मंगवाया गया। लेकिन खाने के लिए कोई बैठने की व्यवस्था नहीं थी। भूख से बेहाल कई ट्रेनियों ने साइबर थाना परिसर की जमीन पर, नाली के किनारे या फुटपाथ पर बैठकर खाना खाया।
- तस्वीरें वायरल: यह दृश्य देखकर मौजूद कुछ लोगों ने फोटो खींचीं और सोशल मीडिया पर डाल दीं। आम जनता और मीडिया का गुस्सा फूट पड़ा।
- पुरुष ट्रेनियों की पीड़ा: रिजर्व पुलिस लाइन में ठहरे 825 पुरुष ट्रेनियों के लिए सिर्फ 4 टॉयलेट थे। गर्मी में लंबी कतारें लगाना उनकी मजबूरी थी।
- रहने की अव्यवस्था: कई ट्रेनियों के बेड और बैरक अलॉटमेंट की प्रक्रिया भी पूरी नहीं हुई थी, जिससे उन्हें गर्मी और बेचैनी में परेशान होना पड़ा।
- सोशल मीडिया धमाका और कमिश्नर का एक्शन (शुक्रवार):
- दैनिक भास्कर की खबर: अखबार ने इस बदइंतजामी को प्रमुखता से उजागर किया।
- पुलिस कमिश्नर अलर्ट: खबरें वायरल होने के 24 घंटे के अंदर ही पुलिस कमिश्नर अखिल कुमार खुद मौके पर पहुंचे। उन्होंने पहले पुलिस लाइन और फिर ट्रैफिक पुलिस लाइन का निरीक्षण किया।
- ट्रेनियों से सीधी बात: कमिश्नर ने ट्रेनी सिपाहियों से रूबरू बात की, उनकी समस्याएं सुनीं और तुरंत सब कुछ ठीक करने का आश्वासन दिया। उन्होंने कहा, “अगर कुछ गड़बड़ हो तो डायरेक्ट हमसे बताएं।”
- अधिकारियों की फटकार: कमिश्नर ने ट्रेनिंग के नोडल ऑफिसर को इस लापरवाही के लिए खरी-खोटी सुनाई।
- क्षति नियंत्रण के दावे: कमिश्नर ने बताया कि पहले दिन की अव्यवस्था के बाद अब रहने, खाने और अन्य सभी सुविधाओं को बेहतर बना दिया गया है। निगरानी के लिए डीसीपी स्तर के अधिकारियों को जिम्मेदारी सौंपी गई है।
प्रशासन का बचाव और सवालों के घेरे में जवाब
- “पहले दिन की अव्यवस्था”: पुलिस अधिकारियों ने दावा किया कि ट्रेनियों के आगमन के पहले दिन बेड/बैरक अलॉटमेंट प्रक्रिया चल रही थी। इसी दौरान खाना वितरित हुआ और कुछ ट्रेनियों ने “अपनी सुविधा से” यहां-वहां बैठकर खा लिया। बाद में व्यवस्था की गई।
- “खुशी में समस्याएं आती हैं”: कुछ ट्रेनियों के हवाले से कहा गया कि नौकरी मिलने की खुशी में छोटी-मोटी समस्याएं सहन की जा सकती हैं।
लेकिन, क्या ये जवाब पर्याप्त हैं? सवाल ये उठते हैं:
- क्या 2000 ट्रेनियों के आगमन से पहले बुनियादी सुविधाओं (बैठकर खाने की जगह, पर्याप्त शौचालय, बैरक) का आकलन और प्रबंधन नहीं किया जाना चाहिए था?
- क्या महिला ट्रेनियों को ज़मीन पर, नाली के किनारे खाना खिलाना “सुविधा” कहलाता है? यह उनके गरिमा और सुरक्षा के साथ खिलवाड़ नहीं है?
- 825 व्यक्तियों के लिए महज 4 शौचालय किसी भी मानवीय या स्वास्थ्य मानक पर कैसे खरे उतरते हैं?
- क्या सोशल मीडिया पर वायरल होने तक प्रशासन की नींद नहीं खुलती, तो क्या यही हालात चलते रहते?
ज्वाइनिंग ट्रेनिंग सेंटर (JTC) का महत्व
- यहां नए भर्ती हुए कांस्टेबलों को एक महीने की बेसिक ट्रेनिंग दी जाती है।
- ट्रेनिंग में शामिल है:
- पुलिस अधिकारियों के सामने पेश होने का तरीका, वर्दी की पहचान, रैंक समझना।
- बेसिक पीटी, परेड, ड्रिल, दौड़, फॉल इन, प्लाटून/स्क्वाड गठन।
- फिजिकल फिटनेस, हथियार प्रशिक्षण।
- भारतीय कानून, अपराध जांच प्रक्रिया, पुलिसिंग तकनीक, अनुशासन व नैतिकता।
- सर्विस बुक, पीएनओ नंबर, कैरेक्टर रोल तैयार करना।
- इस ट्रेनिंग के बाद ही उन्हें रिक्रूट ट्रेनिंग सेंटर (RTC) भेजा जाता है और वे पूर्णतः कॉन्स्टेबल बनते हैं।
सुधार के वादे या खोखले दावे?
कानपुर पुलिस ट्रेनिंग की यह घटना सिर्फ बुनियादी सुविधाओं की कमी नहीं, बल्कि संवेदनशीलता और योजना के अभाव की पोल खोलती है। यह विडंबना है कि जिन ट्रेनियों को अनुशासन और नैतिकता सिखानी है, उन्हें प्रशासन ने पहले दिन ही अराजकता और अपमानजनक हालात में धकेल दिया। पुलिस कमिश्नर का हस्तक्षेप और सुधार के वादे सकारात्मक कदम हैं, लेकिन सवाल यही है कि ये वायरल होने के बाद की औपचारिकता तो नहीं?
कानपुर पुलिस के लिए यह एक बड़ा झटका है। इस घटना से ट्रेनियों के मनोबल पर भी गहरा असर पड़ सकता है। अब निगरानी के दावों पर अमल और ट्रेनियों को वास्तव में सम्मानजनक सुविधाएं मिलना ही साबित करेगा कि प्रशासन ने सबक लिया है। पुलिस बल की भविष्य की रीढ़ इन्हीं ट्रेनियों को बनना है – उनके साथ हो रहा यह व्यवहार पूरे सिस्टम के लिए एक चिंताजनक संकेत है।
स्मार्टखबरी डॉट कॉम की रिपोर्ट
(यह खबर विभिन्न स्रोतों और जानकारियों के आधार पर तैयार की गई है।)