Alarm: MSC एल्सा 3 के 640 कंटेनरों में क्या है जो सरकार ने कहा – “200 मीटर दूर रहें!”

23 मई को केरल के विझिनजाम पोर्ट से MSC एल्सा 3 कोच्चि के लिए रवाना हुआ था। 24 मई को दोपहर करीब 1:25 बजे कोच्चि तट से 38 समुद्री मील की दूरी पर करीब 26 डिग्री तक झुक गया। इस शीप में 24 लोग सवार थे जिनमें 21 लोगो को 24 मई की देर शाम तक बचा लिया गया, बाकी बचे 3 सीनियर क्रू मेंबर्स को अगली तारीख यानी 25 मई की सुबह को रेस्क्यू कर लिया गया।

MSC एल्सा 3: केरल तट पर एक अंजान भय ने दी दस्तक

MSC एल्सा 3: केरल तट पर एक अंजान भय ने दी दस्तक

“सावधान! इन तैरती हुई वस्तुओं से कम से कम 200 मीटर की दूरी बनाए रखें! इन्हें छूने की कोशिश न करें! तुरंत पुलिस या आपदा प्रबंधन को सूचित करें!” – 25 मई 2025 की सुबह, केरल के तटीय गांवों में यह सरकारी चेतावनी किसी आसन्न प्रलय की तरह गूंज रही थी। कारण? अरब सागर की गहराइयों में समा चुका एक विशालकाय मालवाहक जहाज, MSC एल्सा 3, और उसके पेट में दफ्न 640 रहस्यमयी कंटेनर, जिनमें से कुछ अब अनियंत्रित होकर तट की ओर बढ़ रहे हैं।

यह सिर्फ एक जहाज का डूबना नहीं, बल्कि केरल के खूबसूरत समुद्री तट और लाखों जिंदगियों पर मंडराते एक रासायनिक ‘टाइम बम’ की टिक-टिक है। आखिर MSC एल्सा 3 खतरा चेतावनी इतनी गंभीर क्यों है? उन कंटेनरों में ऐसा क्या है जो आम लोगों के लिए जानलेवा साबित हो सकता है?

MSC एल्सा 3: डूबते जहाज का डरावना सच

कहानी शुरू होती है 23 मई 2025, शुक्रवार को, जब लाइबेरिया के ध्वज वाला कार्गो शिप MSC एल्सा 3 केरल के विझिंजम बंदरगाह से कोच्चि बंदरगाह के लिए रवाना हुआ। लेकिन मंजिल आने से पहले ही, 25 मई को, इस जहाज के होल्ड में तेजी से पानी भरने लगा और देखते ही देखते यह दो फुटबॉल ग्राउंड जितना बड़ा जहाज (183 मीटर लंबा, 25 मीटर चौड़ा) समुद्र की गोद में समा गया।

MSC एल्सा 3: डूबते जहाज का डरावना सच

केरल के बंदरगाह मंत्री वीएन वासवन के अनुसार, जहाज के झुकने और डूबने का सटीक कारण अभी जांच का विषय है, लेकिन शुरुआती आशंकाएं तेज हवाओं, ऊंची लहरों या लोडिंग की समस्याओं की ओर इशारा कर रही हैं।

चिंता की बात यह है कि MSC एल्सा 3 कोई नया जहाज नहीं था। 1997 में बना यह 28 साल पुराना जहाज दुनिया की सबसे बड़ी कंटेनर शिपिंग कंपनी MSC (जिनेवा, स्विट्जरलैंड स्थित) द्वारा प्रबंधित किया जा रहा था।

रिकॉर्ड बताते हैं कि 19 नवंबर 2024 को मैंगलोर में हुए इसके पिछले पोर्ट स्टेट कंट्रोल निरीक्षण में 5 कमियां पाई गई थीं। क्या ये कमियां इस हादसे का कारण बनीं? यह सवाल जांच के बाद ही साफ हो पाएगा।

जहाज पर 24 सदस्यीय चालक दल (जिसमें 1 रूसी कैप्टन, 1 यूक्रेनी, 2 जॉर्जियाई और 20 फिलीपींस के नागरिक शामिल थे) के बारे में प्रारंभिक सूचनाओं के अनुसार बचाव कार्य जारी है।

कंटेनरों का रहस्य: वो क्या छिपाए हैं जो जानलेवा है?

असली खौफ जहाज के डूबने से ज्यादा उसके साथ डूबे 640 कंटेनरों को लेकर है। भारत के रक्षा मंत्रालय ने 25 मई को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘X’ पर जो जानकारी दी, वह रोंगटे खड़े करने वाली है:

  • कुल 640 कंटेनर।
  • इनमें से 13 कंटेनरों में विभिन्न प्रकार के “खतरनाक रसायन” थे (जिनका सटीक विवरण अभी पूरी तरह सार्वजनिक नहीं है)।
  • 12 कंटेनरों में कैल्शियम कार्बाइड (CaC₂) भरा हुआ था।
  • जहाज के टैंकों में 84.44 मीट्रिक टन डीजल (मरीन गैस ऑयल) और 367.1 मीट्रिक टन फर्नेस ऑयल भी मौजूद था।

MSC एल्सा 3 कंटेनर में क्या है जो इतनी दहशत फैला रहा है? आइए समझते हैं:

कैल्शियम कार्बाइड (Calcium Carbide)

यह वही रसायन है जिसका एक छोटा सा टुकड़ा कच्चे आमों से भरे कमरे को कुछ ही दिनों में पका देता है, जहरीली एसिटिलीन गैस निकालकर। अब कल्पना कीजिए, ऐसे 12 विशाल कंटेनर समुद्र के पानी के संपर्क में आ चुके हैं या आने वाले हैं। पानी के साथ मिलते ही कैल्शियम कार्बाइड अत्यधिक ज्वलनशील एसिटिलीन गैस (C₂H₂) और कैल्शियम हाइड्रॉक्साइड (Ca(OH)₂) उत्पन्न करता है। एसिटिलीन गैस हवा में 2.5% से 82% की मामूली सी सघनता पर भी एक छोटी सी चिंगारी या गर्मी से भयानक विस्फोट कर सकती है। यह गैस हवा में जमा होकर समुद्री सतह पर विस्फोटों की एक श्रृंखला शुरू कर सकती है। वहीं, कैल्शियम हाइड्रॉक्साइड पानी के pH स्तर को खतरनाक रूप से बढ़ा देगा, जिससे समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र (मछलियां, कोरल, अन्य जीव) का संतुलन बिगड़ जाएगा और यह उनके लिए जानलेवा साबित होगा।

डीजल (मरीन गैस ऑयल)

84.44 मीट्रिक टन डीजल पानी की सतह पर एक मोटी परत बनाकर सूर्य की किरणों और ऑक्सीजन को नीचे जाने से रोकेगा, जिससे समुद्री जीवन का दम घुट सकता है। यह लंबे समय तक समुद्र में बना रहकर तटीय इलाकों को प्रदूषित कर सकता है। INCOIS के अनुसार, यह रिसाव 36 से 48 घंटों में अलप्पुझा, कोल्लम, एर्नाकुलम और तिरुवनंतपुरम तक पहुंच सकता है।

फर्नेस ऑयल

367.1 मीट्रिक टन यह भारी ईंधन तेल डीजल से भी अधिक गाढ़ा होता है। यह आसानी से पानी में फैलता नहीं, बल्कि समुद्री तल पर जमा होकर दीर्घकालिक प्रदूषण का कारण बनता है। इसमें निकल, वैनेडियम जैसी भारी धातुएं और PAHs (पॉलीसाइक्लिक एरोमैटिक हाइड्रोकार्बन) होते हैं, जो पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य के लिए बेहद हानिकारक हैं। यह समुद्री पौधों, मछलियों, पक्षियों और स्तनधारी जीवों का सफाया कर सकता है।

इंडियन नेशनल सेंटर फॉर ओशियन इन्फॉर्मेशन सर्विसेज (INCOIS) ने कंटेनरों का पता लगाने और तेल रिसाव पर नजर रखने के लिए सिमुलेशन शुरू कर दिए हैं। केरल राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (KSDMA) ने तटीय इलाकों में इमरजेंसी घोषित कर दी है और मछुआरों तथा आम लोगों को तटों और बहकर आए किसी भी कंटेनर या तेल से दूर रहने की सख्त चेतावनी जारी की है। ICG के अनुसार, कुछ कंटेनर 1 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से तट की ओर बढ़ रहे हैं।

इतिहास के आईने में: जब समुद्र ने उगला ज़हर

MSC एल्सा 3 जैसी घटनाएं दुर्भाग्यवश नई नहीं हैं। इतिहास ऐसी कई त्रासदियों का गवाह है जब समुद्री हादसों ने पर्यावरण और मानव जीवन पर कहर बरपाया है:

  • MV एक्स-प्रेस पर्ल (श्रीलंका, 2021): यह जहाज नाइट्रिक एसिड, अन्य रसायनों और लाखों प्लास्टिक के सूक्ष्म कणों (नर्डल्स) के साथ श्रीलंका के तट पर डूब गया था। इसे श्रीलंका के इतिहास की सबसे भीषण समुद्री पर्यावरणीय आपदा माना जाता है, जिसने समुद्री जीवन और तटीय पारिस्थितिकी तंत्र को भारी नुकसान पहुंचाया।
  • MSC नापोली (यूके, 2007): यह कंटेनर जहाज इंग्लिश चैनल में तूफान में फंसकर क्षतिग्रस्त हो गया था और इसके कई कंटेनर (जिनमें कुछ खतरनाक रसायन भी थे) समुद्र में बह गए थे, जिससे तटीय क्षेत्रों में हड़कंप मच गया था।
  • एनोर ऑयल स्पिल (भारत, 2017): चेन्नई के पास दो जहाजों की टक्कर से भारी मात्रा में तेल रिसाव हुआ, जिसने तटीय पर्यावरण और स्थानीय मछुआरों की आजीविका को गंभीर रूप से प्रभावित किया।

ये घटनाएं बताती हैं कि MSC एल्सा 3 का डूबना कितना गंभीर हो सकता है, खासकर जब उसमें कैल्शियम कार्बाइड जैसे तुरंत प्रतिक्रिया करने वाले रसायन हों।

संभावित तबाही का मंजर: अगर रिसाव हुआ तो?

यदि इन कंटेनरों से बड़े पैमाने पर रसायनों और तेल का रिसाव होता है, तो इसके परिणाम भयावह होंगे:

  • समुद्री जीवों की सामूहिक मृत्यु: डॉल्फिन, व्हेल, कछुए, ऑक्टोपस, मछलियां और अन्य समुद्री जीव तेल और रसायनों के संपर्क में आने से बीमार पड़ सकते हैं या मर सकते हैं। तेल उनके गलफड़ों, त्वचा और आंतरिक अंगों को नुकसान पहुंचाता है। समुद्री पक्षियों के पंख तेल में चिपक जाने से वे उड़ने और तैरने की क्षमता खो देते हैं।
  • पारिस्थितिकी तंत्र का विनाश: सुंदर कोरल रीफ्स नष्ट हो सकती हैं। समुद्री सतह पर तेल की परत सूर्य के प्रकाश को रोक देगी, जिससे समुद्री वनस्पतियों और सूक्ष्म जीवों को नुकसान होगा, जो खाद्य श्रृंखला का आधार हैं।
  • मनुष्यों पर असर: मछली पालन और पर्यटन उद्योग ठप हो सकते हैं। यदि किसी ने दूषित पानी या मछली का सेवन किया, तो उसे गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं।
  • आर्थिक प्रभाव: सफाई अभियान में करोड़ों डॉलर खर्च होंगे, जिसका बोझ अंततः आम जनता पर पड़ेगा।

बचाव और सफाई: एक असंभव चुनौती?

समुद्र में तेल और रासायनिक रिसाव को साफ करना एक अत्यंत जटिल, महंगा और समय लेने वाला कार्य है। इसके लिए कई तकनीकों का उपयोग किया जाता है, जैसे:

  • बूम्स (Booms): तेल को फैलने से रोकने के लिए तैरने वाली बाधाएं।
  • स्किमर्स (Skimmers): पानी की सतह से तेल को हटाने वाली मशीनें।
  • डिस्पर्सेंट्स (Dispersants): तेल को छोटे कणों में तोड़ने वाले रसायन (हालांकि ये खुद भी पर्यावरण के लिए हानिकारक हो सकते हैं)।
  • इन-सीटू बर्निंग (In-situ burning): समुद्र की सतह पर ही तेल को जलाना (इससे वायु प्रदूषण होता है)।
  • सोरबेंट्स (Sorbents): तेल सोखने वाले पदार्थ।
  • बायोरेमेडिएशन (Bioremediation): तेल खाने वाले बैक्टीरिया का उपयोग।

लेकिन इतने बड़े पैमाने पर और इतने प्रकार के रसायनों के रिसाव को पूरी तरह साफ करना लगभग असंभव सा होता है, और नुकसान कई वर्षों तक बना रह सकता है।

केरल के तट पर मंडराता संकट और अनसुने सवाल

MSC एल्सा 3 का डूबना केरल के तट पर एक स्पष्ट और आसन्न MSC एल्सा 3 खतरा चेतावनी है। यह सिर्फ एक जहाज दुर्घटना नहीं है, बल्कि हमारे समुद्री पर्यावरण की नाजुकता, औद्योगिक सुरक्षा मानकों की संभावित अनदेखी, और हमारी आपदा प्रबंधन क्षमताओं की एक गंभीर परीक्षा है।

डूबता हुआ MSC एल्सा 3 शीप

क्या 28 साल पुराने जहाज, जिसमें पिछली जांच में कमियां पाई गई थीं, को इतना खतरनाक माल ले जाने की अनुमति होनी चाहिए थी? दुनिया की सबसे बड़ी शिपिंग कंपनी MSC की इस मामले में क्या जिम्मेदारी बनती है? और सबसे महत्वपूर्ण, क्या हमारी सरकारें और नियामक संस्थाएं भविष्य में ऐसी त्रासदियों को रोकने के लिए पर्याप्त कदम उठा रही हैं?

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जब तक इन सवालों के संतोषजनक जवाब नहीं मिलते और प्रभावी कार्रवाई नहीं होती, तब तक केरल का खूबसूरत समुद्र तट और उस पर निर्भर लाखों जिंदगियां इस “रासायनिक टाइम बम” के साये में जीने को मजबूर रहेंगी। यह “खतरे की घंटी” सिर्फ केरल के लिए नहीं, बल्कि पूरे देश और समुद्री सुरक्षा के प्रति हमारी वैश्विक प्रतिबद्धता के लिए है।

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