कानपुर नगर (उत्तर प्रदेश) 24 अगस्त 2025: कानपुर की व्यस्त सड़कों पर एक सामान्य दोपहर अचानक खौफनाक बन गई, जब आवारा कुत्तों के झुंड ने एक मासूम छात्रा को अपना शिकार बना लिया। उसकी चीखें आसपास गूंजीं, लेकिन तब तक उसका चेहरा हमेशा के लिए बदल चुका था – एक ऐसी घटना जो हर माता-पिता के दिल में डर पैदा कर देती है।
कानपुर में छात्रा पर आवारा कुत्तों का हमला कोई नई बात नहीं, लेकिन इस बार की घटना ने पूरे शहर को हिला दिया है। 21 साल की वैष्णवी साहू, जो एलन हाउस रूमा कॉलेज में बीबीए फाइनल ईयर की स्टूडेंट है, 20 अगस्त की दोपहर कॉलेज से घर लौट रही थी। श्याम नगर इलाके में मधुवन पार्क के पास अचानक तीन आवारा कुत्तों ने उस पर झपट्टा मारा। ये कुत्ते पहले बंदरों से झगड़ रहे थे, लेकिन वैष्णवी के आने पर उन्होंने अपना गुस्सा उस पर उतार दिया। वह भागने की कोशिश में सड़क पर गिर गई, और कुत्तों ने उसके चेहरे को नोच डाला। दाहिने गाल का मांस इस कदर फाड़ा गया कि वह दो हिस्सों में बंट गया, जबकि नाक पर भी गहरे घाव हो गए। शरीर के अन्य हिस्सों पर भी काटने के निशान हैं, जो बताते हैं कि हमला कितना हिंसक था।
घटना का आंखों देखा हाल: कैसे बची वैष्णवी की जान?
हमने जब वैष्णवी के चाचा आशुतोष निगम से बात की, जो रामपुरम फेस-1 में रहते हैं। उन्होंने बताया कि वैष्णवी उनके दिवंगत भाई वीरेंद्र स्वरूप साहू की बेटी है और परिवार के साथ ही रहती है। “वह रोज की तरह कॉलेज से पैदल लौट रही थी, क्योंकि घर ज्यादा दूर नहीं है। लेकिन पार्क के पास कुत्तों और बंदरों की लड़ाई में वह फंस गई। तीन कुत्तों ने उसे घेर लिया और हमला कर दिया। वह चिल्लाई, भागी, लेकिन कुत्ते उसे दबोचकर गिरा दिए।” आशुतोष की आवाज में दर्द साफ झलक रहा था, जैसे वह खुद उस पल को जी रहे हों।
शोर सुनकर मोहल्ले के लोग लाठी-डंडे लेकर दौड़े। उन्होंने कुत्तों को मारकर भगाया, वरना वैष्णवी की जान पर बन आती। मौके पर पहुंचे परिवार वाले उसे तुरंत कांशीराम अस्पताल ले गए, जहां डॉक्टरों ने उसके चेहरे पर 17 टांके लगाए। लेकिन घाव सिर्फ शारीरिक नहीं हैं। वैष्णवी अब सदमे में है – कुछ खा-पी नहीं पा रही, सिर्फ लिक्विड पर गुजारा कर रही है। रह-रहकर चौंक जाती है और चीख उठती है। आशुतोष कहते हैं, “वह डरी हुई है, जैसे कुत्तों का साया उसके साथ चिपक गया हो।”
पीड़िता की हालत और परिवार की चिंता: शादी-करियर पर सवालिया निशान
वैष्णवी की स्थिति देखकर कोई भी सिहर उठे। उसका चेहरा बुरी तरह क्षतिग्रस्त है, जो न सिर्फ दर्द दे रहा है बल्कि उसके भविष्य पर भी असर डाल सकता है। परिवार पैसे की मांग नहीं कर रहा, बस बेहतर इलाज चाहता है। आशुतोष ने कहा, “हमारी भतीजी का चेहरा ठीक हो जाए, बस इतना काफी है। नहीं तो उसकी शादी और करियर दोनों प्रभावित होंगे। आज हमारा बच्चा शिकार हुआ, कल किसी और का हो सकता है।” यह बात सही भी है – कानपुर जैसे शहर में स्ट्रे डॉग्स की समस्या इतनी गंभीर है कि हर कोई खतरे में है।
हमने अस्पताल जाकर डॉक्टरों से भी बात की। उन्होंने बताया कि ऐसे डॉग बाइट केस में इंफेक्शन का खतरा ज्यादा रहता है। वैष्णवी को रेबीज वैक्सीन दी गई है, लेकिन मनोवैज्ञानिक ट्रॉमा से उबरना आसान नहीं। परिवार अब प्लास्टिक सर्जरी की सोच रहा है, ताकि चेहरे के निशान कम हो सकें। लेकिन सवाल यह है कि क्या सिर्फ इलाज से समस्या हल हो जाएगी?
कानपुर में आवारा कुत्तों का आतंक: आंकड़े जो डराते हैं
कानपुर में छात्रा पर आवारा कुत्तों का हमला कोई इकलौती घटना नहीं। शहर की सड़कों पर करीब 1.25 लाख स्ट्रे डॉग्स घूम रहे हैं, जो हर साल हजारों लोगों को काटते हैं। नगर निगम के आंकड़ों के मुताबिक, पिछले साल अकेले कानपुर में 10,000 से ज्यादा डॉग बाइट केस रिपोर्ट हुए। लेकिन असल संख्या इससे ज्यादा हो सकती है, क्योंकि कई लोग रिपोर्ट नहीं करते।
हाल ही में 26 मई 2024 को एक बच्ची को आवारा कुत्तों ने नोचकर मार डाला था, जबकि एक अन्य को घायल किया। इससे पहले मोहिनी त्रिवेदी नाम की महिला की भी कुत्तों ने जान ली। ये कुत्ते इतने हिंसक हो चुके हैं कि कभी-कभी अपने मालिक पर भी हमला कर देते हैं।
क्यों बढ़ रही है यह समस्या? विशेषज्ञों का कहना है कि कचरा प्रबंधन की कमी, नसबंदी कार्यक्रमों में लापरवाही और शेल्टर होम की कमी से स्ट्रे डॉग्स की आबादी बेकाबू हो गई है। श्याम नगर जैसे इलाकों में पार्क और गलियां कुत्तों के अड्डे बन चुकी हैं, जहां बच्चे खेलने से डरते हैं। स्थानीय लोग बताते हैं कि शाम ढलते ही कुत्तों के झुंड सड़कों पर कब्जा जमा लेते हैं।
पिछली घटनाएं और सरकारी लापरवाही: कब जागेंगे जिम्मेदार?
कानपुर ही नहीं, पूरे उत्तर प्रदेश में स्ट्रे डॉग अटैक के मामले बढ़ रहे हैं। मार्च 2025 में एक बुजुर्ग महिला को उसके ही पालतू जर्मन शेफर्ड ने मार डाला।
पुणे और खरगोन जैसी जगहों से भी हाल ही में ऐसी खबरें आईं, जहां कुत्तों ने बच्चों और युवाओं पर हमला किया।सुप्रीम कोर्ट ने हाल में आवारा कुत्तों पर फैसला दिया है कि नसबंदी के बाद उन्हें वापस छोड़ा जाए, लेकिन क्या यह काफी है? कई लोग कहते हैं कि इससे समस्या और बढ़ेगी।
नगर निगम और जिला प्रशासन पर सवाल उठ रहे हैं। आशुतोष कहते हैं, “कुत्तों को गोली मारने की बात नहीं, लेकिन शेल्टर होम बनाकर उन्हें वहां शिफ्ट किया जाए। नहीं तो आम आदमी रोजाना खतरे में जीएगा।” हमने नगर निगम अधिकारियों से संपर्क किया, लेकिन उन्होंने सिर्फ “कार्रवाई जारी है” कहकर बात टाल दी। लेकिन ग्राउंड पर कुछ नहीं दिखता।
क्या करें आम लोग: सावधानियां और मांगें
ऐसे में खुद को बचाना जरूरी है। विशेषज्ञ सलाह देते हैं कि शाम के समय अकेले न निकलें, कुत्तों से आंखें न मिलाएं और अगर हमला हो तो चिल्लाकर मदद मांगें। लेकिन समस्या की जड़ तो आवारा पशुओं का प्रबंधन है। वैष्णवी जैसी घटनाएं हमें सोचने पर मजबूर करती हैं कि क्या हमारा शहर सुरक्षित है?