12 दिनों तक चले ईरान-इजराइल युद्ध के बाद पहले तो अमेरिका ने ईरान के परमाणु स्थलों पर हमला किया। फिर खुद ही सीजफायर की घोषणा की, ताजा बयान में ट्रम्प ईरान की तरफ करते हुए नजर आ रहे है। ट्रम्प का कहना है कि ईरान बहुत बहादुरी से जंग लड़ा।
ईरान-इजराइल युद्ध और ट्रम्प का सीजफायर: वैश्विक कूटनीति का नया अध्याय
12 दिनों तक चले तनावपूर्ण ईरान-इजराइल युद्ध के बाद, 24 जून 2025 को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने एक ‘पूर्ण और स्थायी’ सीजफायर की घोषणा की। लेकिन यह युद्ध और इसका समापन इतना सरल नहीं था। ट्रम्प ने 25 जून 2025 को नीदरलैंड्स के द हेग में नाटो समिट के दौरान एक चौंकाने वाला बयान दिया, जिसमें उन्होंने ईरान की बहादुरी की तारीफ की और उनके तेल व्यापार को रोकने से इनकार किया। आइए, इस युद्ध, सीजफायर, और ट्रम्प की नई कूटनीति की पूरी कहानी को समझते हैं।
ईरान-इजराइल युद्ध: कैसे शुरू हुआ?
13 जून 2025 से शुरू हुआ यह युद्ध दोनों देशों के बीच लंबे समय से चली आ रही तनातनी का परिणाम था। 15 जून को, डोनाल्ड ट्रम्प ने इजराइल के एक प्रस्ताव को वीटो किया, जिसमें ईरान के सर्वोच्च नेता को निशाना बनाने की योजना थी। इसके बाद, 18 जून को ईरान और इजराइल ने एक-दूसरे पर मिसाइल हमले शुरू किए, जो छह दिनों तक चले। ईरान के सर्वोच्च नेता ने अमेरिका को चेतावनी दी कि इजराइल के साथ मिलकर हमले करने से “अपूरणीय क्षति” होगी।
24 जून को, ट्रम्प ने कतर की राजधानी दोहा में एक अमेरिकी हवाई अड्डे पर ईरान के मिसाइल हमले के बाद ‘पूर्ण सीजफायर’ की घोषणा की। लेकिन कुछ ही घंटों बाद, उन्होंने दोनों पक्षों पर सीजफायर उल्लंघन का आरोप लगाया। फिर भी, नाटो समिट में ट्रम्प ने दावा किया कि अमेरिकी हमलों ने ईरान और इजराइल के बीच युद्ध को समाप्त किया और ईरान के परमाणु कार्यक्रम को “दशकों पीछे” धकेल दिया।
ट्रम्प का नाटो समिट बयान: ईरान की जमकर तारीफ, तेल व्यापार पर नरमी
25 जून 2025 को, द हेग में नाटो समिट के दौरान ट्रम्प ने कहा, “ईरान ने युद्ध में बहादुरी दिखाई। वे तेल का कारोबार करते हैं। मैं चाहूँ तो इसे रोक सकता हूँ, लेकिन मैं ऐसा नहीं करना चाहता।” उन्होंने आगे कहा कि ईरान को युद्ध के बाद आर्थिक नुकसान से उबरने के लिए तेल बेचने की जरूरत है, और अगर चीन ईरान से तेल खरीदना चाहता है, तो अमेरिका को कोई आपत्ति नहीं है। ट्रम्प ने यह भी घोषणा की कि अगले हफ्ते ईरान और अमेरिका के बीच बातचीत होगी।
यह बयान कई मायनों में चौंकाने वाला था, क्योंकि ट्रम्प ने पहले ईरान पर कड़े प्रतिबंधों का समर्थन किया था। व्हाइट हाउस के एक अधिकारी ने स्पष्ट किया कि यह बयान प्रतिबंधों में ढील का ऐलान नहीं है, बल्कि एक कूटनीतिक दृष्टिकोण है। ट्रम्प ने नाटो समिट से पहले भी कहा था कि चीन ईरान से तेल खरीद सकता है, लेकिन उन्हें उम्मीद है कि चीन अमेरिका से भी तेल खरीदेगा।
क्या है ट्रम्प की रणनीति?
ट्रम्प का यह बयान उनकी अप्रत्याशित कूटनीति का हिस्सा माना जा रहा है। विशेषज्ञों का कहना है कि ट्रम्प एक तरफ ईरान के साथ तनाव कम करना चाहते हैं, ताकि मध्य पूर्व में स्थिरता आए, वहीं दूसरी तरफ वे चीन और अमेरिका के बीच व्यापारिक संतुलन बनाए रखना चाहते हैं। सोशल मीडिया पर कुछ यूजर्स का मानना है कि यह बयान ईरान को आर्थिक राहत देकर उसे बातचीत की मेज पर लाने की कोशिश हो सकती है।
हालांकि, कुछ विश्लेषकों का यह भी कहना है कि ट्रम्प की यह नरमी अस्थायी हो सकती है, क्योंकि उन्होंने पहले ही ईरान के परमाणु कार्यक्रम को नष्ट करने का दावा किया है। यह बयान क्षेत्रीय शक्ति संतुलन को प्रभावित कर सकता है, खासकर सऊदी अरब और इजराइल जैसे सहयोगियों के लिए।
भारत के लिए इसका क्या मतलब?
भारत, जो ईरान से तेल आयात का एक प्रमुख खरीदार रहा है, इस घटनाक्रम पर करीबी नजर रख रहा है। अगर अमेरिका ईरान के तेल व्यापार पर नरमी बरतता है, तो भारत के लिए सस्ता तेल आयात फिर से संभव हो सकता है। हालांकि, भारत को अमेरिका और सऊदी अरब जैसे सहयोगियों के साथ अपने संबंधों को भी संतुलित करना होगा। ISRO और अंतरिक्ष मिशनों जैसे क्षेत्रों में भारत-अमेरिका सहयोग को देखते हुए, यह कूटनीतिक बदलाव भारत के लिए नए अवसर ला सकता है।
सीजफायर की स्थिति और भविष्य
12 दिनों तक चले इस युद्ध में दोनों पक्षों को भारी नुकसान हुआ। ईरान के परमाणु कार्यक्रम को निशाना बनाए जाने की खबरें हैं, लेकिन इसका स्वतंत्र सत्यापन नहीं हुआ है। सीजफायर के बाद, ट्रम्प की अगले हफ्ते होने वाली ईरान-अमेरिका बातचीत पर सबकी नजरें हैं। क्या यह मध्य पूर्व में स्थायी शांति लाएगा, या यह केवल एक अस्थायी ठहराव है? यह समय ही बताएगा।
वैश्विक कूटनीति में एक नया मोड़
ईरान-इजराइल युद्ध और ट्रम्प का सीजफायर वैश्विक कूटनीति में एक नया मोड़ है। ट्रम्प का ईरान की तारीफ करना और तेल व्यापार पर नरमी बरतना एक अप्रत्याशित कदम है, जो मध्य पूर्व की भू-राजनीति को बदल सकता है। भारत जैसे देशों के लिए यह न केवल आर्थिक, बल्कि रणनीतिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है। इस कहानी का अगला अध्याय क्या होगा, यह ट्रम्प और ईरान की बातचीत पर निर्भर करता है।
FAQ: ईरान-इजराइल युद्ध और ट्रम्प का सीजफायर
1. . ईरान-इजराइल युद्ध कब शुरू हुआ?
यह युद्ध 13 जून 2025 को शुरू हुआ, जब दोनों देशों ने एक-दूसरे पर मिसाइल हमले किए। यह 12 दिनों तक चला।
2. ट्रम्प ने सीजफायर की घोषणा कब की?
ट्रम्प ने 24 जून 2025 को ‘पूर्ण और स्थायी’ सीजफायर की घोषणा की, लेकिन कुछ घंटों बाद उल्लंघन के आरोप भी लगाए।
3. नाटो समिट में ट्रम्प ने क्या कहा?
25 जून 2025 को, ट्रम्प ने द हेग में कहा कि ईरान ने युद्ध में बहादुरी दिखाई और वह उनके तेल व्यापार को नहीं रोकेंगे।
4. ईरान का तेल व्यापार क्या है?
ईरान अपने तेल निर्यात से आर्थिक आय प्राप्त करता है। ट्रम्प ने कहा कि चीन अगर ईरान से तेल खरीदता है, तो उन्हें कोई आपत्ति नहीं है।
5. क्या यह प्रतिबंधों में ढील है?
व्हाइट हाउस ने स्पष्ट किया कि यह प्रतिबंधों में ढील नहीं है, बल्कि कूटनीतिक दृष्टिकोण है।
6. भारत पर इसका क्या असर होगा?
अगर ईरान का तेल व्यापार आसान होता है, तो भारत को सस्ता तेल मिल सकता है, लेकिन उसे अमेरिका और सऊदी अरब के साथ संबंध भी संतुलित करने होंगे।
7. अगला कदम क्या है?
ट्रम्प ने कहा कि अगले हफ्ते ईरान और अमेरिका के बीच बातचीत होगी, जिस पर वैश्विक नजरें टिकी हैं।
स्रोत:
- Reuters (www.reuters.com)
- Associated Press (www.apnews.com)
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