ईरान में फंसे 1500 भारतीय छात्रों के परिवारों की चीत्कार: “तेहरान जल रहा है, हमारे बच्चों को बचाइए!

🔥 हताश माताओं की गुहार

“सरकार से बस यही गुजारिश है कि हमारे बच्चों को ईरान से निकालिए। अब वो ज़रा भी महफूज़ नहीं हैं। तेहरान जल रहा है!”
कश्मीर की रेहाना अख़्तर की आवाज़ सिसकियों में डूबी है। उनकी बेटी शाहीन उन 1,500 भारतीय छात्रों में शामिल है जो ईरान-इजराइल युद्ध के बीच तेहरान में फंसे हैं। 15 जून को इजराइली हवाई हमले में हुजत दोस्त अली हॉस्टल निशाने पर आया, जहाँ कई कश्मीरी छात्र घायल हुए।

“10-15 बार कोशिश के बाद किसी तरह फोन लगता है। इराक और पाकिस्तान ने अपने छात्र निकाल लिए, पर हमारे बच्चे अब भी फँसे हैं,” गांदेरबल के मोहम्मद शफ़ीक आँखें नम करते हैं।

📡 संचार विच्छेद: जीवन रेखा टूटी

  • इंटरनेट ठप: व्हाट्सएप, इंस्टाग्राम समेत सभी सोशल मीडिया बंद।
  • VPN के सहारे मुश्किल से संपर्क।
  • श्रीनगर की सजादा अख़्तर: “बच्चे हमें दिलासा देते हैं, पर हमारी नींद गायब हो गई है।”

⚖️ दो छात्र, दो सच

  1. “यहाँ सब सामान्य है”
    कारगिल के विलायत काचो (कोम शहर): “बाज़ार खुले हैं, क्लास चल रही है। ईद की खुशियाँ भी मनाईं। एंबेसी पर भरोसा है।”
  2. “इस बार डर ज़्यादा है!”
    केरल के सूरज रंजन (हाइफा, इजराइल): “हमास हमले से भी ज़्यादा ख़ौफ़नाक माहौल। रातभर धमाकों से कंपकंपी। बम शेल्टर में जाने की तैयारी।”

💣 संघर्ष का ज्वलंत आँकड़ा

देशमृतकघायलनिशाना
ईरान138350+परमाणु वैज्ञानिक, कमांडर
इजराइल14380150+ मिसाइल हमला

🇮🇳 भारत की कूटनीतिक चुनौती

  • सुरक्षा दुविधा: ईरान में 1,300 कश्मीरी छात्र, इजराइल में 32,000 भारतीय।
  • ऊर्जा संकट: युद्ध बढ़ा तो कच्चे तेल की कीमतें आसमान पर, भारत को आर्थिक झटका।
  • राजनीतिक नाज़ुकी:
    • इजराइल से रक्षा साझेदारी vs. ईरान से ऊर्जा संबंध।
    • पश्चिमी देशों या इस्लामिक राष्ट्रों में से किसे नाराज़ करें?

अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञ प्रो. उमैर अनस (अंकारा यूनिवर्सिटी) चेतावनी देते हैं:

“भारत दोनों देशों से संतुलन बनाए रखने को मजबूर। रेस्क्यू ऑपरेशन और तेल बाज़ार की निगरानी अहम।”

🚨 सरकार और दूतावास की कार्रवाई

  • ईरान व इजराइल में भारतीय दूतावासों ने जारी किए इमरजेंसी नंबर।
  • एडवाइजरी: “गैर-जरूरी यात्रा टालें, सोशल मीडिया अपडेट्स पर नजर रखें।”
  • परिवारों की मांग: “यूक्रेन की तरह ऑपरेशन चलाकर बच्चों को निकालें!”

✍️ निष्कर्ष: प्रतीक्षा की घड़ियाँ

जब तेहरान की सड़कों पर धुआँ उठता है और हाइफा के बम शेल्टर ठंडे बस्ते में बदलते हैं, भारतीय माताएँ अपनी रातें मोमबत्तियों की रोशनी में काट रही हैं। विदेश मंत्रालय के डेस्क पर जमा हो रहे मदद के अनुरोध एक सवाल उछालते हैं: क्या भारत अपने उन बच्चों को सुरक्षित घर ला पाएगा, जहाँ से इराक-पाकिस्तान जैसे देश अपने नागरिकों को निकाल चुके हैं?

“जंग किसी देश की अंदरूनी लड़ाई नहीं है। हमारे बच्चे निशाने पर हैं!”
— सुहैल अहमद, बड़गाम, कश्मीर

(यह रिपोर्ट ईरान-इजराइल में फंसे छात्रों के परिजनों, छात्रों और अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों से सीधी बातचीत पर आधारित है।)

Avadhesh Yadav
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