सत्यपाल मलिक का निधन: एक युग का अंत, बेबाक राजनेता की अनकही कहानी
जम्मू-कश्मीर के पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक का निधन मंगलवार को दिल्ली में हुआ। उनके निधन ने न केवल राजनीतिक गलियारों में बल्कि आम लोगों के बीच भी शोक की लहर दौड़ा दी। 79 वर्षीय सत्यपाल मलिक, जिन्होंने अपने बेबाक बयानों और निर्भीक फैसलों से भारतीय राजनीति में एक अलग पहचान बनाई, लंबे समय से किडनी की बीमारी से जूझ रहे थे। मंगलवार दोपहर 1:12 बजे उन्होंने दिल्ली के राम मनोहर लोहिया (RML) अस्पताल में आखिरी सांस ली।
उनके निधन की खबर ने देश को उस ऐतिहासिक दिन की याद दिला दी, जब उनके कार्यकाल में 5 अगस्त 2019 को जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाया गया था। संयोग से, उनके निधन का दिन भी उसी तारीख से मेल खाता है। आइए, इस लेख में हम सत्यपाल मलिक के जीवन, उनके राजनीतिक सफर, और उनकी विरासत पर एक नजर डालते हैं।
सत्यपाल मलिक: एक बागी और बेबाक राजनेता
सत्यपाल मलिक का जन्म 24 जुलाई 1946 को उत्तर प्रदेश के बागपत जिले के हिसावदा गांव में हुआ था। उनके जीवन की शुरुआत एक सामान्य किसान परिवार से हुई, लेकिन उनकी महत्वाकांक्षा और समाजवादी विचारधारा ने उन्हें छात्र राजनीति से लेकर देश के बड़े मंच तक पहुंचाया। मेरठ कॉलेज से बीएससी और एलएलबी की पढ़ाई पूरी करने के बाद, मलिक ने 1968-69 में मेरठ विश्वविद्यालय के छात्रसंघ अध्यक्ष के रूप में अपनी पहचान बनाई। यह वह दौर था जब राम मनोहर लोहिया के विचारों ने उन्हें प्रभावित किया।
शुरुआती राजनीतिक सफर
सत्यपाल मलिक का राजनीतिक करियर 1974 में शुरू हुआ, जब उन्होंने चौधरी चरण सिंह की अगुवाई वाले भारतीय क्रांति दल के टिकट पर बागपत विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। मात्र 28 साल की उम्र में विधायक बनकर उन्होंने अपनी नेतृत्व क्षमता का शानदार परिचय दिया। इसके बाद, 1980 में लोकदल ने उन्हें राज्यसभा भेजा। हालांकि, उनका यह सफर हमेशा आसान नहीं रहा। 1984 में उन्होंने कांग्रेस का दामन थामा, लेकिन बोफोर्स घोटाले के बाद राजीव गांधी सरकार से असहमति के चलते जनता दल में शामिल हो गए।
1989 में अलीगढ़ से लोकसभा चुनाव जीतकर वे संसद पहुंचे, लेकिन इसके बाद उन्हें कई बार हार का सामना करना पड़ा। फिर भी, उनकी बेबाकी और जनता से जुड़ाव ने उन्हें हमेशा चर्चा में रखा। 2004 में बीजेपी के टिकट पर बागपत से हारने के बावजूद, पार्टी ने उनकी काबिलियत को पहचाना और 2012 में उन्हें पार्टी का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाया।
जम्मू-कश्मीर में ऐतिहासिक कार्यकाल
सत्यपाल मलिक का नाम जम्मू-कश्मीर के इतिहास में सुनहरे अक्षरों में लिखा गया। 23 अगस्त 2018 को उन्हें जम्मू-कश्मीर का राज्यपाल नियुक्त किया गया। यह पहली बार था जब इस संवेदनशील राज्य में किसी राजनेता को यह जिम्मेदारी दी गई थी। उनके कार्यकाल का सबसे बड़ा क्षण 5 अगस्त 2019 को आया, जब केंद्र सरकार ने अनुच्छेद 370 और 35A को हटाने का ऐतिहासिक फैसला लिया। इस फैसले के साथ जम्मू-कश्मीर को दो केंद्र शासित प्रदेशों—जम्मू-कश्मीर और लद्दाख—में विभाजित किया गया।
हालांकि, मलिक ने बाद में खुलासा किया कि इस फैसले से पहले उनसे कोई सलाह नहीं ली गई थी। उन्होंने एक साक्षात्कार में कहा, “गृह मंत्री अमित शाह ने मुझे सिर्फ एक दिन पहले इसकी जानकारी दी थी।” यह बयान उनके बेबाक स्वभाव को दर्शाता है, जिसके लिए वे हमेशा जाने गए।
विवादों से भरा कार्यकाल
सत्यपाल मलिक का कार्यकाल केवल अनुच्छेद 370 तक सीमित नहीं रहा। उन्होंने किरू हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट में कथित भ्रष्टाचार को लेकर सनसनीखेज खुलासे किए। मलिक ने दावा किया कि उन्हें 300 करोड़ रुपये की रिश्वत की पेशकश की गई थी, जिसे उन्होंने ठुकरा दिया। इस मामले में सीबीआई ने उनके खिलाफ चार्जशीट दाखिल की, जिसे मलिक ने राजनीतिक साजिश करार दिया। उन्होंने कहा, “मैंने ही इस टेंडर को रद्द किया था, फिर भी मुझे फंसाया जा रहा है।”
इसके अलावा, मलिक ने 2019 के पुलवामा हमले को लेकर भी केंद्र सरकार पर सवाल उठाए। उन्होंने दावा किया कि यह हमला सरकार की लापरवाही का नतीजा था और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें चुप रहने को कहा था। इन बयानों ने उन्हें सुर्खियों में ला दिया और बीजेपी के साथ उनके रिश्ते तल्ख हो गए।
किसान आंदोलन के दौरान दिया बेबाक बयान
सत्यपाल मलिक का नाम किसान आंदोलन के दौरान भी खूब चर्चा में रहा। 2020-2021 के किसान आंदोलन में उन्होंने खुलकर किसानों का समर्थन किया। मेघालय के राज्यपाल के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान, उन्होंने कहा, “दिल्ली की सीमाओं पर 700 किसान मर गए, लेकिन सरकार की ओर से एक भी संवेदना पत्र नहीं आया।” उनके इस बयान ने केंद्र सरकार को कटघरे में खड़ा किया।
मलिक की यह बेबाकी उनके व्यक्तित्व का सबसे बड़ा पहलू थी। उन्होंने कभी सत्ता के सामने झुकने से इनकार किया, चाहे वह भ्रष्टाचार का मुद्दा हो या किसानों का हक। उनकी यह छवि उन्हें जनता के बीच एक नायक के रूप में स्थापित करती थी, लेकिन साथ ही उन्हें विवादों का केंद्र भी बनाती थी।
स्वास्थ्य की लड़ाई और अंतिम दिन
सत्यपाल मलिक पिछले कुछ समय से गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रहे थे। मई 2025 से वे दिल्ली के राम मनोहर लोहिया अस्पताल में भर्ती थे। उन्हें किडनी फेल्यर और गंभीर मूत्र मार्ग संक्रमण (यूरीनरी ट्रैक्ट इन्फेक्शन) की शिकायत थी। 8 जून 2025 को उन्होंने अपने आधिकारिक एक्स अकाउंट पर एक भावुक पोस्ट साझा किया, जिसमें लिखा था, “मैं पिछले एक महीने से अस्पताल में भर्ती हूं और किडनी की समस्या से जूझ रहा हूं। मेरी हालत बहुत गंभीर होती जा रही है।”
उनके इस पोस्ट ने उनके समर्थकों और शुभचिंतकों को चिंता में डाल दिया। कई राजनीतिक हस्तियों, जिसमें कांग्रेस नेता राहुल गांधी भी शामिल थे, ने अस्पताल जाकर उनका हालचाल लिया। मलिक ने अपने आखिरी दिनों में भी अपनी बेबाकी नहीं छोड़ी। उन्होंने कहा, “मैं रहूं या न रहूं, सच्चाई सामने आनी चाहिए।”
सत्यपाल मलिक की विरासत
सत्यपाल मलिक का जीवन और उनका राजनीतिक सफर भारतीय राजनीति के लिए एक प्रेरणा है। उन्होंने बिहार, गोवा, ओडिशा, और मेघालय जैसे राज्यों में भी राज्यपाल के रूप में अपनी सेवाएं दीं। उनका हर कदम, चाहे वह अनुच्छेद 370 का ऐतिहासिक फैसला हो या किसान आंदोलन में उनकी बेबाकी, उनके साहस और ईमानदारी को दर्शाता है।
उनके निधन पर कई नेताओं ने शोक व्यक्त किया। हरियाणा के पूर्व डिप्टी सीएम दुष्यंत चौटाला ने एक्स पर लिखा, “सत्यपाल मलिक का निधन एक बड़ी क्षति है। उनकी बेबाक राजनीति और किसान हितैषी सोच हमेशा याद की जाएगी।” इसी तरह, जेडीयू नेता केसी त्यागी ने कहा, उनके जाने से पश्चिमी यूपी की एक मजबूत आवाज खामोश हो गई।
सत्यपाल मलिक का योगदान: एक नजर
- जम्मू-कश्मीर: अनुच्छेद 370 हटाने में महत्वपूर्ण भूमिका, जम्मू-कश्मीर को केंद्र शासित प्रदेश बनाने का हिस्सा।
- किसान आंदोलन: किसानों के हक में खुलकर बोलने वाले पहले बड़े नेता।
- भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई: किरू हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट में रिश्वत के खुलासे।
- राजनीतिक सफर: विधायक, सांसद, राज्यसभा सदस्य, और चार राज्यों के राज्यपाल।
सत्यपाल मलिक का निधन न केवल एक राजनेता का अंत है, बल्कि एक युग का समापन है। उनकी बेबाकी, साहस, और जनता के प्रति समर्पण हमेशा प्रेरणा देता रहेगा। उनके जीवन से हमें यह सीख मिलती है कि सच्चाई और ईमानदारी के रास्ते पर चलने वाला व्यक्ति भले ही विवादों में घिर जाए, लेकिन उसकी आवाज हमेशा गूंजती रहती है।
उनके निधन के बाद अब सवाल यह है कि क्या उनकी उठाई गई आवाजों को और आगे ले जाया जाएगा? क्या किरू हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट और पुलवामा हमले जैसे मुद्दों पर सच्चाई सामने आएगी? यह समय ही बताएगा। लेकिन एक बात तय है—सत्यपाल मलिक जैसे लोग कम ही पैदा होते हैं, और उनकी कमी भारतीय राजनीति में हमेशा खलेगी।
आपके विचार क्या हैं? सत्यपाल मलिक की विरासत को आप कैसे देखते हैं? हमें कमेंट में बताएं और इस लेख को शेयर करें ताकि उनकी अनकही कहानी और लोगों तक पहुंचे।