यूपी की राजधानी लखनऊ में डिजिटल अरेस्ट का मामला सामने आया है। जिसमे पुलिस अधिकारी बनकर साइबर ठगों ने रविंद्र वर्मा नाम के चमड़ा व्यापारी से 47 लाख रुपये की ठगी की। मुंबई के अंधेरी थाने और सीबीआई के अधिकारी का ढोंग कर साइबर अपराधियो ने घटना को अंजाम दिया। साइबर पुलिस ने एफआईआर दर्ज कर मामले की जांच शुरू की।
जानिए, “कैसे साइबर अपराधियों ने चमड़ा व्यापारी से 47 लाख रुपयें ठगे?”
लखनऊ (उत्तर प्रदेश), 27 जून 2025: यूपी के लखनऊ में चमड़ा व्यापारी को दो दिन तक डिजिटल अरेस्ट कर पुलिस अधिकारी बने साइबर ठगों ने 47 लाख रुपए बड़ी आसानी से ठग लिए। साइबर ठगों ने चमड़ा व्यापारी को मुंबई के अंधेरी थाने में मुकदमा दर्ज होने की बात कह कर पहले डराया।
उसके बाद गिरफ्तारी से बचाने के एवज में दो बैंक खातों में 47 रुपयें मंगवाये। जब चमड़ा व्यापारी को शक हुआ तो उसने अपनी बेटी से इसके बारे में बताया। बाद में साइबर थाने में जाकर घटना की तहरीर दी। फिलहाल साइबर पुलिस ने मुकदमा दर्ज कर जांच शुरू कर दी है।
📌 मुख्य तथ्य
- पीड़ित: रविंद्र वर्मा (विनयखंड निवासी, चमड़ा व्यापारी)
- ठगी की राशि: ₹47 लाख
- तिथि: 20-21 जून 2025
- ठगों का ढोंग: मुंबई के अंधेरी थाने और सीबीआई के अधिकारी
- वर्तमान स्थिति: साइबर थाने में FIR दर्ज, जांच जारी।
⚡ घटनाक्रम: कैसे हुई ठगी?
- झूठी कानूनी धमकी (20 जून, सुबह 10:30 बजे):
- रविंद्र को एक अज्ञात नंबर से फोन आया। कॉलर ने खुद को मुंबई के अंधेरी थाने का अधिकारी बताया और दावा किया कि पीड़ित के आधार कार्ड का इस्तेमाल मनी लॉन्ड्रिंग में हुआ है। उसके खिलाफ केस दर्ज होने की बात कही गई।
- वीडियो कॉल पर डिजिटल अरेस्ट:
- कुछ ही मिनटों बाद एक “पुलिस अधिकारी” ने वीडियो कॉल की। उसने पुलिस वर्दी पहनी थी और रविंद्र को डिजिटल अरेस्ट में रखने का दावा करते हुए धमकाया: “गिरफ्तारी के आदेश जारी हैं। अगर किसी को बताया तो हमारी टीम तुम्हारे घर पहुंच जाएगी ।”
- झांसे में लेकर पैसे ट्रांसफर कराए:
- ठगों ने रविंद्र से बैंक खाते की डिटेल्स मांगी और आश्वासन दिया कि सीबीआई जांच के बाद पैसे वापस कर दिए जाएंगे। 21 जून को “सीबीआई अधिकारी” के निर्देश पर रविंद्र ने इंडसइंड बैंक, चिनहट शाखा से दो अलग खातों में ₹47 लाख ट्रांसफर किए।
- संदेह और रिपोर्ट:
- शक होने पर रविंद्र ने बेटी को स्थिति बताई। उसकी सलाह पर साइबर थाने में शिकायत दर्ज कराई गई। साइबर टीम अब मोबाइल नंबर और बैंक खातों के आधार पर ठगों को ट्रैक कर रही है।
🚨 पुलिस की कार्रवाई और चुनौतियां
- FIR दर्ज: साइबर अपराध शाखा ने धारा 420 (छल) और आईटी एक्ट के तहत मामला दर्ज किया है।
- जांच के निशाने पर: ठगों द्वारा इस्तेमाल किए गए बैंक खाते और वीडियो कॉल का स्रोत।
- पैटर्न की पहचान: यूपी में हाल में ऐसे मामले बढ़े हैं। 10 जून को प्रयागराज में नौकरी के झांसे में ₹12.5 लाख की ठगी हुई थी , जबकि लखनऊ में ही व्हाट्सएप के जरिए शेयर ट्रेडिंग फ्रॉड में एक व्यापारी से ₹1.34 करोड़ ठगे गए।
🛡️ विशेषज्ञ सुझाव: ऐसे बचें साइबर ठगी से
- कानूनी प्रक्रिया याद रखें: पुलिस कभी फोन पर गिरफ्तारी की धमकी नहीं देती या वीडियो कॉल पर जमानत नहीं मांगती।
- निजी जानकारी गोपनीय रखें: बैंक डिटेल्स, आधार नंबर, या ओटीपी किसी से साझा न करें।
- क्रॉस-वेरिफाई करें: कोई भी दावा स्थानीय थाने या साइबर हेल्पलाइन (1930) से जांचें।
- परिवार से सलाह लें: रविंद्र की तरह संदेह होने पर तुरंत किसी विश्वसनीय व्यक्ति को सूचित करें।
📢 साइबर सुरक्षा अधिकारी बृजेश यादव का चेतावनी: “अनजान नंबरों से आए शेयर ट्रेडिंग, मनी ट्रांसफर या कानूनी धमकी वाले प्रस्तावों पर भरोसा न करें। तुरंत पुलिस को सूचित करें” ।
🔍 आगे की राह
लखनऊ साइबर क्राइम यूनिट ने घटना की गंभीरता को देखते हुए विशेष टीम गठित की है। ठगों के आईपी एड्रेस, मोबाइल नंबर और बैंक खातों का डिजिटल फॉरेंसिक विश्लेषण किया जा रहा है। पुलिस का मानना है कि यह गैंग राज्य में सक्रिय है और इसी मॉडस ऑपरेंडी से पहले भी ठगी के मामले सामने आ चुके हैं।
इस घटना ने साइबर सुरक्षा के प्रति जागरूकता की जरूरत को फिर उजागर किया है। उत्तर प्रदेश पुलिस ने नागरिकों से अपील की है कि वे किसी भी संदिग्ध संपर्क की सूचना तुरंत हेल्पलाइन 1930 या स्थानीय साइबर थाने में दें।
ℹ️ अतिरिक्त जानकारी
- साइबर शिकायत दर्ज कराने का तरीका: उत्तर प्रदेश साइबर क्राइम पोर्टल या एप “साइबर क्राइम रिपोर्टिंग सिस्टम” का उपयोग करें।
- राष्ट्रीय साइबर हेल्पलाइन: 1930 (24×7 उपलब्ध)।