ब्रिटेन की एक संसदीय समिति ने भारत को उन 12 देशों की लिस्ट में शामिल किया, जिन पर विदेशी धरती पर दमनकारी गतिविधियों का आरोप है। क्या है इस रिपोर्ट का सच और भारत की चुप्पी का राज?
लंदन की सड़कों से लेकर दिल्ली के गलियारों तक, एक नई बहस ने जोर पकड़ लिया है। ट्रांस नेशनल रिप्रेशन इन द यूके की ताजा रिपोर्ट ने भारत को उन देशों की सूची में रखा है, जो कथित तौर पर ब्रिटेन की धरती पर रहने वाले लोगों को डराने और उनकी आवाज दबाने की कोशिश कर रहे हैं।
ब्रिटेन की जॉइंट कमेटी ऑन ह्यूमन राइट्स (JCHR) ने गुरुवार को यह सनसनीखेज रिपोर्ट जारी की, जिसमें भारत के साथ-साथ चीन, रूस, तुर्की जैसे देशों का नाम भी शामिल है। इस रिपोर्ट में खालिस्तान समर्थक संगठन ‘सिख फॉर जस्टिस’ (SFJ) का जिक्र खास तौर पर किया गया है, जिसे भारत ने पहले ही गैरकानूनी घोषित कर रखा है।
लेकिन सवाल यह है कि क्या यह आरोप भारत की छवि को धूमिल करने की साजिश है, या इसमें कुछ सचाई भी छिपी है? आइए, इस मामले की तह तक जाते हैं।
ट्रांस नेशनल रिप्रेशन क्या है?
विदेशी धरती पर डर का खेल
ट्रांस नेशनल रिप्रेशन यानी सीमाओं के पार जाकर किसी व्यक्ति या समूह को डराना, उनकी आवाज दबाना या उनकी आजादी छीनना। JCHR की इस रिपोर्ट के मुताबिक, कई देश ब्रिटेन में रहने वाले अपने नागरिकों या समुदायों को निशाना बना रहे हैं। इसमें धमकियां देना, निगरानी करना, या फिर इंटरपोल जैसे अंतरराष्ट्रीय संगठनों का दुरुपयोग शामिल है।
रिपोर्ट में दावा किया गया है कि ऐसी गतिविधियां न केवल मानवाधिकारों का उल्लंघन हैं, बल्कि ब्रिटेन की संप्रभुता के लिए भी खतरा हैं। कमेटी ने ब्रिटिश सरकार से मांग की है कि वह इस मामले में सख्त कदम उठाए और प्रभावित लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित करे।
भारत पर क्यों लगे आरोप?
सिख फॉर जस्टिस और खालिस्तान कनेक्शन
रिपोर्ट में भारत के संदर्भ में ‘सिख फॉर जस्टिस’ (SFJ) का नाम प्रमुखता से लिया गया है। यह संगठन खालिस्तान आंदोलन को बढ़ावा देने के लिए जाना जाता है और भारत ने इसे गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (UAPA) के तहत प्रतिबंधित कर रखा है। SFJ पर भारत में आतंकी गतिविधियों को प्रोत्साहन देने और सिख समुदाय को भड़काने का आरोप है।
JCHR का कहना है कि उन्हें ऐसे ‘विश्वसनीय सबूत’ मिले हैं, जिनके आधार पर भारत पर ब्रिटेन में SFJ से जुड़े लोगों को निशाना बनाने का आरोप लगाया गया है। हालांकि, ये सबूत क्या हैं, इसकी विस्तृत जानकारी सार्वजनिक नहीं की गई है। इससे कई सवाल उठ रहे हैं कि क्या यह आरोप राजनीति से प्रेरित हैं या वाकई में कोई ठोस आधार है।
भारत की चुप्पी और संभावित जवाब
भारत के विदेश मंत्रालय ने अभी तक इस रिपोर्ट पर कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया है। लेकिन जानकारों का मानना है कि भारत जल्द ही इसका जवाब दे सकता है। पहले भी जब पश्चिमी देशों ने भारत पर ऐसे आरोप लगाए हैं, तो भारत ने इसे अपनी आंतरिक सुरक्षा और आतंकवाद से लड़ाई का हिस्सा बताया है। संभव है कि भारत इस मामले में भी यही रुख अपनाए और SFJ को आतंकी संगठन करार देकर अपनी स्थिति स्पष्ट करे।
ब्रिटेन में बढ़ते मामले और MI5 की जांच
48% बढ़े ट्रांस नेशनल रिप्रेशन के मामले
रिपोर्ट में ब्रिटेन की सुरक्षा एजेंसी MI5 के हवाले से बताया गया है कि 2022 के बाद से ट्रांस नेशनल रिप्रेशन के मामलों में 48% की बढ़ोतरी हुई है। यह आंकड़ा चौंकाने वाला है और यह दर्शाता है कि ब्रिटेन की धरती पर विदेशी सरकारों की गतिविधियां बढ़ रही हैं।
MI5 की जांच में यह भी सामने आया है कि कुछ देश इंटरपोल के रेड नोटिस का दुरुपयोग कर रहे हैं। रेड नोटिस का इस्तेमाल आमतौर पर अपराधियों को पकड़ने के लिए किया जाता है, लेकिन कुछ देश इसका इस्तेमाल असंतुष्टों या विरोधियों को निशाना बनाने के लिए कर रहे हैं। इस सूची में चीन, रूस और तुर्की का नाम सबसे ऊपर है, लेकिन भारत का नाम भी शामिल होना चर्चा का विषय बन गया है।
प्रभावित लोगों की जिंदगी पर असर
रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि ऐसी कार्रवाइयों का शिकार होने वाले लोग मानसिक तनाव, डर और असुरक्षा की भावना से गुजर रहे हैं। उनकी बोलने की आजादी, घूमने की आजादी और सामान्य जिंदगी जीने की क्षमता पर असर पड़ रहा है। JCHR ने इसे मानवाधिकारों का गंभीर उल्लंघन बताया है और ब्रिटिश सरकार से प्रभावित लोगों के लिए सुरक्षा उपाय करने की मांग की है।
क्या कहते हैं विशेषज्ञ?
भारत की छवि पर असर और भविष्य
विदेश नीति के विशेषज्ञों का मानना है कि यह रिपोर्ट भारत-ब्रिटेन संबंधों पर असर डाल सकती है। दोनों देशों के बीच हाल के वर्षों में व्यापार, रक्षा और तकनीक के क्षेत्र में सहयोग बढ़ा है। ऐसे में इस तरह के आरोप तनाव पैदा कर सकते हैं।
कुछ विशेषज्ञ इसे पश्चिमी देशों की रणनीति का हिस्सा मान रहे हैं, जिसमें भारत को कटघरे में खड़ा कर उसकी बढ़ती वैश्विक ताकत को कम करने की कोशिश की जा रही है। वहीं, कुछ का कहना है कि भारत को इस मामले में पारदर्शिता बरतनी चाहिए और अपने रुख को दुनिया के सामने रखना चाहिए।
ब्रिटेन की संसदीय समिति की मांग
मानवाधिकारों की रक्षा के लिए सख्त कदम
नेशनल रिप्रेशन के मामलों की गहन जांच करे और विदेशी सरकारों की ऐसी गतिविधियों पर रोक लगाए। कमेटी ने यह भी कहा है कि ब्रिटेन को उन देशों के खिलाफ कूटनीतिक और कानूनी कदम उठाने चाहिए, जो उसकी धरती पर मानवाधिकारों का उल्लंघन कर रहे हैं।
आगे की राह
इस पूरी कहानी में कई सवाल अनुत्तरित हैं। क्या भारत वाकई में ब्रिटेन की धरती पर दमनकारी गतिविधियां चला रहा है, या यह एक सुनियोजित साजिश है? क्या सिख फॉर जस्टिस जैसे संगठनों के जरिए भारत की छवि को नुकसान पहुंचाने की कोशिश हो रही है? और सबसे बड़ा सवाल, भारत इस मामले में क्या रुख अपनाएगा?
फिलहाल, यह मामला अंतरराष्ट्रीय मंचों पर चर्चा का विषय बन चुका है। भारत को अपनी स्थिति स्पष्ट करने और इस मामले में पारदर्शिता बरतने की जरूरत है। अगर आप इस मुद्दे पर अपनी राय रखना चाहते हैं, तो नीचे कमेंट करें और हमें बताएं कि आप इस रिपोर्ट को कैसे देखते हैं। साथ ही, ऐसी ही गहन और विश्वसनीय खबरों के लिए हमारे साथ जुड़े रहें।