नेपाल में जेनजी आंदोलन: काठमांडू जलता हुआ शहर, सरकारी इमारतों में आग, 22 मौतें – पूरी कहानी
काठमांडू: नेपाल की राजधानी काठमांडू 8-9 सितंबर, 2025 को एक जनक्रांति का गवाह बना, जिसने देश की राजनीतिक व्यवस्था को हिलाकर रख दिया। जेनजी आंदोलन (Gen Z Protest) के नाम से मशहूर इस विद्रोह में हजारों युवाओं ने सरकार के सोशल मीडिया बैन और भ्रष्टाचार के खिलाफ सड़कों पर उतरकर ऐतिहासिक जनाक्रोश दिखाया। नतीजतन, प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली और राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी को इस्तीफा देना पड़ा, संसद भवन सहित कई सरकारी इमारतें जलाई गईं, और 22 लोगों की मौत हो गई। यह नेपाल में 2008 में राजशाही खत्म होने के बाद का सबसे बड़ा और हिंसक आंदोलन था ।
आंदोलन की शुरुआत: सोशल मीडिया बैन से भड़का विस्फोट
आंदोलन की तात्कालिक वजह 3 सितंबर, 2025 को नेपाल सरकार द्वारा 26 सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स (फेसबुक, इंस्टाग्राम, YouTube आदि) पर लगाया गया प्रतिबंध था। सरकार का दावा था कि यह कदम “अफवाहों और हिंसा को रोकने” के लिए उठाया गया, लेकिन युवाओं ने इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला माना। 8 सितंबर को हज़ारों प्रदर्शनकारी संसद भवन की ओर बढ़े, जहाँ पुलिस ने आँसू गैस और रबर बुलेट्स का इस्तेमाल किया। हालाँकि, यह आंदोलन केवल सोशल मीडिया बैन तक सीमित नहीं था—यह भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, और राजनीतिक वंशवाद के खिलाफ जमा हुई नाराज़गी का विस्फोट था ।
9 सितंबर: काठमांडू का ‘ब्लैक डे’
9 सितंबर की सुबह से ही हिंसा ने भयावह रूप ले लिया:
- संसद भवन में आग: प्रदर्शनकारियों ने संसद भवन को घेरकर आग लगा दी। सुप्रीम कोर्ट, सिंह दरबार (राष्ट्रपति भवन), और कई मंत्रालयों को निशाना बनाया गया।
- नेताओं पर हमले: पूर्व PM झलनाथ खनाल की पत्नी को जिंदा जला दिया गया। पूर्व PM शेर बहादुर देउबा और उनकी पत्नी को घर में घुसकर पीटा गया। वित्त मंत्री विष्णु पौडेल को सड़क पर दौड़ाकर मारा गया।
- सुरक्षा बलों की निष्क्रियता: आर्मी और पुलिस “सरेंडर मोड” में रही, और प्रदर्शनकारियों ने कई थानों में आग लगा दी। लूटपाट की घटनाएं हुईं, जहाँ लोग कम्प्यूटर, लैपटॉप और ऑफिस सामान ले जाते देखे गए ।
आंदोलन का स्वरूप: नेता-विहीन क्रांति
इस आंदोलन की सबसे खास बात थी इसका नेतृत्व-विहीन होना। जेनजी (20-25 साल के युवा) इसका मुख्य चेहरा थे, जो सोशल मीडिया के जरिए संगठित हुए। उनका मुख्य नारा था: “केपी चोर, देश छोड़!” (KP Chor, Desh Chod!)। प्रदर्शनकारियों ने कहा कि यह आंदोलन केवल सोशल मीडिया बैन के खिलाफ नहीं, बल्कि व्यवस्था परिवर्तन की मांग कर रहा था। काठमांडू के मेयर बालेन शाह (जो बिना किसी राजनीतिक दल के समर्थन के चुने गए थे) ने आंदोलन का समर्थन किया, और युवा उन्हें अंतरिम PM बनाने की मांग कर रहे थे ।
पृष्ठभूमि: नेपाल की राजनीतिक अस्थिरता
नेपाल में लोकतंत्र के बाद भी राजनीतिक अस्थिरता बनी रही है:
- 17 साल में 14 PM: 2008 में राजशाही खत्म होने के बाद से नेपाल ने 14 प्रधानमंत्री देखे हैं, जिनमें से कोई भी पूरा कार्यकाल नहीं कर पाया ।
- आर्थिक संकट: महंगाई और बेरोजगारी चरम पर है, जिसके कारण हजारों युवा विदेशों में पलायन कर रहे हैं।
- भ्रष्टाचार: नेताों पर “विदेशी दलाल” होने का आरोप है, और उनके बच्चे विदेशों में पढ़ रहे हैं, जबकि आम जनता संघर्ष कर रही है ।
अंतर्राष्ट्रीय प्रतिक्रिया और यातायात प्रभाव
- उड़ानें रद्द: एयर इंडिया और इंडिगो ने काठमांडू की उड़ानें रद्द कीं, और एयरपोर्ट को अस्थायी रूप से बंद कर दिया गया।
- भारत-नेपाल संबंध: आंदोलन के दौरान भारतीय मीडिया के प्रति गुस्सा देखा गया, क्योंकि प्रदर्शनकारियों का मानना था कि भारत सरकार के “वास्तविक कारणों” को कवर नहीं कर रहा था ।
क्या बदलेगा नेपाल?
यह आंदोलन नेपाल के इतिहास में एक मोड़ साबित हो सकता है। अब तक की घटनाएं दिखाती हैं कि:
- युवा शक्ति: जेनजी ने साबित किया कि बिना नेतृत्व के भी बदलाव संभव है।
- सरकार की फेलियर: राजनीतिक दलों ने जनता के विश्वास को गंवा दिया है।
- भविष्य की चुनौती: अब नए चुनाव या अंतरिम सरकार की संभावना है, लेकिन स्थिरता लाना मुश्किल होगा ।
“यह आंदोलन सिर्फ सोशल मीडिया के लिए नहीं है। यह भ्रष्टाचार और वंशवाद के खिलाफ है। हमने नेताओं के खिलाफ जनता का गुस्सा देखा है” – काठमांडू के एक प्रदर्शनकारी ।
नोट: यह रिपोर्ट घटनाओं के वास्तविक विवरण पर आधारित है। स्थिति तेजी से बदल रही है, और नए अपडेट आ सकते हैं।