क्या भारत की आत्मनिर्भरता खतरे है हमारी अर्थव्यवस्था अब विदेशी कंपनियों के हाथों में जा रही है? अडानी ग्रुप ने अपने अरबों डॉलर के एसेट्स ब्लैकस्टोन, GQG जैसी अमेरिकी कंपनियों को बेचे। जो सच्चाई सामने आ रही है, अगर ये सही है तो अपनी संप्रभुता बचाने के लिए आवाज़ खुद ही उठानी पड़ेगी।
“मेक इन इंडिया” या “सेल टू अमेरिका”?
ज़रा सोचिए… कल तक जो एयरपोर्ट, बंदरगाह, सड़कें और बिजली कंपनियां ‘भारतीय आत्मनिर्भरता’ की मिसाल बताई जा रही थीं, आज वे अमेरिकी कंपनियों के हाथों में जा रही हैं। अडानी ग्रुप, जिसे मोदी सरकार ने देश की सबसे महत्वपूर्ण संपत्तियां सौंपी थीं, अब भारी कर्ज़ के कारण अपने एसेट्स (संपत्तियां) अमेरिकी वित्तीय दिग्गजों ब्लैकस्टोन (Blackstone) और GQG पार्टनर्स को बेच रहा है।
यह सिर्फ एक कारोबारी सौदा नहीं है, यह भारत की आर्थिक संप्रभुता (Economic Sovereignty) पर सबसे बड़ा सवाल है।
उपरोक्त बाते व तथ्यों को हम युही नही बोल रहे हूँ। दरअसल देश का फ्रंट मीडिया तो ऐसी खबरे दिखता नही। जब सब कुछ हो जाता है तब कोरम पूरा करने के लिए छोटी सी न्यूज़ चला दी जाती है।
आपको याद होगा हिण्डनबर्ग रिपोर्ट के समय यही हुआ था जब तक लोग कुछ समझ पाते उनके पोर्टफोलियो निचे चले गए। लेकिन इतनी बड़ी खबर को मीडिया पी गया। जब कुछ यूट्यूबर ने अपने वीडियो के माध्यम से उजागर किया तो असल सच्चाई सामने आई और फ्रंट मीडिया ने इसे दिखाया। लेकिन तब दिखाने का क्या फायदा, ‘जब चिड़िया चुग गई खेत।
आज जब एक्स खंगाल रहा था तो एक यूजर जिसका नाम @Murti_Nain ने एक पोस्ट शेयर की है। जिसकी हैडिंग कुछ इस तरह है, ‘कुर्सी की पेटी बांध लीजिए मौसम बिगड़ने वाला है।’
अपनी बात को सही साबित करने के लिए उन्होंने एक वीडियो भी शेयर किया है। यह वीडियो ‘द पब्लिक इंडिया’ का है। बता दे, इस यूट्यूब चैनल के 11.4 लाख लोगो ने subscribe किया हुआ है। उसी को केंद्रित करते हुए व कुछ अन्य जगहों से डेटा प्राप्त कर हम यह लेख आपके सामने लेकर आये है। कृपया पूरा पढ़े और
किसने बेची देश की संपत्ति?
- पहले सरकारी कंपनियों का निजीकरण हुआ – एयरपोर्ट, बंदरगाह, बिजली, सीमेंट सब कुछ अडानी को दिया गया।
- फिर अडानी ने भारी कर्ज़ लिया और अब वही संपत्तियां विदेशी कंपनियों को बेच रहा है।
- ब्लैकस्टोन और GQG जैसी अमेरिकी कंपनियां अब भारत की इंफ्रास्ट्रक्चर कंपनियों में बड़ा दांव लगा रही हैं।
क्या ये सिर्फ एक इत्तेफाक है, या पहले से ही सेट किया गया गेम?
विदेशी कंपनियों का बढ़ता शिकंजा
ब्लैकस्टोन, जिसकी पकड़ दुनिया की सबसे ताकतवर सरकारों पर है, अब भारत में अडानी के एयरपोर्ट, बंदरगाह और बिजली कंपनियों में हिस्सेदारी खरीद रही है।
ब्लैकरॉक (BlackRock), जो अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव तक को प्रभावित करता है, अब रिलायंस और अडानी के जरिए भारत के बाजार में घुस रहा है।
- क्या अब भारत की अर्थव्यवस्था विदेशी फंड मैनेजर्स के इशारों पर चलेगी?
- क्या हमारी संसद और सरकार भी अब विदेशी लॉबियों के इशारों पर नाचेगी?
- “मेक इन इंडिया” का नारा देकर “सेल टू अमेरिका” की साजिश रची गई?
विपक्ष और मीडिया चुप क्यों?
अगर यह इतना बड़ा सौदा है, तो मुख्यधारा की मीडिया और विपक्ष इस पर सवाल क्यों नहीं उठा रहे?
- क्या विपक्ष भी इस खेल में शामिल है?
- क्या विदेशी फंडिंग से चलने वाले मीडिया हाउस इस पर बोलने से डर रहे हैं?
- क्या जनता को अंधेरे में रखा जा रहा है?
भारत का भविष्य खतरे में?
अगर भारत की इंफ्रास्ट्रक्चर कंपनियां विदेशी हाथों में चली गईं, तो क्या होगा?
- तेल, गैस, बिजली, टेलीकॉम – सबका दाम विदेशी कंपनियां तय करेंगी।
- भारत के सामरिक संसाधन (Strategic Assets) विदेशी ताकतों के नियंत्रण में आ जाएंगे।
- आर्थिक फैसले अब भारत के बजाय वॉल स्ट्रीट (Wall Street) पर तय होंगे।
भारत की आत्मनिर्भरता पर सरकार से 5 सवाल
- पहले सरकारी संपत्तियां अडानी को मिलीं, अब अडानी की संपत्तियां अमेरिका को – क्या ये पहले से तय था?
- भारत के इंफ्रास्ट्रक्चर और संसाधनों को विदेशी कंपनियों को क्यों सौंपा जा रहा है?
- क्या ब्लैकस्टोन और ब्लैकरॉक जैसी अमेरिकी कंपनियां भारत के नीतिगत फैसलों को प्रभावित करेंगी?
- क्या सरकार बताएगी कि यह “आत्मनिर्भर भारत” का मॉडल कैसे है?
- क्या आने वाले दिनों में हमारी संसद भी विदेशी लॉबियों के इशारे पर चलेगी?
जागरूक बनें, सवाल करें क्योंकि बात यहां अब भारत की आत्मनिर्भरता पर है
अगर हम आज नहीं जागे, तो कल हमारी इकोनॉमी, हमारे संसाधन और हमारी स्वतंत्रता विदेशी ताकतों के हाथों में चली जाएगी। यह समय सवाल पूछने का है, यह समय अपने देश के फ्यूचर के लिए खड़े होने का है।
बेरोजगारी का दंश झेल रहा देश का युवा आज दिनभर सोशल मीडिया व गूगल सर्च इंजन से सवाल कर रहा है कि, ‘पैसे कैसे कमाए?’ यह कीवर्ड इतना सर्च हो रहा है कि आज देश का टॉप सर्च कीवर्ड बन गया है।
अंत मे इतना कहेंगे, ‘अगर यह सब कुछ सही है तो देश की फ्रंट मीडिया को आगे आना चाहिए और सच्चाई बयां करनी चाहिए क्योंकि सवाल यहां भारत की आत्मनिर्भरता पर है।