दिल्ली/वाशिंगटन, 20 सितंबर: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने इमिग्रेशन पॉलिसी में बड़े बदलाव करते हुए H-1B वीजा के लिए 100,000 डॉलर (करीब 83 लाख रुपये) की सालाना फीस लगाने का ऐलान किया है। यह फीस 21 सितंबर, 2025 से लागू होगी और नई आवेदनों के साथ-साथ रिन्यूअल पर भी लागू होगी। ट्रम्प प्रशासन का कहना है कि यह कदम अमेरिकी नौकरियों की सुरक्षा के लिए उठाया गया है, ताकि विदेशी वर्कर्स का दुरुपयोग रोका जा सके।
ट्रम्प ने शुक्रवार को व्हाइट हाउस में इस एग्जीक्यूटिव ऑर्डर पर हस्ताक्षर किए। इसके साथ ही उन्होंने ‘ट्रम्प गोल्ड कार्ड’ और ‘ट्रम्प प्लेटिनम कार्ड’ जैसी नई योजनाएं लॉन्च की हैं। गोल्ड कार्ड के लिए आवेदकों को 1 मिलियन डॉलर (करीब 83 करोड़ रुपये) का योगदान देना होगा, जिसके बदले उन्हें अमेरिका में तेजी से रेजिडेंसी मिलेगी। प्लेटिनम कार्ड के लिए 5 मिलियन डॉलर की जरूरत होगी, जो धनी विदेशियों को साल में 270 दिनों तक अमेरिका में रहने की अनुमति देगा, बिना अमेरिकी आय पर टैक्स चुकाए। कॉर्पोरेट गोल्ड कार्ड 2 मिलियन डॉलर से ज्यादा के निवेशकों के लिए होगा।
H-1B वीजा में बदलाव का कारण
अमेरिकी कॉमर्स सेक्रेटरी हॉवर्ड लुटनिक ने कहा कि यह बदलाव अमेरिका में केवल सबसे योग्य और उच्च आय वाले वर्कर्स को जगह देंगे। उन्होंने बताया कि पहले H-1B वीजा की फीस महज 215 से 6,460 डॉलर तक थी, लेकिन अब यह बदलाव छोटी कंपनियों को विदेशी टैलेंट हायर करने से रोक सकता है। ट्रम्प ने कहा, “हम अमेरिकी नौकरियों को बचाना चाहते हैं और केवल बेहतरीन टैलेंट को आमंत्रित करेंगे। इस फीस से मिलने वाली रकम टैक्स कट और कर्ज चुकाने में इस्तेमाल होगी।”
भारतीय आईटी सेक्टर पर क्या असर?
यह बदलाव सबसे ज्यादा भारतीय पेशेवरों को प्रभावित करेगा, क्योंकि H-1B वीजा पाने वालों में करीब 75 फीसदी भारतीय होते हैं, मुख्य रूप से आईटी और इंजीनियरिंग फील्ड से। 2025 में अमेजन, टीसीएस, माइक्रोसॉफ्ट, मेटा, एपल और गूगल जैसी कंपनियां सबसे ज्यादा H-1B स्पॉन्सर करती हैं। अब इतनी ऊंची फीस से कंपनियां केवल टॉप-लेवल कर्मचारियों को ही अमेरिका बुला सकेंगी, जिससे एंट्री-लेवल और मिड-लेवल भारतीय इंजीनियर्स के लिए मौके कम हो सकते हैं।
भारतीय आईटी कंपनियां जैसे इंफोसिस, टीसीएस और विप्रो हर साल हजारों कर्मचारियों को H-1B पर अमेरिका भेजती हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि इससे कंपनियां जॉब्स को ऑफशोर कर सकती हैं, यानी भारत या अन्य देशों में शिफ्ट कर सकती हैं। कुछ का कहना है कि यह अमेरिका की इनोवेशन क्षमता को नुकसान पहुंचाएगा, जबकि भारत जैसे देशों को फायदा हो सकता है, क्योंकि टैलेंट कनाडा, ऑस्ट्रेलिया या यूरोप की ओर रुख कर सकता है।
गोल्ड कार्ड की आवेदन प्रक्रिया
ट्रम्प गोल्ड कार्ड के लिए आधिकारिक वेबसाइट trumpcard.gov पर आवेदन किया जा सकता है। आवेदकों को पहले प्रोसेसिंग फीस चुकानी होगी, फिर डिपार्टमेंट ऑफ होमलैंड सिक्योरिटी की जांच से गुजरना होगा। यह योजना मौजूदा EB-5 इन्वेस्टर वीजा को बदल सकती है, लेकिन आलोचकों का कहना है कि यह अमीरों को प्राथमिकता देती है और सामान्य स्किल्ड वर्कर्स को नुकसान पहुंचाती है।
ट्रम्प प्रशासन का दावा है कि H-1B प्रोग्राम का दुरुपयोग हो रहा था, जहां कंपनियां सस्ते लेबर के लिए विदेशी वर्कर्स को प्राथमिकता देती थीं। एलन मस्क जैसे समर्थक कहते हैं कि यह प्रोग्राम ग्लोबल टैलेंट को आकर्षित करता है, लेकिन नए नियम से छोटे स्टार्टअप्स को झटका लग सकता है।
यह बदलाव अमेरिका की इमिग्रेशन नीति में बड़ा शिफ्ट है, जो वैश्विक टैलेंट फ्लो को प्रभावित करेगा। प्रभावित लोग USCIS से संपर्क करें या कानूनी सलाह लें।