Bernstein Report ने भारत की बढ़ती आर्थिक असमानता का चौंकाने वाला खुलासा किया है। इसकी हकीकत जानने के लिए हमने उत्तर प्रदेश और बिहार के शहरों व गांवों का दौरा किया। इस जमीनी पड़ताल में जो देखने को मिला, उसे हमने इस लेख में संक्षेप में पेश किया है।
भारत में बढ़ती आर्थिक असमानता: अमीर-गरीब की खाई का सच
भारत की चमकती अर्थव्यवस्था के पीछे एक कड़वा सच छिपा है। Bernstein Report ने खुलासा किया है कि देश के शीर्ष 1% अति धनवान परिवारों के पास 11.6 लाख करोड़ डॉलर की संपत्ति है।
पहला झटका: भारत में बढ़ती असमानता का आलम
भारत में बढ़ती आर्थिक असमानता और Bernstein Report ने देश की आर्थिक तस्वीर पर गहरे सवाल खड़े किए हैं। एक तरफ भारत दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में शुमार है, तो दूसरी तरफ अमीर और गरीब के बीच की खाई लगातार चौड़ी हो रही है। रिपोर्ट के मुताबिक, देश की कुल संपत्ति का बड़ा हिस्सा अब कुछ मुट्ठीभर लोगों के पास सिमटता जा रहा है, जबकि करोड़ों लोग बुनियादी जरूरतों के लिए जूझ रहे हैं। यह असमानता न केवल आर्थिक है, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक स्तर पर भी समाज को बांट रही है।
मैंने हाल ही में उत्तर प्रदेश और बिहार के कुछ गांवों का दौरा किया, जहां लोग रोजगार, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सुविधाओं के लिए तरस रहे हैं। दूसरी ओर, शहरों में गगनचुंबी इमारतें और लग्जरी कारें इस असमानता को और उजागर करती हैं। आइए, इस गंभीर मुद्दे को गहराई से समझें।
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Bernstein Report का खुलासा: आंकड़ों का कड़वा सच
Bernstein Report के अनुसार, भारत के शीर्ष 1% धनवानों के पास देश की कुल संपत्ति का 40% से अधिक हिस्सा है, जो करीब 11.6 लाख करोड़ डॉलर है। यह आंकड़ा न केवल चौंकाने वाला है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि भारत में धन का वितरण कितना असंतुलित है। विश्व बैंक के गिनी इंडेक्स के अनुसार, भारत में आय असमानता का स्कोर 25.5 है, जो इसे दुनिया के सबसे समान समाजों में चौथा स्थान देता है। लेकिन यह आंकड़ा ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के बीच की खाई को पूरी तरह नहीं दर्शाता।
उदाहरण के लिए, जहां मुंबई और दिल्ली जैसे महानगरों में लोग लक्जरी लाइफस्टाइल जी रहे हैं, वहीं उत्तर प्रदेश और बिहार के गांवों में लोग दो वक्त की रोटी के लिए संघर्ष कर रहे हैं। यह असमानता केवल आर्थिक नहीं, बल्कि शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के अवसरों तक पहुंच में भी साफ दिखती है।
प्रधानमंत्री की बात और सरकारी राशन का सच
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने भाषणों में कई बार कहा है कि देश के 80 करोड़ से अधिक लोग मुफ्त राशन योजनाओं पर निर्भर हैं। प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना (PMGKAY) के तहत हर महीने लाखों टन अनाज वितरित किया जा रहा है। यह योजना निस्संदेह लाखों लोगों के लिए जीवन रेखा बनी है, लेकिन यह भी एक सच्चाई है कि इतनी बड़ी आबादी का मुफ्त राशन पर निर्भर होना देश में गरीबी और आर्थिक असमानता की गहराई को दर्शाता है।
मैंने बिहार के एक गांव में एक परिवार से मुलाकात की, जहां पांच लोग सरकारी राशन के भरोसे जी रहे हैं। परिवार के मुखिया रामू ने बताया, “हमें राशन तो मिलता है, लेकिन बच्चों की स्कूल फीस और दवाइयों के लिए पैसे नहीं हैं।” यह कहानी सिर्फ एक परिवार की नहीं, बल्कि देश के करोड़ों लोगों की है।
झूठी प्रतिष्ठा: कर्ज में डूबता गरीब
आर्थिक असमानता का एक बड़ा कारण सामाजिक दबाव और झूठी प्रतिष्ठा भी है। Bernstein Report भले ही धन के असमान वितरण पर जोर देती हो, लेकिन समाज में दिखावे की संस्कृति भी इस खाई को बढ़ा रही है। मैंने देखा कि ग्रामीण इलाकों में लोग कर्ज लेकर मोटरसाइकिल या स्मार्टफोन खरीद रहे हैं, ताकि समाज में अपनी “प्रतिष्ठा” बनाए रख सकें।
उदाहरण के लिए, उत्तर प्रदेश के एक गांव में रामलाल ने अपनी बेटी की शादी के लिए कर्ज लिया और एक मोटरसाइकिल खरीदी। लेकिन अब हर महीने पेट्रोल और कर्ज की किश्त चुकाने में उनकी कमाई का बड़ा हिस्सा चला जाता है। यह सामाजिक दबाव गरीबों को और गरीबी की ओर धकेल रहा है।
टेलीकॉम कंपनियों का एकाधिकार: जियो, एयरटेल और VI का बोलबाला
जियो के बाजार में आने के बाद भारतीय टेलीकॉम सेक्टर में प्रतिस्पर्धा लगभग खत्म हो चुकी है। आज जियो, एयरटेल और वोडाफोन-आइडिया (VI) का मार्केट पर कब्जा है। इन कंपनियों ने रिचार्ज प्लान की कीमतों में लगातार इजाफा किया है, जिसका सीधा असर आम आदमी की जेब पर पड़ रहा है।
एक सर्वे के मुताबिक, भारत में औसतन हर परिवार में 2-3 सिम कार्ड का उपयोग हो रहा है। लेकिन बढ़ती रिचार्ज कीमतों ने गरीब और मध्यम वर्ग के लिए इंटरनेट और फोन का इस्तेमाल महंगा कर दिया है। एक टेलीकॉम एक्सपर्ट ने मुझे बताया, “जियो के आने से पहले सस्ते रिचार्ज ने लोगों को डिजिटल दुनिया से जोड़ा, लेकिन अब बढ़ती कीमतें डिजिटल असमानता को बढ़ा रही हैं।”
शिक्षा का संकट: निजी स्कूलों की फीस और सरकारी स्कूलों की बदहाली
शिक्षा के क्षेत्र में भी भारत में बढ़ती असमानता साफ दिखाई देती है। निजी स्कूल भारी-भरकम फीस वसूल रहे हैं, जो मध्यम वर्ग के लिए भी वहन करना मुश्किल है। दूसरी ओर, सरकारी स्कूलों की हालत, खासकर उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों में, बेहद खराब है।
मैंने बिहार के एक सरकारी स्कूल का दौरा किया, जहां न तो पर्याप्त शिक्षक थे, न ही बुनियादी सुविधाएं। स्कूल की बिल्डिंग जर्जर थी, और बच्चे फर्श पर बैठकर पढ़ रहे थे। वहीं, शहरों में निजी स्कूलों में लाखों रुपये की फीस और आधुनिक सुविधाएं अमीरों के बच्चों को बेहतर भविष्य दे रही हैं। यह शिक्षा का असमान वितरण आने वाली पीढ़ियों के बीच की खाई को और गहरा कर रहा है।
क्या है समाधान? नीतियों और सामाजिक बदलाव की जरूरत
आर्थिक असमानता को कम करने के लिए नीतिगत और सामाजिक स्तर पर बड़े बदलाव की जरूरत है। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि प्रगतिशील कर व्यवस्था (Progressive Taxation) लागू की जानी चाहिए, जिसमें अमीरों पर ज्यादा टैक्स लगे। साथ ही, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं तक सभी की पहुंच सुनिश्चित होनी चाहिए।
प्रधानमंत्री जन धन योजना और आयुष्मान भारत जैसी योजनाएं इस दिशा में सकारात्मक कदम हैं, लेकिन इनका प्रभाव ग्रामीण और हाशिए पर रहने वाले समुदायों तक पूरी तरह नहीं पहुंच पा रहा। इसके अलावा, रोजगार सृजन और श्रम-प्रधान उद्योगों को बढ़ावा देना भी जरूरी है।
आगे की राह: एक समावेशी भारत का सपना
भारत में बढ़ती असमानता और Bernstein Report ने हमें एक कड़वे सच से रूबरू कराया है। यह समय है कि हम केवल आर्थिक विकास की चमक पर नहीं, बल्कि समाज के हर वर्ग को साथ लेकर चलने पर ध्यान दें। सरकार, समाज और नागरिकों को मिलकर इस खाई को पाटना होगा।
आप क्या सोचते हैं? क्या भारत इस असमानता को कम कर सकता है? अपने विचार हमारे साथ साझा करें और इस मुद्दे पर चर्चा को आगे बढ़ाएं। आइए, एक ऐसे भारत का निर्माण करें, जहां हर व्यक्ति को समान अवसर मिले और कोई भूखा न सोए।
लेखक: अवधेश यादव |पब्लिश दिनांक: 26 जुलाई