“सुबह की प्रार्थना के बीच अचानक मलबे की चीखें गूंजीं। झालावाड़ के पिपलोदी गांव में सरकारी स्कूल की बिल्डिंग का हिस्सा ढहने से 7 बच्चों की जिंदगी छिन गई।”
झालावाड़ स्कूल हादसा: मासूमों की जान ले गया जर्जर भवन, दिल दहला देने वाली कहानी
शुक्रवार की सुबह, जब बच्चे स्कूल में अपनी पढ़ाई की शुरुआत कर रहे थे, राजस्थान के झालावाड़ जिले के पिपलोदी गांव में एक दिल दहला देने वाला हादसा हुआ। मनोहरथाना ब्लॉक के राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय में सरकारी स्कूल की बिल्डिंग का हिस्सा अचानक ढह गया, जिसके मलबे में 35 बच्चे दब गए। इस दुखद घटना में 7 मासूमों की जान चली गई, जबकि 9 बच्चे गंभीर रूप से घायल हैं। यह हादसा न केवल दर्दनाक है, बल्कि सरकारी स्कूलों की खस्ताहाल इमारतों और प्रशासन की लापरवाही को उजागर करता है।
उस सुबह का भयावह मंजर
कैसे हुआ हादसा?
सुबह करीब 7:45 बजे, पिपलोदी गांव के सरकारी स्कूल में बच्चे प्रार्थना सभा के बाद कक्षा में पहुंचे थे। सातवीं कक्षा के 35 बच्चे एक कमरे में बैठे थे, तभी अचानक छत की भारी स्लैब नीचे आ गिरी। दीवारों का एक हिस्सा भी ढह गया, और पूरा कमरा मलबे के ढेर में बदल गया। प्रत्यक्षदर्शियों का कहना है कि बच्चों की चीख-पुकार सुनकर गांव वालों के रोंगटे खड़े हो गए। स्थानीय लोग तुरंत मौके पर पहुंचे और अपने हाथों से मलबा हटाने लगे।
ग्रामीण रामस्वरूप ने बताया, “हमने देखा तो दिल बैठ गया। बच्चे मलबे में दबे थे, उनके बैग और किताबें बिखरी पड़ी थीं। कुछ बच्चे तो सांस भी नहीं ले पा रहे थे।” ग्रामीणों और शिक्षकों ने मिलकर बच्चों को मलबे से निकाला और तुरंत मनोहरथाना सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (CHC) पहुंचाया। लेकिन दुख की बात यह है कि 5 बच्चों ने मौके पर ही दम तोड़ दिया, जबकि 2 ने अस्पताल में इलाज के दौरान आखिरी सांस ली।
हादसे का दर्दनाक सच
मृतकों और घायलों की स्थिति
झालावाड़ के पुलिस अधीक्षक अमित कुमार ने बताया कि हादसे में 7 बच्चों की मौत की पुष्टि हो चुकी है। मृतकों में कुंदर, कान्हा, रैदास, अनुराधा, बादल भील, और दो अन्य बच्चे शामिल हैं, जिनकी उम्र 14 से 16 साल के बीच थी। 9 बच्चे गंभीर रूप से घायल हैं, जिन्हें झालावाड़ जिला अस्पताल में भर्ती कराया गया है। कुछ बच्चों की हालत नाजुक होने के कारण उन्हें कोटा और जयपुर के बड़े अस्पतालों में रेफर किया गया है।
सोशल मीडिया पर इस हादसे की तस्वीरें और वीडियो तेजी से वायरल हो रहे हैं। मलबे में बिखरे बच्चों के स्कूल बैग, किताबें, और जूते-चप्पल देखकर हर किसी का दिल पसीज रहा है। जेसीबी मशीनों की मदद से मलबा हटाने का काम अब भी जारी है, लेकिन ग्रामीणों का कहना है कि स्कूल की इमारत पहले से ही जर्जर थी।
प्रशासन की लापरवाही सामने आई
जर्जर भवन की अनदेखी
पिपलोदी गांव के लोगों का कहना है कि यह हादसा अचानक नहीं हुआ। स्कूल की इमारत लंबे समय से खराब हालत में थी। दीवारों में दरारें थीं, और छत से बारिश का पानी रिसता था। शिक्षा विभाग ने जुलाई 2025 में मानसून से पहले सभी स्कूलों की मरम्मत के निर्देश दिए थे, लेकिन पिपलोदी स्कूल में कोई काम नहीं हुआ।
एक स्थानीय शिक्षक ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, “हमने कई बार अधिकारियों को स्कूल की हालत के बारे में बताया था। लेकिन हर बार फाइलें दफ्तरों में दबकर रह गईं।” शिक्षा विभाग ने स्कूलों की मरम्मत के लिए 200 करोड़ रुपये का बजट स्वीकृत किया था, फिर भी इस स्कूल की मरम्मत क्यों नहीं हुई? यह सवाल अब हर किसी के मन में है।
शिक्षकों पर भी सवाल
हादसे के वक्त दो शिक्षकों पर लापरवाही का आरोप लग रहा है। बताया जा रहा है कि वे कक्षा से बाहर थे, और बच्चों को जर्जर कमरे में अकेला छोड़ दिया गया था। जिला प्रशासन ने इस मामले की जांच के लिए एक उच्च स्तरीय कमेटी बनाई है, जो भवन की गुणवत्ता, रखरखाव, और लापरवाही की जांच करेगी।
नेताओं और अधिकारियों की प्रतिक्रिया
मुख्यमंत्री और शिक्षा मंत्री का दुख
राजस्थान के मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने इस हादसे पर गहरा दुख जताया। उन्होंने X पर लिखा, “पिपलोदी में सरकारी स्कूल की बिल्डिंग ढहने से हुआ हादसा दिल दहला देने वाला है। घायल बच्चों के इलाज के लिए हर संभव मदद की जा रही है।”
शिक्षा मंत्री मदन दिलावर ने कहा, “यह घटना बेहद दुखद है। हम घायल बच्चों का इलाज सरकारी खर्चे पर करवाएंगे और दोषियों पर सख्त कार्रवाई करेंगे।” हालांकि, उन्होंने यह भी जोड़ा कि पिछले कुछ सालों में स्कूलों की देखभाल में लापरवाही बरती गई, जिसके परिणामस्वरूप यह हादसा हुआ।
विपक्ष का हंगामा
पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने X पर लिखा, “मनोहरथाना में स्कूल की इमारत ढहने की खबर बेहद दुखद है। मैं घायलों के जल्द ठीक होने की प्रार्थना करता हूँ।” विपक्षी नेता टीकाराम जूली ने सरकार पर हमला बोला और कहा, “अगर समय रहते स्कूलों की मरम्मत की जाती, तो यह हादसा रोका जा सकता था।”
केंद्र सरकार की संवेदना
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने X पर लिखा, “झालावाड़ के स्कूल हादसे ने मन को झकझोर दिया। मेरी संवेदनाएं प्रभावित परिवारों के साथ हैं। घायलों के जल्द स्वस्थ होने की कामना करता हूँ।” राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने भी कहा कि यह हादसा देश के लिए एक चेतावनी है।
राजस्थान में स्कूलों की हकीकत
जर्जर इमारतों का जाल
पिपलोदी का यह हादसा राजस्थान में सरकारी स्कूलों की बदहाल स्थिति को उजागर करता है। राज्य में हजारों स्कूलों की इमारतें पुरानी और जर्जर हैं। शिक्षा विभाग के आंकड़ों के अनुसार, 10,000 से अधिक स्कूल भवनों को तत्काल मरम्मत की जरूरत है। लेकिन बजट की कमी और प्रशासनिक ढिलाई के कारण यह काम रुका हुआ है।
मानसून ने बढ़ाई मुश्किल
हाल के दिनों में झालावाड़ में भारी बारिश हुई है। विशेषज्ञों का कहना है कि बारिश ने जर्जर इमारतों की नींव को और कमजोर कर दिया। पिपलोदी स्कूल की छत भी बारिश की वजह से ढहने की कगार पर थी, लेकिन प्रशासन ने इसकी अनदेखी की।
ग्रामीणों का आक्रोश
हादसे के बाद पिपलोदी गांव में गम और गुस्से का माहौल है। अभिभावक और ग्रामीण स्कूल परिसर के बाहर जमा हैं और प्रशासन के खिलाफ नाराजगी जता रहे हैं। एक माता-पिता ने कहा, “हम अपने बच्चों को पढ़ने भेजते हैं, न कि मरने। अगर स्कूल की हालत इतनी खराब थी, तो इसे बंद क्यों नहीं किया गया?” ग्रामीण दोषी अधिकारियों और ठेकेदारों पर सख्त कार्रवाई की मांग कर रहे हैं।
आगे की राह
जांच और कार्रवाई
राजस्थान सरकार ने इस हादसे की जांच के लिए एक कमेटी गठित की है, जिसमें शिक्षा विभाग, लोक निर्माण विभाग (PWD), और जिला प्रशासन के अधिकारी शामिल हैं। यह कमेटी भवन की गुणवत्ता, निर्माण सामग्री, और रखरखाव की स्थिति की जांच करेगी। साथ ही, यह भी देखा जाएगा कि शिक्षा विभाग के निर्देशों का पालन क्यों नहीं हुआ।
स्कूलों की सुरक्षा पहल
यह हादसा एक सबक है कि सरकारी स्कूलों की स्थिति को सुधारने के लिए तुरंत कदम उठाने होंगे। विशेषज्ञ सुझाव दे रहे हैं कि सभी स्कूल भवनों का स्ट्रक्चरल ऑडिट हो और जर्जर इमारतों को ध्वस्त कर नया निर्माण किया जाए। मानसून से पहले मरम्मत कार्य को प्राथमिकता देनी होगी।
सवाल जो बाकी हैं
झालावाड़ का यह हादसा हमें सोचने पर मजबूर करता है कि आखिर कब तक मासूम बच्चे प्रशासन की लापरवाही की कीमत चुकाते रहेंगे? सरकार और अधिकारियों को अब जागना होगा, ताकि भविष्य में ऐसी घटनाएं न हों। पिपलोदी के मासूमों को श्रद्धांजलि देते हुए हम सभी की जिम्मेदारी है कि बच्चों की सुरक्षा को सर्वोपरि रखें।
आप इस हादसे के बारे में क्या सोचते हैं? क्या अब समय आ गया है कि स्कूलों की जर्जर हालत पर सख्त कदम उठाए जाएं? अपनी राय कमेंट में जरूर साझा करें।