Investigative Reporting: देवरिया में जलते खेत को देखकर किसान बिलख रहे है। गेंहू की फसल घर जाने के बजाय खेत में ही जलकर राख हो जा रही है। यह कोई पहली घटना नहीं है। बल्कि साल दर साल आग से फसल जलने का मामला कम होने की वजाय बढ़ता ही जा रहा है। केवल देवरिया ही नही बल्कि पुरे पूर्वांचल में आग का कहर पिछले कई वर्षो से बदस्तूर जारी है। आइये जानते है इसके पीछे का कारण डिटेल्स में।
देवरिया में जलते खेत को देखकर भर आई किसान की आंखे!
गेहूँ की कटाई का मौसम आते ही पूर्वांचल के खेत आगजनी की भेंट चढ़ रहे हैं। यहां यह बता दे कि देवरिया के रुद्रपुर का अधिकांश हिस्सा बाढ़ की चपेट में रहता है जिस कारण यहां के लोगो की मुख्य फसल गेंहू है लेकिन यह फसल भी घर जाने के बजाय खेत में ही जल जा रही है। आकडे बताते है कि इस साल अब तक 300+ एकड़ गेंहू की फसल जल कर खेत में ही राख हो गई है।
पिड़रा में आधा दर्जन किसानो की फसल जली।
बाढ़ क्षेत्र में आने वाला पिड़रा गांव देवरिया जिले के रुद्रपुर तहसील में स्थित है। यहां शनिवार दोपहर लगी आग से लगभग आधा दर्जन किसानो की खड़ी गेंहू की फसल जल गई। फिलहाल आग कैसे लगी, इसकी जानकारी अभी तक नहीं मिल पाई है।
मालुम हो शुक्रवार को दोआबा के तिघरा खैरवा, लालपुरा परसिया के गांव में आग लगने से कई किसानो की फसल जल गई थी। इसके पहले दोआबा के जगदीशपुर भेलउर में आग से फसल जल कर राख हो गई थी।
पुर्वांचल में डरा रहा है यह आंकड़ा।
2014 से 2025 तक केवल पूर्वांचल में 50,000+ एकड़ फसल जल चुकी है, लेकिन न तो सरकारी अधिकारी मौके पर तैनात होते हैं, न ही फायर ब्रिगेड की गाड़ियाँ समय पर पहुँचती हैं।
पूर्वांचल में गेहूँ के खेतों में आगजनी के मुख्य कारण
1. कंबाइन हार्वेस्टर
- ओवरहीटिंग इंजन: लगातार चलने से इंजन/बेयरिंग का तापमान 150-200°C तक पहुँच जाता है, जो सूखे भूसे को तुरंत आग पकड़ा देता है।
- हॉट एक्जॉस्ट पाइप: मशीन का निकास तंत्र (Exhaust) सीधे भूसे के संपर्क में आता है।
- हाइड्रोलिक लीक: रिसते हुए तेल + गर्मी = आग का खतरा।
2. भूसा मशीनें
- ये मशीनें गेहूँ के डंठलों को बारीक भूसा बनाती हैं, जो हवा में उड़कर बिजली के तारों से टकराता है। मशीन के ब्लेड/मोटर से निकली चिंगारी से धधक उठता है।
- भूसा मशीनों से निकला 1 ग्राम भूसा भी 300°C पर 3 सेकंड में जल सकता है (ICAR अध्ययन)।
3. बिजली के तारों से चिंगारी
- ओवरहेड तारों से चिंगारी: टूटे हुए तार/शॉर्ट सर्किट से निकली चिंगारी सूखे भूसे को जला देती है।
- तारों और फसल के बीच कम दूरी: यूपी में 70% ग्रामीण बिजली लाइनों की फसल से दूरी सुरक्षा मानकों (2.5 मीटर) से कम है।
तुलनात्मक विश्लेषण (कारणों का प्रभाव)
कारण | आगजनी में योगदान (%) | प्रमुख प्रभावित क्षेत्र |
---|---|---|
कंबाइन हार्वेस्टर | 60% | पूर्वांचल, बुंदेलखंड |
भूसा मशीन | 25% | आजमगढ़, गोरखपुर |
बिजली के तार | 15% | तराई क्षेत्र (बहराइच, बलरामपुर) |
पूर्वांचल (पूर्वी उत्तर प्रदेश) के जिलों में फायर ब्रिगेड वाहनों की संख्या अत्यंत अपर्याप्त है, जो आगजनी जैसी घटनाओं से निपटने में बड़ी बाधा उत्पन्न करती है। यहाँ अनुमानित आँकड़े और समस्याएँ दी गई हैं:
1. फायर ब्रिगेड वाहनों की अनुमानित संख्या (पूर्वांचल)
जिला | फायर स्टेशन | वाहनों की संख्या (अनुमान) |
---|---|---|
गोरखपुर | 2-3 | 8-10 |
वाराणसी | 2 | 6-8 |
आजमगढ़ | 1 | 3-4 |
बलिया | 1 | 2-3 |
देवरिया | 1 | 2-3 |
कुशीनगर | 1 | 2-3 |
मऊ | 1 | 2-3 |
बस्ती | 1 | 2-3 |
कुल अनुमान: पूरे पूर्वांचल (20+ जिलों) में 50-70 फायर टेंडर (अधिकांश पुराने और रखरखाव के अभाव में)।
समस्याएँ: क्यों यह संख्या नाकाफी है?
जनसंख्या वनाम संसाधन असंतुलन:
- पूर्वांचल की जनसंख्या लगभग 5 करोड़ है लेकिन लेकिन प्रति 1 लाख आबादी पर केवल 0.1 फायर वाहन है।
- जबकि राष्ट्रीय मानक के अनुसार 50,000 की जनसंख्या पर 1 वाहन होना चाहिए।
ग्रामीण क्षेत्रों तक पहुँच न होना: 90% फायर स्टेशन शहरों में, जबकि आगजनी की 70% घटनाएँ गाँवों में होती हैं।
अप्रचलित दमकल गाड़िया
अधिकांश वाहन 15-20 साल पुराने, जिनमें पानी की टंकी की क्षमता केवल 4,000-5,000 लीटर ही हैं। ऐसे में अंदाजा लगाया जा सकता है कि जलते खेत के पीछे की असल सच्चाई क्या है?
सरकार को चाहिए कि इस ओर ध्यान दे, क्योंकि भारत एक ऐसा देश है जहां कि 79 करोड़ आबादी पौष्टिक आहार से वंचित है। जिस देश मे अनाज की पूजा होती है उस देश मे इस तरह की घटना सही मायने में राष्ट्रीय अपराध है।