42 करोड़ का हाटकेश्वर ब्रिज 5 साल में जर्जर, 3.9 करोड़ में होगा ध्वस्त: क्या है वजह?
अहमदाबाद, गुजरात 11 जुलाई 2025: अहमदाबाद का हाटकेश्वर ब्रिज, जो कभी शहर की शान और इंजीनियरिंग का नमूना माना गया, आज एक दुखद कहानी का हिस्सा बन चुका है। 2017 में 42 करोड़ रुपये की भारी-भरकम लागत से बना यह ब्रिज महज 5 साल में जर्जर हो गया। अब इसे 3.9 करोड़ रुपये में ध्वस्त करने की तैयारी है। जी हां, आपने सही पढ़ा—42 करोड़ का निवेश 5 साल में धूल में मिलने जा रहा है, और इसके लिए हमें और 3.9 करोड़ रुपये खर्च करने पड़ेंगे। आइए, इस कहानी के पीछे की वजहों को टटोलते हैं, जिसमें कहीं इंजीनियरिंग की चूक है, तो कहीं “चमत्कारिक” प्रबंधन का कमाल।
हाटकेश्वर ब्रिज: एक आशा से जर्जर तक का सफर
2017 में जब हाटकेश्वर ब्रिज बनकर तैयार हुआ, तो इसे अहमदाबाद के यातायात को सुगम बनाने का एक सुनहरा सपना बताया गया। 42 करोड़ रुपये की लागत, चमचमाते कॉलम, और भव्य उद्घाटन—सब कुछ ऐसा था मानो यह ब्रिज अगले 50 साल तक शहर की शान बढ़ाएगा। लेकिन, जैसा कि हमारे देश में कुछ “महान” परियोजनाओं के साथ होता है, यह सपना 5 साल में ही चूर-चूर हो गया। सड़क में दरारें, संरचना में कमजोरी, और विशेषज्ञों की चेतावनी—यह ब्रिज इतना असुरक्षित हो चुका था कि 2021 में इसे बंद करना पड़ा।
अब सवाल यह है कि आखिर इतने कम समय में यह ब्रिज कैसे जर्जर हो गया? क्या यह इंजीनियरिंग का कमाल था, या फिर कुछ और “कमाल” इसमें शामिल था? शायद कुछ ठेकेदारों ने सोचा होगा कि 42 करोड़ में से कुछ “बचत” भी करनी है, और परिणाम सामने है।
तोड़ने की कीमत: 3.9 करोड़ का नया टेंडर
अहमदाबाद नगर निगम (AMC) ने अब हाटकेश्वर ब्रिज को ध्वस्त करने का फैसला किया है। इसके लिए गणेश कंस्ट्रक्शन कंपनी को 3.9 करोड़ रुपये का टेंडर दिया गया है। मानसून के बाद यह ब्रिज जमींदोज होगा, और ट्रैफिक व्यवधान को कम करने के लिए विशेष इंतजाम किए जाएंगे। लेकिन रुकिए, यह कहानी यहीं खत्म नहीं होती। नए ब्रिज के निर्माण का खर्च अलग से होगा, जिसकी लागत 52 करोड़ रुपये तक जा सकती है। और हां, इस बार बिल मूल ठेकेदार, अजय इन्फ्रा कंपनी, को भेजा जाएगा।
यहां मजेदार बात यह है कि जिस ठेकेदार ने 42 करोड़ में ब्रिज बनाया, उसे अब पुनर्निर्माण का खर्च उठाना पड़ सकता है। यह थोड़ा ऐसा है जैसे कोई आपको खराब खाना परोस दे और फिर कहे, “अरे, नया खाना मैं ही बनाऊंगा, लेकिन बिल आप भरिए!”
कौन है जिम्मेदार: इंजीनियरिंग या “इंजन-नीरिंग”?
अब सवाल उठता है कि इस पूरे फियास्को का जिम्मेदार कौन है? क्या यह केवल इंजीनियरिंग की गलती थी, या फिर कुछ और “इंजन-नीरिंग” का खेल था? जांच में पाया गया कि ब्रिज में तकनीकी खामियां थीं—घटिया सामग्री, खराब डिजाइन, और शायद कुछ “अदृश्य” लागत जो कागजों पर तो थीं, लेकिन ब्रिज की मजबूती में नहीं दिखीं।
विपक्षी दलों ने इसे भ्रष्टाचार का शानदार नमूना बताया है। उनका कहना है कि बीजेपी शासित गुजरात में ऐसी परियोजनाएं जनता के पैसे की बर्बादी का सबूत हैं। लेकिन, हम यहां किसी पर उंगली नहीं उठाएंगे—आखिरकार, भ्रष्टाचार तो एक ऐसी कला है जिसमें सबको थोड़ा-थोड़ा हिस्सा मिलता है, है ना? फिर चाहे वह ठेकेदार हो, निगरानी समिति हो, या कोई और “महान” प्रबंधक।
रखरखाव: वो शब्द जो डिक्शनरी में नहीं मिला
गुजरात में हाल के वर्षों में हाटकेश्वर ब्रिज अकेला नहीं है जो समय से पहले बूढ़ा हो गया। मोरबी ब्रिज हादसा हो या गांभीरा ब्रिज की कहानी, एक बात साफ है—रखरखाव नाम की चीज यहां की परियोजनाओं की डिक्शनरी में शायद नहीं है। विशेषज्ञों का कहना है कि अगर समय पर ब्रिज की जांच और मरम्मत की जाती, तो शायद यह नौबत न आती। लेकिन, जब 42 करोड़ खर्च करने के बाद भी “बजट” बचाने की होड़ हो, तो रखरखाव जैसे छोटे-मोटे काम कौन करे?
यहां विडंबना यह है कि जनता के टैक्स के पैसे से बना ब्रिज जनता के लिए ही असुरक्षित हो गया। और अब जनता के ही पैसे से इसे तोड़ा जाएगा, फिर बनाया जाएगा। यह एक ऐसा चक्र है जिसमें पैसा घूमता रहता है, लेकिन जनता के हाथ में सिर्फ ट्रैफिक जाम और परेशानी आती है।
हाटकेश्वर ब्रिज का कड़वा सच
हाटकेश्वर ब्रिज की कहानी हमें एक कड़वा सबक देती है—जल्दबाजी में चमक-दमक वाली परियोजनाएं बनाना आसान है, लेकिन उनकी गुणवत्ता और रखरखाव पर ध्यान देना उतना ही जरूरी है। अब जबकि ब्रिज को तोड़ने और नए सिरे से बनाने की योजना है, उम्मीद है कि इस बार इंजीनियरिंग के साथ-साथ जवाबदेही भी प्राथमिकता होगी।
लेकिन, एक पल के लिए सोचिए—42 करोड़ का ब्रिज 5 साल में जर्जर, 3.9 करोड़ में ध्वस्त, और 52 करोड़ में नया निर्माण। यह सब कुछ ऐसा है जैसे कोई आपको कहे, “आपके घर की नींव गलत बनी थी, तो अब इसे तोड़कर फिर बनाइए, और हां, बिल भी आप ही भरिए!” शायद यह वक्त है कि हम पूछें—हमारे टैक्स के पैसे का असली “हाटकेश्वर” कौन है?
गुजरात में पुलों की बदहाली: हाटकेश्वर अकेला नहीं
हाटकेश्वर ब्रिज की कहानी गुजरात में बार-बार दोहराई जा रही है। साल 2022 में मोरबी में मच्छु नदी पर बना सस्पेंशन ब्रिज टूटने से 135 लोगों की जान चली गई थी। विशेष जांच दल (SIT) की रिपोर्ट में सामने आया कि पुरानी केबलों में जंग, अपर्याप्त मरम्मत और बिना मंजूरी के समय से पहले पुल खोलना इस हादसे की वजह था।
इसी तरह, 09 जुलाई 2025 में वडोदरा के गंभीरा-मुजपुर ब्रिज, जो मध्य गुजरात को सौराष्ट्र से जोड़ता था, के टूटने से 18 लोगों की मौत हो गई। इस हादसे में पांच गाड़ियां महिसागर नदी में डूब गईं, और कई लोग घायल होकर अस्पताल में भर्ती हैं। 43 साल पुराने इस ब्रिज की मरम्मत हाल ही में की गई थी, लेकिन स्थानीय लोगों की शिकायतों के बावजूद इसकी जर्जर हालत पर ध्यान नहीं दिया गया।

इन हादसों ने गुजरात में बुनियादी ढांचे की गुणवत्ता और रखरखाव की कमी को उजागर किया है। मोरबी, गंभीरा, और अब हाटकेश्वर ब्रिज—ये घटनाएं एक ही सवाल की ओर इशारा करती हैं: आखिर जनता की सुरक्षा और टैक्स के पैसे की जवाबदेही कौन लेगा?