व्हाइट हाउस की प्रवक्ता कैरोलिन लेविट ने डोनाल्ड ट्रम्प के लिए ट्रम्प नोबेल शांति पुरस्कार की मांग कर दुनिया को चौंका दिया। क्या यह मांग ट्रम्प की उपलब्धियों का सम्मान है या महज एक राजनीतिक दांव?
वाशिंगटन डीसी की सियासी गलियारों में एक बार फिर हलचल मच गई है। व्हाइट हाउस की प्रेस सचिव कैरोलिन लेविट ने हाल ही में दावा किया कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प नोबेल शांति पुरस्कार के हकदार हैं। लेविट का कहना है कि ट्रम्प ने वैश्विक शांति के लिए ऐसी उपलब्धियां हासिल की हैं, जो पहले के कई नोबेल विजेताओं से कहीं ज्यादा प्रभावशाली हैं। इस बयान ने न केवल अमेरिका बल्कि पूरी दुनिया में बहस छेड़ दी है। कुछ लोग इसे ट्रम्प की कूटनीतिक जीत का प्रमाण मान रहे हैं, तो कुछ इसे हास्यास्पद और राजनीति से प्रेरित बता रहे हैं। आखिर क्या है इस मांग के पीछे की कहानी? आइए, इसकी तह तक जाते हैं।
कैरोलिन लेविट का दावा: क्यों उठी नोबेल शांति पुरस्कार की मांग?
ट्रम्प की शांति उपलब्धियों का जिक्र
कैरोलिन लेविट ने 31 जुलाई 2025 को व्हाइट हाउस के प्रेस ब्रीफिंग रूम से कहा, “राष्ट्रपति ट्रम्प को नोबेल शांति पुरस्कार देने का समय आ गया है।” उन्होंने ट्रम्प की कई कूटनीतिक उपलब्धियों का हवाला दिया, जिनमें भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव कम करना, थाईलैंड-कंबोडिया युद्धविराम, और मध्य पूर्व में अब्राहम समझौते शामिल हैं। लेविट ने दावा किया कि ट्रम्प की “पीस थ्रू स्ट्रेंथ” नीति ने दुनिया को सुरक्षित बनाया है।
उन्होंने यह भी कहा कि ट्रम्प ने अपने पहले कार्यकाल में मध्य पूर्व में ऐतिहासिक अब्राहम समझौते के जरिए इजरायल, बहरीन और संयुक्त अरब अमीरात के बीच संबंध सामान्य किए, जो दशकों से असंभव माना जाता था। इसके अलावा, हाल ही में भारत और पाकिस्तान के बीच मई 2025 में हुए सैन्य तनाव को कम करने में ट्रम्प की मध्यस्थता को भी लेविट ने उनकी उपलब्धि बताया।
ट्रम्प की उपलब्धियां: हकीकत या बढ़ा-चढ़ाकर पेश?
भारत-पाकिस्तान तनाव और ट्रम्प की भूमिका
लेविट ने भारत और पाकिस्तान के बीच मई 2025 में हुए सैन्य तनाव को खत्म करने का श्रेय ट्रम्प को दिया। पाकिस्तान की सरकार ने भी ट्रम्प को 2026 के नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामांकित किया, यह कहते हुए कि उनकी कूटनीति ने “दो परमाणु शक्तियों के बीच विनाशकारी युद्ध” को रोका।
हालांकि, भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्पष्ट किया कि यह युद्धविराम भारतीय और पाकिस्तानी सेनाओं के बीच सीधी बातचीत से हुआ, न कि किसी बाहरी मध्यस्थता से। इससे ट्रम्प की भूमिका पर सवाल उठे हैं। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि ट्रम्प ने इस मामले में केवल कूटनीतिक दबाव बनाया, जबकि वास्तविक समाधान दोनों देशों की आपसी समझ से हुआ।
अब्राहम समझौते और मध्य पूर्व शांति
ट्रम्प के पहले कार्यकाल में 2020 में हुए अब्राहम समझौते को उनकी सबसे बड़ी कूटनीतिक जीत माना जाता है। इस समझौते ने इजरायल और कई अरब देशों के बीच संबंधों को सामान्य किया। लेविट का दावा है कि ट्रम्प अब इस समझौते को और विस्तार दे रहे हैं, जिससे मध्य पूर्व में स्थायी शांति की संभावना बढ़ रही है।
लेकिन आलोचकों का कहना है कि यह समझौता फिलिस्तीन-इजरायल विवाद को हल करने में नाकाम रहा, जो मध्य पूर्व की अशांति का मुख्य कारण है। इसके अलावा, ट्रम्प प्रशासन द्वारा इजरायल को हथियारों की आपूर्ति को लेकर भी सवाल उठे हैं, जिसे कुछ लोग शांति के बजाय युद्ध को बढ़ावा देने वाला मानते हैं।
विवादों का साया: क्यों उठ रहे सवाल?
ट्रम्प की नीतियों पर आलोचना
लेविट के बयान की आलोचना न केवल डेमोक्रेट्स बल्कि कुछ रिपब्लिकन्स ने भी की। आलोचकों का कहना है कि ट्रम्प ने ईरान पर हमला किया, जिसके बाद ही इजरायल-ईरान युद्धविराम हुआ। ऐसे में उन्हें शांति पुरस्कार का दावेदार मानना हास्यास्पद है।
सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर भी लेविट के बयान की खूब आलोचना हुई। एक यूजर ने लिखा, “ट्रम्प को शांति पुरस्कार देने की बात हास्यास्पद है। उन्होंने युद्ध शुरू किए और फिर युद्धविराम का श्रेय लिया।”
इसके अलावा, ट्रम्प का रूस-यूक्रेन युद्ध को खत्म करने का दावा भी विवादों में है। हाल ही में ट्रम्प ने यूक्रेन को हथियारों की आपूर्ति रोकने का फैसला लिया, जिसे बाद में वापस लेना पड़ा। इस कदम को कई लोगों ने शांति के बजाय रूस के प्रति नरमी के रूप में देखा।
नोबेल पुरस्कार की राजनीति
नोबेल शांति पुरस्कार का चयन एक गोपनीय प्रक्रिया है, जिसमें राष्ट्रीय स्तर के नेता, विश्वविद्यालय प्रोफेसर, और पूर्व नोबेल विजेता नामांकन कर सकते हैं। ट्रम्प को पहले भी कई बार नामांकित किया गया है, लेकिन वे कभी विजेता नहीं बने। ट्रम्प ने कई मौकों पर इसकी शिकायत की है, खासकर बराक ओबामा को 2009 में मिले पुरस्कार को लेकर।
कुछ विशेषज्ञ मानते हैं कि लेविट का बयान ट्रम्प के समर्थकों को उत्साहित करने और उनकी वैश्विक छवि को चमकाने की रणनीति है। लेकिन यह भी सच है कि नोबेल समिति ऐसे दावों से प्रभावित नहीं होती।
क्या कहते हैं जानकार?
वैश्विक मंच पर ट्रम्प की छवि
विदेश नीति के जानकारों का मानना है कि ट्रम्प की “पीस थ्रू स्ट्रेंथ” नीति ने कुछ मामलों में प्रभावी परिणाम दिए हैं। उदाहरण के तौर पर, कोलंबिया के साथ अवैध प्रवासियों की प्रत्यावर्तन नीति में ट्रम्प की सख्ती को लेविट ने उनकी कूटनीतिक जीत बताया।
लेकिन दूसरी ओर, ट्रम्प की नीतियों को कई देशों में आलोचना का सामना करना पड़ता है। विशेषज्ञों का कहना है कि ट्रम्प की अप्रत्याशित कूटनीति कभी-कभी सहयोगियों को भी असहज कर देती है। उदाहरण के तौर पर, फ्रांस, कनाडा और यूके के साथ फिलिस्तीन राज्य को मान्यता देने के मुद्दे पर ट्रम्प का विरोध चर्चा में रहा।
आगे क्या?
लेविट की मांग ने ट्रम्प को एक बार फिर सुर्खियों में ला दिया है, लेकिन क्या वे वाकई नोबेल शांति पुरस्कार जीत पाएंगे? यह सवाल अभी अनुत्तरित है। नोबेल समिति 2025 के पुरस्कार की घोषणा 10 अक्टूबर को करेगी, और ट्रम्प का नाम अभी सट्टेबाजी में दूसरे स्थान पर है।
फिलहाल, यह मांग ट्रम्प के समर्थकों के लिए उत्साह का कारण बन सकती है, लेकिन आलोचकों के लिए यह एक और विवाद। अगर आप इस मुद्दे पर अपनी राय रखना चाहते हैं, तो नीचे कमेंट करें। क्या आपको लगता है कि ट्रम्प नोबेल शांति पुरस्कार के हकदार हैं? या यह सिर्फ एक सियासी खेल है? ऐसी ही खबरों के लिए हमारे साथ बने रहें।