“इंस्पेक्टर झेंडे” रिव्यू: मनोज बाजपेयी ने जिंदा कर दिया असली हीरो को, क्राइम-कॉमेडी का मस्त मेल!
नई दिल्ली, 05 सितम्बर: ओटीटी प्लेटफॉर्म Netflix पर 5 सितंबर 2025 को रिलीज हुई फिल्म “इंस्पेक्टर झेंडे” सिर्फ एक क्राइम थ्रिलर नहीं, बल्कि एक सच्चे हीरो की कहानी है। मनोज बाजपेयी ने इस फिल्म में मुंबई पुलिस के असली इंस्पेक्टर मधुकर झेंडे का किरदार निभाया है, जिन्होंने 1986 में कुख्यात “स्विमसूट किलर” चार्ल्स शोभराज (फिल्म में कार्ल भोजराज) को पकड़ने में अहम भूमिका निभाई थी । फिल्म की कहानी, एक्टिंग और डायरेक्शन ने दर्शकों को बांधे रखा है।
कहानी का सार: असली घटना पर आधारित है फिल्म
फिल्म की कहानी 1986 की मुंबई में सेट है। इंस्पेक्टर झेंडे (मनोज बाजपेयी) एक साधारण पुलिस अफसर हैं, जिनकी जिंदगी आम मिडिल-क्लास लोगों जैसी है। जब कुख्यात अपराधी कार्ल भोजराज (जिम सर्भ) जेल से भागता है, तो उसे पकड़ने की जिम्मेदारी झेंडे को मिलती है। इसके बाद शुरू होती है मुंबई से गोवा तक की कॉमेडी भरी थ्रिलर रेस। पुलिस और अपराधी का टकराव पारंपरिक हीरो-विलेन वाली लड़ाई नहीं, बल्कि मजाक और गलतियों से भरी दौड़-भाग बन जाता है ।
डायरेक्शन और लेखन: सच और मजाक का बेहतरीन संतुलन
डायरेक्टर चिन्मय मांडलेकर ने फिल्म को सच और मजाक के बीच संतुलित करने की कोशिश की है। फिल्म की शुरुआत में ही नैरेटर कहता है, “यह फिल्म सच्ची कहानी पर आधारित है, जो देखने में झूठी लग सकती है।” इससे पता चलता है कि कहानी हल्के-फुल्के व्यंग्य भरे लहजे में कही जाएगी। डायरेक्टर ने पुलिसवालों को माचो हीरो नहीं, बल्कि आम इंसान की तरह दिखाया है, जो पहली फ्लाइट में डरते हैं और गोवा के पब में जाकर मजेदार नाम रखते हैं। हालांकि, कुछ जगहों पर कॉमेडी जबरदस्ती लगती है, और थ्रिलर सीन पैरोडी जैसे हो जाते हैं ।
तकनीकी पहलू: 80s की मुंबई-गोवा की झलक
- सिनेमैटोग्राफी: विशाल सिन्हा का कैमरा 80s के दशक की मुंबई और गोवा को बखूबी दिखाता है। सेपिया टोन और लोकल लोकेशन्स फिल्म को असली स्वाद देते हैं।
- प्रोडक्शन डिजाइन: राजेश चौधरी का काम तारीफ के काबिल है। पुलिस थाने, चॉल, पुरानी कारें और गोवा के क्लब सब कुछ समयानुसार असली लगते हैं।
- एडिटिंग: फिल्म की लंबाई 1 घंटा 52 मिनट सही है, लेकिन कुछ जगहों पर कटिंग ढीली लगती है।
- बैकग्राउंड म्यूजिक: यह फिल्म का सबसे कमजोर पहलू है। एक अच्छी BGM चेस सीन्स को और रोमांचक बना सकती थी, लेकिन यहाँ म्यूजिक सपाट और फीका रह जाता है ।
अभिनय: मनोज बाजपेयी ने छाए, जिम सर्भ ने दमदार विलेन किया
- मनोज बाजपेयी: उनका सधा हुआ अभिनय और सूखी कॉमिक टाइमिंग फिल्म का सबसे बड़ा आकर्षण है। वे इंस्पेक्टर झेंडे की भूमिका में पूरी तरह से डूबे नजर आते हैं।
- जिम सर्भ: स्मार्ट और खतरनाक अपराधी के रोल में दमदार अभिनय किया है। उनका स्टाइल और लहजा फिल्म को क्लास देता है।
- गिरिजा ओक: मासूम और रिलेटेबल पत्नी के किरदार में दर्शकों का दिल जीत लेती हैं।
- भालचंद्र कदम और अन्य मराठी कलाकार: अपनी कॉमिक टाइमिंग से फिल्म में हल्कापन बनाए रखते हैं ।
फिल्म की खासियत और कमजोरियां
खासियत:
- मनोज बाजपेयी का दमदार अभिनय।
- कॉमेडी और थ्रिल का बैलेंस।
- 70-80s के दशक की रियलिस्टिक झलक।
- कुछ शार्प डायलॉग्स जो दर्शकों को याद रह जाते हैं।
कमजोरियां:
- कुछ जगह कहानी धीमी पड़ती है।
- कुछ सीक्वेंस लंबे खिंचते हैं।
- साइड कैरेक्टर्स को और स्कोप मिल सकता था ।
देखें या नहीं?
“इंस्पेक्टर झेंडे” एक परफेक्ट फिल्म नहीं है, लेकिन यह दर्शकों का पूरा एंटरटेनमेंट करती है। इसमें सस्पेंस भी है और हंसी भी। अगर आप मनोज बाजपेयी को एक अलग और मजेदार अंदाज में देखना चाहते हैं, तो यह फिल्म जरूर देखें। फिल्म 5 सितंबर 2025 से Netflix पर स्ट्रीम हो रही है ।
रेटिंग: 5 में से 3.5 स्टार
नोट: यह रिव्यू विभिन्न स्रोतों पर आधारित है। फिल्म की व्यक्तिगत राय अलग-अलग हो सकती है।