नई दिल्ली, 04 अप्रैल: भारतीयों सड़कों पर अब एक नया शोर सुनाई दे रहा है—या यूँ कहें, एक नई खामोशी, क्योंकि इलेक्ट्रिक वाहन (EV) धीरे-धीरे पेट्रोल-डीज़ल की गाड़ियों को पीछे छोड़ रहे हैं।
प्रदूषण से परेशान शहर, आसमान छूती ईंधन की कीमतें और पर्यावरण को बचाने की चाह—इन सबने मिलकर भारत में EV गाड़ियों के लिए माहौल तैयार कर दिया है। लेकिन क्या यह सचमुच एक नए दौर की शुरुआत है? आइए, इसकी हकीकत को करीब से देखें।
EV का बढ़ता चलन
पिछले कुछ सालों में इलेक्ट्रिक वाहन (EV vehicles) भारत में तेज़ी से लोकप्रिय हुए हैं। टाटा नेक्सन EV, ओला S1 स्कूटर और महिंद्रा की इलेक्ट्रिक गाड़ियाँ बाज़ार में छाई हुई हैं। 2024 में EV की बिक्री में 40% की बढ़ोतरी हुई, जो बताती है कि लोग अब इस बदलाव को अपनाने लगे हैं। पेट्रोल 110 रुपये लीटर को पार कर चुका है, और ऐसे में एक इलेक्ट्रिक स्कूटर या कार चलाना जेब पर हल्का पड़ता है।
लोगों का कहना है कि यह सिर्फ पैसे की बात नहीं—हवा भी साफ हो रही है। दिल्ली जैसे शहर, जहाँ साँस लेना मुश्किल हो जाता है, वहाँ EV एक उम्मीद की किरण बनकर उभरे हैं। लेकिन क्या यह उम्मीद हकीकत में बदल पाएगी?
सरकार का साथ: FAME योजना
EV का नया दौर शुरू करने में सरकार का बड़ा हाथ है। FAME योजना के तहत इलेक्ट्रिक गाड़ियों पर सब्सिडी दी जा रही है—स्कूटर पर 10,000 रुपये से लेकर कार पर 1.5 लाख रुपये तक। 2030 तक 30% वाहनों को इलेक्ट्रिक करने का लक्ष्य है, और इसके लिए 2025 तक 50,000 नए चार्जिंग स्टेशन लगाने की योजना है। दिल्ली, महाराष्ट्र और कर्नाटक जैसे राज्य भी अपनी EV पॉलिसी लाए हैं—कहीं टैक्स माफ है, तो कहीं रजिस्ट्रेशन फ्री।
रास्ते की रुकावटें
सपने बड़े हैं, लेकिन राह आसान नहीं। भारत में EV गाड़ियाँ अभी कई चुनौतियों से जूझ रही हैं:
1. चार्जिंग स्टेशन का अभाव
पूरे देश में अभी सिर्फ 10,000 के आसपास चार्जिंग स्टेशन हैं। शहरों में तो ठीक, लेकिन गाँव-कस्बों में चार्जिंग ढूँढना सुई-धागे जैसा है। एक कार को फुल चार्ज करने में 6-8 घंटे लगते हैं, और फास्ट चार्जर अभी गिनती के हैं।
2. बैटरी का खर्चा
EV की बैटरी गाड़ी की कीमत का आधा हिस्सा होती है। भले ही कीमतें कम हो रही हों, लेकिन अभी भी यह आम आदमी की जेब से बाहर है। पुरानी बैटरी को रीसाइक्लिंग करने का सिस्टम भी तैयार नहीं है।
3. कीमत का बोझ
टाटा नेक्सन EV की कीमत 14 लाख से शुरू होती है, जबकि पेट्रोल वाली नेक्सन 8 लाख में मिल जाती है। सब्सिडी के बाद भी यह फर्क कई लोगों को EV से दूर रखता है।
4. डर और अनजानापन
“अगर बैटरी खत्म हो गई तो क्या होगा?”—यह सवाल हर EV खरीदने वाले के मन में आता है। खासकर हाईवे या गाँव की सड़कों पर यह डर बड़ा है।
लोग क्या कहते हैं?
दिल्ली के आशुतोष यादव, जो ओला स्कूटर चलाते हैं, कहते हैं, “पहले सोचता था कि चार्जिंग मुश्किल होगी, लेकिन अब महीने का 400-500 रुपये बिजली बिल आता है—पेट्रोल से आधा भी नहीं।” वहीं, बेंगलुरु की खुशी त्रिपाठी कहती हैं, “शहर में तो ठीक है, लेकिन लंबी ड्राइव के लिए अभी भरोसा नहीं।” ये बातें बताती हैं कि EV का नया दौर शुरू तो हुआ है, लेकिन अभी इसे पक्का करना बाकी है।
आगे की राह
अगले 5-10 साल भारत में EV गाड़ियों के लिए अहम होंगे। टाटा पावर और रिलायंस चार्जिंग नेटवर्क बढ़ा रहे हैं। बैटरी स्वैपिंग का आइडिया भी जोर पकड़ रहा है—चार्ज करने के बजाय बैटरी बदल दो, और 5 मिनट में गाड़ी तैयार। दिल्ली में इसकी टेस्टिंग चल रही है। अगर यह हिट हुआ, तो चार्जिंग की सबसे बड़ी परेशानी खत्म हो सकती है।
पर्यावरण का फायदा
इलेक्ट्रिक वाहन (Electric vehicles) सिर्फ जेब ही नहीं, पर्यावरण भी बचाते हैं। अगर 2030 तक 30% गाड़ियाँ EV बन गईं, तो हर साल 15 मिलियन टन CO2 कम होगा। साफ हवा और कम शोर—यह सपना सच हो सकता है।
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आखिरी बात
देश में EV गाड़ियों के नए दौर की हुई शुरुआत—यह सच है, लेकिन अभी शुरुआत ही है। चार्जिंग स्टेशन बढ़ें, बैटरी सस्ती हो, और लोगों का भरोसा बने—तभी यह दौर पूरा होगा। आप इस बदलाव को कैसे देखते हैं? अपनी राय ज़रूर बताएँ।