देवरिया में एक किसान ऐसे भी है जिन्होंने स्ट्रॉबेरी की खेती करके एक नया इतिहास रच दिया है। खास बात यह है कि लाल जी कुशवाहा ने लीज पर खेत लेकर यह कारनामा किया है।
बता दे, लाल जी कुशीनगर जनपद के रहने वाले है, जो देवरिया के टड़वा गांव में डेढ़ एकड़ भूमि पर स्ट्रॉबेरी की खेती कर लाखो रुपयें का प्रॉफिट कर आस-पड़ोस के किसानों के लिए एक प्रेणास्रोत बन गये है। उनके खेती करने के तरीके को देखकर लोग दांतो तले अंगुली दबाने को मजबूर हो गए है।
आइये जानते है देवरिया के इस मॉर्डन किसान की हैरतअंगेज कर देनी वाली टेक्निक के बारे में जिसे जानने के बाद देवरिया ही नही बल्कि आस-पास के ज़िलों से भी लोग उनकी लहलहाती फसल देखने आ रहे है।
पहाड़ो पंर होने वाली स्ट्रॉबेरी की खेती अब मैदानी इलाकों में भी संभव!
ठंडे इलाके की फसल कही जाने वाली स्ट्रॉबेरी की खेती मैदानी क्षेत्रों में भी बड़ी आसानी से की जा सकती है, इसे लाल जी कुशवाहा ने प्रूव कर दिया है।
दरअसल, यूपी के पूर्वी छोर पर स्थित देवरिया जिलें की गिनती प्रदेश के पिछड़े जिलों में की जाती है। इस जिलें का अधिकांश भाग बाढ़ प्रवाहित रहता है। मुख्य रूप से यहां के किसान धान और गेंहूं की खेती करते है। लगभग ढाई दशक पहले इस जिलें को गन्ने की खेती के लिए जाना जाता था।
लेकिन चीनी मिलों के बंद हो जाने के कारण यहां के किसानों ने, धान और गेंहूं की खेती की तरफ रुख कर लिए। जिलें का अधिकांश हिस्सा बाढ़ से प्रभावित होने के कारण वर्तमान में गेंहूं यहां की मुख्य फसल बन गई है।
पूर्व में अरहर, अलसी, जौ, चना, मंसूर की खेती भी यहां बहुयात में होती थी। लेकिन अरहर और चने की खेती का दायरा बेहद कम हो गया है जबकि अलसी, मंसूर, जौ की खेती अब यहां न के बराबर होती है।
देवरिया से सटा हुआ कुशीनगर जिला है जो पहले देवरिया के अंतर्गत ही आता था, 13 मई, 1994 को कुशीनगर जिलें के रूप में आस्तित्व ले लिया। इसी कुशीनगर जिले के लाल जी कुशवाहा आजकल देवरिया जिलें के भाटपार रानी तहसील क्षेत्र के टड़वा गांव में रहकर आधुनिक खेती कर पूरे जिलें में छा गए है।
जहां एक तरफ़ इस गांव के किसान धान और गेंहूं की परम्परागत खेती कर रहे है वही लाल जी कुशवाहा ने इसी गांव में डेढ़ एकड़ जमीन, खेती करने के लिए किराये पर लिये। उन्होंने महाराष्ट्र के पुणे जिले से स्ट्रॉबेरी के बीज मंगवाया।
पानी और फसल की सुरक्षा सबसे बड़ी बाधा!
- लालजी कुशवाहा ने बताया कि, स्ट्रॉबेरी की खेती में पानी का अहम रोल है, अगर इसका प्रबंधन सही ढंग से नही किया गया तो फसल बर्बाद हो सकती है।
- फसल को पानी अगर कम मिलेगा तो भी उत्पादन प्रभावित हो जाएगा, वही अगर पानी की अधिकता हुई तो भी फसल के लिए ठीक नही है।
- ऐसे में लाल जी ने पानी का बैलेंस बनाने के लिए स्प्रिंकलर टेक्निक का इस्तेमाल किया।
- आवारा पशु फसल को नुकसान न पहुंचा दे इसके लिए
इलेक्ट्रिक फेंसिंग और जाली का इस्तेमाल खेत के चारो ओर किया।
बुवाई के 45 दिन बाद फल लगने हुए शुरू।
स्ट्रॉबेरी की बुवाई के करीब 45 दिनों बाद ही फल लगने शुरू हो गए और अब हर दूसरे दिन 3 क्विंटल स्ट्रॉबेरी का उत्पादन हो जाता है। थोक में स्ट्रॉबेरी के फल लगभग ₹200 किलो बड़े आराम से बिक जाते है।
स्ट्रॉबेरी की खेती की सूचना जब जनपद मुख्यालय पहुंची तो जिलाधिकारी समेत सभी आला अधिकारी आश्चर्यचकित हो गए और मौके पर पहुंच कर स्ट्रॉबेरी की खेती देखी और सभी ने लालजी की इस अत्याधुनिक खेती की प्रशंसा की।
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लाल जी कुशवाहा के खेतों में लहलहाती स्ट्रॉबेरी की फसल को देखकर आस-पास के गांव के किसान भी अब परम्परागत खेती से किनारा कर नगदी फसल बोने की बात कर रहे है। फ़िलहाल टड़वा गांव में लालजी कुशवाहा और श्याम लाल गांव में ही रहकर स्ट्रॉबेरी की खेती करके अच्छा लाभ कमा रहे है।
फलों की रानी।
स्ट्रॉबेरी, जिसे “फलों की रानी” भी कहा जाता है, न केवल इसका स्वाद लाजवाब होता है, बल्कि इसकी खेती भी एक लाभकारी सौदा है। स्ट्रॉबेरी को फलों के रूप में खाया जाता है तो वही जूस, जैम, आइसक्रीम और मिठाइयों में भी इसका इस्तेमाल किया जाता है।
स्ट्रॉबेरी की खेती छोटे और बड़े दोनों तरह के किसान कर सकते है। सही योजना, उन्नत तकनीकों, और देखभाल के साथ यह खेती न केवल आर्थिक लाभ देती है, बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के अवसर भी बढ़ाती है।