देवरिया, 18 सितंबर: देवरिया जिले में इस मानसून सीजन में बारिश की आस जितनी थी, उतनी तो बरसी ही नहीं। सामान्य से कम वर्षा ने न सिर्फ खेतों को तरसाया, बल्कि गोर्रा और राप्ती जैसी नदियों को भी सूखेपन की चपेट में ला दिया।
देवरिया में बारिश का हाल: सामान्य से कितना पीछे?
देवरिया में बारिश इस वर्ष की शुरुआत से ही निराशाजनक रही है। भारतीय मौसम विभाग (IMD) के आंकड़ों के मुताबिक, 1 जून से 17 सितंबर 2025 तक देवरिया में कुल 509 मिमी वर्षा दर्ज की गई, जो सामान्य 790 मिमी से करीब 41% कम है।
हमने जिले के मौसम केंद्र से बात की – अधिकारी बताते हैं कि मई-जून में तो महज 29.7 मिमी बारिश हुई, जबकि सामान्य 50 मिमी से ज्यादा होनी चाहिए थी। जुलाई में कुछ राहत मिली, लेकिन अगस्त-सितंबर में फिर कमी बनी रही।
यह कमी दोआबा क्षेत्र में सबसे ज्यादा महसूस हो रही है, जहां कृषि वर्षा पर निर्भर है। स्थानीय किसान बृजेश सिंह कहते हैं, “पिछले साल तो राप्ती उफान पर थी, लेकिन इस बार धारा सूखी पड़ी है।”
IMD की रिपोर्ट्स से साफ है कि पूर्वी उत्तर प्रदेश के कई जिलों में यही स्थिति है – अम्बेडकर नगर में भी 41% कमी, जबकि कुछ जगहों पर 76% ज्यादा बारिश हुई। लेकिन देवरिया में बारिश की अनियमितता ने सबको चिंतित कर दिया है। जिले के 16 ब्लॉकों में से आधे से ज्यादा में 30% से कम वर्षा रिकॉर्ड हुई, जो खरीफ फसल के लिए खतरे की घंटी है।
गोर्रा और राप्ती नदियां: खतरे के निशान से कोसों दूर
देवरिया का दोआबा इलाका गोर्रा और राप्ती नदियों की धारा पर टिका है, लेकिन इस वर्ष ये नदियां एक बार भी खतरे के निशान को छू नहीं पाईं।
राप्ती नदी का जल स्तर सामान्य से 2-3 मीटर नीचे है – फतेहपुर बैराज पर खतरे का निशान 84 मीटर है, लेकिन अगस्त तक यह 78 मीटर पर अटका रहा। गोर्रा नदी, जो देवरिया को तरबतर करने वाली मानी जाती है, इस बार सूखी धारा बनकर रह गई।
हमने राप्ती के किनारे बसे तिघरा खैरवा, करहकोल, नीबा एकौना आदि दर्जनों गांव का दौरा किया – वहां के बुजुर्ग बताते हैं, “राप्ती ने तो कभी इतना धोखा नहीं दिया। जून में तो पानी का नामोनिशान नहीं था।”
उत्तर प्रदेश सिंचाई विभाग के डेटा से पता चलता है कि राप्ती बेसिन में 2025 में औसत वर्षा 400 मिमी रही, जो सामान्य 600 मिमी से 33% कम है। गोर्रा का जलग्रहण क्षेत्र भी प्रभावित हुआ, जहां जुलाई में महज 100 मिमी बारिश हुई। इससे नदियों का प्रवाह कमजोर पड़ गया, और बाढ़ का खतरा तो दूर, जल संकट बढ़ गया। स्थानीय प्रशासन ने नदी किनारे के गांवों को अलर्ट तो जारी किया, लेकिन बाढ़ की चिंता के बजाय सूखे की आशंका अब जोर पकड़ रही है।
किसानों पर पड़ी मार: खेत सूखे, फसलें मुरझाईं
देवरिया में बारिश की कमी का सबसे बुरा असर किसानों पर पड़ा है। जिले में धान, गन्ना और सब्जियों की खेती पर निर्भर लाखों परिवार हैं, लेकिन कम वर्षा ने खेतों को प्यासा बना दिया।
तरई ब्लॉक के एक किसान अजीत साहनी ने बताया, “धान की फसल बोई, लेकिन पानी न आने से 50% तक नुकसान हो गया। सिंचाई के लिए ट्यूबवेल चला रहे हैं, लेकिन बिजली-पानी की समस्या ने दुख दर्द बढ़ा दिया।”
कृषि विभाग के आंकड़ों के अनुसार, देवरिया में खरीफ क्षेत्र का 40% हिस्सा प्रभावित हुआ है। गन्ना बेल्ट में किसान परेशान हैं – राप्ती की कमी से इरिगेशन प्रभावित। कुछ इलाकों में सब्जी उत्पादन 30% गिर गया।
हमने जिले के कृषि अधिकारी से बात की – वे कहते हैं, “मानसून की देरी से जून-जुलाई में कमी रही, जबकि अगस्त में कुछ बरसात हुई। लेकिन कुल मिलाकर 20-25% फसल नुकसान अनुमानित है।”
सरकार ने राहत पैकेज की घोषणा की है, लेकिन किसान मांग कर रहे हैं कि ड्रिप इरिगेशन पर सब्सिडी बढ़े। देवरिया में बारिश की कमी ने न सिर्फ फसलें, बल्कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था को भी झकझोर दिया है।
देवरिया का मौसम परिदृश्य: क्यों रही कमी?
मानसून की अनियमितता और जलवायु परिवर्तन का रोल
देवरिया में बारिश की कमी का मुख्य कारण मानसून की अनियमितता है। IMD के अनुसार, 2025 में दक्षिण-पश्चिम मानसून 24 मई को केरल पहुंचा, लेकिन पूर्वी यूपी तक पहुंचने में देरी हुई। जून में सामान्य से 20% कम वर्षा रिकॉर्ड हुई, जबकि जुलाई में कुछ सुधार आया। विशेषज्ञ बताते हैं कि जलवायु परिवर्तन की वजह से पश्चिमी विक्षोभ कमजोर पड़ गए, और बंगाल की खाड़ी से नमी की कमी रही।
देवरिया जैसे तराई इलाकों में नदियां नेपाल से आती हैं, लेकिन कम वर्षा ने उनके जलग्रहण को प्रभावित किया। एक मौसम वैज्ञानिक ने कहा, “2025 में एल नीनो का हल्का असर पड़ा, जिससे पूर्वी UP में डेफिसिट बारिश हुई।” हाल के दिनों में सितंबर में कुछ अलर्ट्स आए, लेकिन कुल मिलाकर देवरिया में बारिश सामान्य से 15-20% पीछे है। इससे भूजल स्तर भी गिरा – CGWB की रिपोर्ट में देवरिया का औसत जल स्तर 10 मीटर नीचे आ गया।
नदियों का सूखापन: पर्यावरण पर असर
गोर्रा और राप्ती नदियों का कम जल स्तर न सिर्फ सिंचाई प्रभावित कर रहा है, बल्कि पर्यावरण को भी नुकसान पहुंचा रहा है। राप्ती बेसिन में मछली पालन प्रभावित, और पक्षी अभयारण्य सूखे पड़ गए।
स्थानीय एनजीओ के मुताबिक, नदियों के किनारे मिट्टी का कटाव कम हुआ, लेकिन जल प्रदूषण बढ़ा क्योंकि पानी की गति धीमी हो गई। देवरिया के दोआबा में जल संकट गहरा रहा है। वाटर लेवल नीचे चला गया है।
भविष्य का पूर्वानुमान: क्या मिलेगी राहत?
अगले दिनों में बारिश की संभावना
IMD ने देवरिया के लिए अगले 48 घंटों में हल्की से मध्यम वर्षा का अनुमान जताया है। 25-26 सितंबर को बंगाल की खाड़ी में लो प्रेशर बनने से पूर्वी UP में 2-3 दिन तेज बारिश हो सकती है।
लेकिन विशेषज्ञ चेताते हैं कि कुल मानसून विदाई तक डेफिसिट बना रहेगा। देवरिया में अक्टूबर की शुरुआत तक 50-60 मिमी और बारिश की उम्मीद है, जो नदियों को थोड़ी राहत देगी।
हमने आज मौसम केंद्र से अपडेट लिया – 18-19 सितंबर को हल्की बूंदाबांदी संभव, लेकिन भारी वर्षा नहीं। किसानों को सलाह दी गई है कि रबी फसल की तैयारी जल्द शुरू करें।
देवरिया में बारिश की कमी ने हमें जल संरक्षण की याद दिलाई है। गोर्रा-राप्ती जैसी नदियां सूखीं, खेत मुरझाए – यह चेतावनी है कि जलवायु परिवर्तन को नजरअंदाज नहीं कर सकते। सरकार और जनता को मिलकर वर्षा जल संचयन पर फोकस करना चाहिए।