भारत की स्वच्छता क्रान्ति: स्वच्छ भारत मिशन के आगे की राह, एक ऐसी राह जहाँ संख्या नहीं, सोच बदलने की ज़रूरत है।

स्वच्छता के प्रतीक और जमीनी हकीकत
“शौचालय बनाना आज़ादी से बढ़कर है” — महात्मा गांधी का यह विचार आज भी प्रासंगिक है। 2014 में शुरू हुए स्वच्छ भारत मिशन ने 8.7 करोड़ शौचालयों का निर्माण कर एक रिकॉर्ड कायम किया । परंतु 2025 की रिपोर्ट्स बताती हैं कि:
- 73% घरों में शौचालय होने के बावजूद कम से कम एक सदस्य खुले में शौच जाता है ।
- मनोहरगंज (उत्तर प्रदेश) जैसे गाँवों में सामुदायिक शौचालय तालाबंद पाए जाते हैं ।
- अम्बेडकरनगर में स्कूल का मैदान शौच के लिए इस्तेमाल हो रहा है ।
ये आँकड़े एक सवाल उठाते हैं: क्या शौचालय बनाना ही पर्याप्त है?
1. स्वच्छ भारत मिशन — उपलब्धियाँ और विसंगतियाँ
कागज़ी शौचालय बनाम जमीनी हकीकत
- लक्ष्य vs वास्तविकता: 12.5 करोड़ शौचालयों के लक्ष्य के विपरीत, 2011 की जनगणना में सिर्फ 5.16 करोड़ शौचालय ही दर्ज हुए ।
- निर्मल गाँवों का खुलासा: 2008 के सर्वे में 132 में से केवल 6 गाँव ही वास्तव में खुले में शौच से मुक्त पाए गए ।
अपूर्ण बुनियादी ढाँचे के कारण
- मनोहरगंज का सच: ग्रामीणों के अनुसार, शौचालय सुबह बंद मिलते हैं और आसपास गंदगी का अंबार लगा रहता है ।
- उपयोग में बाधाएँ: पानी की कमी, दरवाजों का अभाव और रखरखाव के अभाव में शौचालयों का उपयोग लकड़ी रखने या पशु बाँधने तक सीमित है ।
विशेषज्ञ दृष्टिकोण:
“स्वच्छता अभियान को सफल बनाने के लिए लोगों को शिक्षित और प्रेरित करना ज़रूरी है, न कि उन्हें धिक्कारना।” — सोपान जोशी (पुस्तक: जल-थल-मल)
2. जल प्रदूषण और रेलवे की चुनौतियाँ
रेलवे: स्वच्छता का सबसे बड़ा दुश्मन?
- पटरियों पर मल का संकट: 42,000 रेल डिब्बों से रोज़ाना गिरने वाला मल-मूत्र पटरियों को गला देता है, जिससे दुर्घटनाओं का खतरा बना रहता है ।
- आर्थिक भार: पटरियों की मरम्मत और सफाईकर्मियों की तैनाती पर हजारों करोड़ रुपये का खर्च ।
नदियों का प्रदूषण: शौचालयों का अंधेरा पहलू
- जल-संसाधन दोहन: फ्लश शौचालयों के कारण एक व्यक्ति प्रतिदिन 70 लीटर पानी बर्बाद करता है।
- सीवेज का जहर: 80% भारतीय नदियाँ शौचालयों के अपशिष्ट से प्रदूषित, जिससे डायरिया और हैजा जैसी बीमारियाँ फैलती हैं ।
3. सामुदायिक शौचालयों की विफलता के मूल कारण

प्रशासनिक उदासीनता के उदाहरण
- मनोहरगंज (रायबरेली):
- स्वच्छ भारत मिशन के तहत बना शौचालय हमेशा तालाबंद रहता है ।
- ग्रामीणों को खुले में शौच के लिए मजबूर होना पड़ता है।
- इंदईपुर (अम्बेडकरनगर):
- कॉलेज का खेल मैदान शौच स्थल में तब्दील हो गया ।
- टूटी चारदीवारी से आवारा पशुओं और लोगों का अवैध प्रवेश।
डेटा के आईने में सच्चाई
समस्या | स्थान | प्रभाव |
---|---|---|
शौचालयों का अनुपयोग | उत्तर प्रदेश | 73% घरों में शौचालय होने के बावजूद खुले में शौच |
रखरखाव अभाव | बिहार (पटना) | गांधी घाट जैसे पर्यटन स्थलों पर शौचालय/पेयजल की कमी |
अवसंरचना उपेक्षा | अम्बेडकरनगर | विद्यालयों में ध्वस्त भवन और अतिक्रमण |
4. समाधान की राह — टिकाऊ तकनीक और जनभागीदारी

जलरहित शौचालय: एक क्रांतिकारी विकल्प
- चीनी मॉडल की सीख: Linyi Limo कंपनी के इको-फ्रेंडली टॉयलेट बिना पानी के काम करते हैं और कम रखरखाव लागत वाले हैं ।
- भारत के लिए लाभ:
- जल संरक्षण (प्रति व्यक्ति 70 लीटर/दिन बचत)।
- मल को जैविक खाद में बदलने की क्षमता ।
सफलता की कहानियाँ: मोतिहारी मॉडल
- क्यूआरटी (क्विक रिस्पांस टीम):
- 80 सदस्यों की टीम ने 46 वार्डों में नालों की 100% सफाई हासिल की ।
- जल जमाव का 24 घंटे के भीतर निवारण ।
नवाचार का केस स्टडी:
“जैविक कूड़े-कचरे से खाद बनाने की तकनीक स्वच्छता और कृषि को जोड़ती है।” — प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (इंडोसैन समारोह, 2016)
5. भविष्य की रणनीति — 5 सूत्री कार्ययोजना
- सामुदायिक भागीदारी:
- शौचालयों का डिजाइन और स्थान ग्राम सभा की सहमति से तय हो।
- तकनीकी एकीकरण:
- जलरहित शौचालयों को स्वच्छ भारत मिशन-2.0 में अनिवार्य बनाना ।
- मॉनिटरिंग सिस्टम:
- शौचालयों के उपयोग पर रीयल-टाइम डेटा एकत्रित करने के लिए ऐप आधारित समाधान।
- अपशिष्ट प्रबंधन:
- रेलवे डिब्बों में बायो-टॉयलेट और सेप्टिक टैंक अनिवार्य करना ।
- जागरूकता अभियान:
- “मेरा शौचालय, मेरी जिम्मेदारी” जैसे अभियानों के माध्यम से व्यवहार परिवर्तन।
स्वच्छता की नई परिभाषा गढ़ने का समय
स्वच्छ भारत की लड़ाई सिर्फ शौचालय निर्माण से नहीं जीती जा सकती। इसके लिए ज़रूरी है:
- समग्र दृष्टिकोण: जल संरक्षण, अपशिष्ट प्रबंधन और सामुदायिक भागीदारी को एक साथ जोड़ना।
- स्थानीय समाधान: जैसे मोतिहारी की क्यूआरटी टीम ।
- तकनीक का उपयोग: चीन के जलरहित मॉडल जैसे नवाचार ।
“जब तक शौचालयों को समाज की ‘जरूरत’ नहीं, ‘गर्व’ बना दिया जाता है, तब तक गांधीजी का स्वच्छ भारत अधूरा रहेगा।”
स्रोत: सैनिटेशन पर शोध पत्र, स्वच्छ भारत मिशन रिपोर्ट, और स्मार्टख़बरी डॉट कॉम की जमीनी रिपोर्ट्स के विश्लेषण पर आधारित ।