“जिस देश की 55.6% आबादी पौष्टिक भोजन नहीं खरीद सकती, जहाँ 16.6% बच्चे कुपोषित हैं, वहाँ अमृतकाल का नारा महज भ्रम है। ये कर्जकाल का स्याह सच है!”
🔥 टूटे सपनों का भारत: आँकड़े जो चीखते हैं
- कर्ज का पहाड़: ₹205 लाख करोड़ का सार्वजनिक ऋण (GDP का 84%), जिस पर सालाना ₹11.9 लाख करोड़ सिर्फ़ ब्याज चुकाया जा रहा है ।
- राशन पर जिंदगी: 80 करोड़ भारतीय सरकारी अनाज पर निर्भर — ये उपलब्धि नहीं, अर्थव्यवस्था की विफलता का प्रमाण है ।
- पोषण त्रासदी:
- 5 साल से कम उम्र के 35.5% बच्चे अविकसित (स्टंटेड), 18.7% कुपोषित — दुनिया में सबसे ज्यादा ।
- 58.1% महिलाएँ एनीमिया से पीड़ित — खून में आयरन नहीं, सिस्टम में इंसाफ़ नहीं!
🍽️ थाली में सियासत: क्यों राशन बंद होना मौत का फरमान है?
- तेल, दाल, प्रोटीन का अभाव: PDS सिर्फ चावल-गेहूँ देता है। गरीब तबके के 61% लोग दूध नहीं खरीद पाते, 79% अंडा-मांस से वंचित ।
- आगरा से मध्यप्रदेश तक का सच: जब एक बिजनेसमैन ताजमहल जैसा घर बनवाता है , तब रय्या नाम की मेडिकल छात्रा ईरान में पूछती है: “क्या हम जिंदा बचेंगे?” — विदेशों में फँसे हज़ारों छात्रों की गुहार सुनता कौन है?
💡 अमृतकाल का भ्रम: कैसे आर्थिक वृद्धि “पेट भरने” में नाकाम है?
- GDP बनाम गरीबी का विरोधाभास:
पैरामीटर सरकारी दावा जमीनी हकीकत
GDP वृद्धि 8.2% (2023-24) 74% भारतीय स्वस्थ आहार नहीं खरीद सकते
विदेशी निवेश $85 बिलियन (2023) ₹2 लाख करोड़/वर्ष मुफ्त राशन पर खर्च
इंफ्रास्ट्रक्चर 30 किमी/दिन हाइवे 57% जनता राशन कार्ड पर जिंदा “अमृतकाल वो नहीं जहाँ ताजमहल की नकल कर घर बनवाया जाए। असली अमृतकाल वो है जहाँ हर बच्चे की थाली में अंडा और दूध हो!” — एक ग्रामीण चिकित्सक का सवाल 🧠 सिस्टम की विफलताएँ: नीति नहीं, राजनीति चल रही है!- 2011 की जनगणना का अभिशाप:
- 2024 में भी राशन कार्ड 13 साल पुराने डेटा पर आधारित। 10.2 करोड़ वास्तविक गरीब बाहर, जबकि 20% अपात्र लाभ ले रहे हैं ।
- कर्ज से कुर्बानी:
- कुल बजट का 20% सिर्फ कर्ज़ का ब्याज चुकाने में जाता है। शिक्षा-स्वास्थ्य पर सिर्फ 3% खर्च होता है!
- सांस्कृतिक विरोधाभास:
- बॉलीवुड में “गोरा रंग” का ग्लैमर , जबकि गाँवों में “गेहूँं रंग” वाली लड़कियों को उपहास सहना पड़ता है।
- भुखमरी का सुनामी: 80 करोड़ लोगों के पास खाने के लिए अनाज नहीं होगा।
- सामाजिक विस्फोट: 1975 के आपातकाल जैसे विरोध प्रदर्शन , जब RSS ने भूमिगत होकर लोकतंत्र बचाया था।
- अपराध बढ़ोतरी: भूखे पेट समाज से शांति की उम्मीद बेमानी है!
- राशन को पोषण में बदलो:
- चावल-गेहूँ के साथ दाल, तेल, अंडे देना शुरू करें। कर्नाटक और ओडिशा ने मोटे अनाज PDS में शामिल किए हैं ।
- फर्जी लाभार्थियों पर अंकुश:
- डिजिटल लक्षीकरण से ₹40,000-50,000 करोड़/वर्ष बचाएँ। बायोमेट्रिक सत्यापन अनिवार्य करें।
- कर्ज से इंफ्रा, इंफ्रा से रोजगार:
- विदेशी कर्ज ($711.8 बिलियन) का इस्तेमाल सड़कों के बजाय सूक्ष्म उद्योगों में करें।
- राशन कार्ड की जगह पोषण कार्ड होगा।
- कुपोषण दर 16.6% से घटकर 5% होगी।
- थाली में प्रोटीन का अनुपात रोटी से ज्यादा होगा।
- कोई माँ अपने बच्चे को भूखा सुलाने पर बिलखेगी नहीं!”**
2 thoughts on “🌑 अमृतकाल या कर्जकाल? वो सच जो 80 करोड़ राशनकार्ड धारकों की थाली में दिखता है!”