धराली त्रासदी: उत्तराखंड में बादल फटने से मची तबाही, जिंदगियां दांव पर
उत्तराखंड के उत्तरकाशी में धराली त्रासदी ने सैकड़ों लोगों की जिंदगियों को झकझोर दिया। बादल फटने से आई बाढ़ ने गांव, घर और सपनों को मलबे में बदल दिया।
धराली त्रासदी: एक प्राकृतिक आपदा की भयावह तस्वीर
उत्तराखंड का धराली, जो कभी पर्यटकों के लिए स्वर्ग जैसा था, आज मलबे और तबाही का पर्याय बन गया है। मंगलवार, 5 अगस्त 2025 को दोपहर करीब 2 बजे, उत्तरकाशी जिले के धराली गांव में बादल फटने की घटना ने पूरे क्षेत्र को हिलाकर रख दिया। खीरगंगा नदी में अचानक आई बाढ़ ने आधे गांव को अपने साथ बहा लिया। इस धराली त्रासदी में अब तक 5 लोगों की मौत की पुष्टि हो चुकी है, जबकि एक शव बरामद हुआ है। 100 से ज्यादा लोग लापता हैं, जिनमें 11 सेना के जवान और केरल से आए 28 पर्यटक शामिल हैं। रेस्क्यू टीमें दिन-रात मेहनत कर रही हैं, लेकिन मौसम और भूस्खलन की चुनौतियां उनके सामने पहाड़ बनकर खड़ी हैं।
मैंने ग्राउंड जीरो से जो देखा, वो दिल दहलाने वाला है। सड़कों पर मलबा, टूटे हुए घर, और लोगों की आंखों में खोया हुआ अपनों का डर। इस आर्टिकल में हम धराली त्रासदी के हर पहलू को करीब से समझेंगे- क्या हुआ, कैसे हुआ, और अब आगे क्या?
क्या है धराली त्रासदी?
धराली, गंगोत्री के रास्ते में बसा एक खूबसूरत गांव, जो पर्यटकों के लिए अपनी प्राकृतिक सुंदरता और शांति के लिए जाना जाता है। लेकिन मंगलवार को प्रकृति ने इस गांव पर कहर बरपाया। दोपहर में अचानक बादल फटने से खीरगंगा नदी में भयानक बाढ़ आ गई। मकान, होमस्टे, सेब के बाग, और फसलें सब कुछ मलबे में तब्दील हो गया। स्थानीय लोगों का कहना है कि ऐसा मंजर उन्होंने पहले कभी नहीं देखा।
“सुबह सब ठीक था। हम गंगोत्री के लिए निकलने की तैयारी कर रहे थे, तभी अचानक पानी और मलबे का सैलाब आ गया। मेरे सामने मेरा घर बह गया,” एक स्थानीय निवासी राम सिंह ने रोते हुए बताया।
इस आपदा में अब तक 5 लोगों की मौत हो चुकी है, और एक शव बरामद किया गया है। लेकिन सबसे चिंताजनक बात यह है कि 100 से ज्यादा लोग अभी भी लापता हैं। इनमें सेना के 11 जवान और केरल से आए 28 पर्यटकों का समूह भी शामिल है।
केरल के 28 पर्यटक: लापता, परिवार बेचैन
एक ट्रैवल एजेंसी की लापरवाही?
धराली त्रासदी ने केरल के 28 पर्यटकों को सबसे ज्यादा प्रभावित किया है। ये पर्यटक हरिद्वार की एक ट्रैवल एजेंसी के जरिए 10 दिन के उत्तराखंड टूर पर आए थे। बताया जा रहा है कि ये समूह मंगलवार सुबह 8:30 बजे गंगोत्री के लिए रवाना होने वाला था, लेकिन बाढ़ ने उनके सपनों को तहस-नहस कर दिया।
एक लापता दंपति के रिश्तेदार ने बताया, “28 लोगों में से 20 मूल रूप से केरल के हैं, जो अब महाराष्ट्र में बस गए हैं। बाकी 8 लोग केरल के अलग-अलग जिलों से हैं। हमने ट्रैवल एजेंसी से संपर्क किया, लेकिन वे कोई ठोस जवाब नहीं दे पा रहे।”
परिवारों का कहना है कि मोबाइल नेटवर्क न होने और बैटरी खत्म होने की वजह से उनके अपनों से संपर्क टूट गया है। “हमें बस उम्मीद है कि वो सुरक्षित हों। लेकिन हर गुजरते पल के साथ डर बढ़ता जा रहा है,” एक रिश्तेदार ने कहा।
रेस्क्यू ऑपरेशन: चुनौतियों का पहाड़
NDRF, सेना और ITBP की जंग
धराली त्रासदी के बाद रेस्क्यू ऑपरेशन जोर-शोर से चल रहा है। राष्ट्रीय आपदा मोचन बल (NDRF), सेना, ITBP, और SDRF की टीमें दिन-रात राहत कार्य में जुटी हैं। अब तक 400 से ज्यादा लोगों को सुरक्षित निकाला जा चुका है। लेकिन मौसम और भूस्खलन की वजह से रेस्क्यू टीमें कई मुश्किलों का सामना कर रही हैं।
NDRF के उप महानिरीक्षक मोहसिन शहेदी ने बताया, “ऋषिकेश-उत्तरकाशी हाईवे पर भूस्खलन की वजह से रास्ता पूरी तरह बंद है। हमारी तीन टीमें धराली तक नहीं पहुंच पाईं। खराब मौसम के कारण एयरलिफ्ट भी संभव नहीं हो रहा।”
गंगोत्री राष्ट्रीय राजमार्ग पर भटवाड़ी में दो जगह सड़कें टूट चुकी हैं। मलबा और चट्टानें लगातार गिर रही हैं, जिससे भारी उपकरणों को ले जाना मुश्किल हो रहा है। मौसम विभाग ने अगले 12 घंटों में और बारिश की चेतावनी दी है, जिससे रेस्क्यू ऑपरेशन और जटिल हो सकता है।
सेना के 11 जवान लापता: हर्षिल कैंप पर संकट
धराली त्रासदी ने सेना के हर्षिल कैंप को भी अपनी चपेट में लिया। 14 राजपूताना यूनिट के 11 जवान लापता बताए जा रहे हैं। स्थानीय लोगों का कहना है कि बाढ़ ने कैंप को भारी नुकसान पहुंचाया। “हमारे जवान हमेशा हमारी मदद करते थे। आज वो खुद मुश्किल में हैं,” एक ग्रामीण ने कहा।
सेना ने अपने जवानों की तलाश के लिए विशेष टीमें तैनात की हैं। लेकिन मलबे और पानी के बीच तलाशी अभियान बेहद जोखिम भरा है।
धराली: प्रकृति की मार और मानव की लापरवाही
पारिस्थितिक संवेदनशीलता पर सवाल
धराली त्रासदी ने एक बार फिर उत्तराखंड के पारिस्थितिक संवेदनशील क्षेत्रों पर सवाल उठाए हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि अनियंत्रित पर्यटन, अवैध निर्माण, और जंगलों की कटाई ने इस आपदा को और भयावह बना दिया।
“धराली जैसे इलाके बेहद नाजुक हैं। बारिश और भूस्खलन का खतरा हमेशा रहता है। फिर भी होटल और होमस्टे बनाए जा रहे हैं,” देहरादून के पर्यावरणविद् डॉ. राकेश जोशी ने बताया।
स्थानीय लोग भी मानते हैं कि सरकार को ऐसी जगहों पर पर्यटन को नियंत्रित करना चाहिए। “हर साल हजारों पर्यटक आते हैं। लेकिन अगर प्रकृति ही नहीं बचेगी, तो क्या बचेगा?” एक स्थानीय दुकानदार ने सवाल उठाया।
लापता लोगों की तलाश: उम्मीद अभी बाकी
रेस्क्यू टीमें मलबे में जिंदगियां तलाश रही हैं। ड्रोन और स्निफर डॉग्स की मदद से लापता लोगों का पता लगाने की कोशिश की जा रही है। लेकिन खराब मौसम और बाधित रास्तों ने चुनौतियां बढ़ा दी हैं।
“हम हर संभव कोशिश कर रहे हैं। लेकिन मलबा इतना ज्यादा है कि कई जगहों तक पहुंचना मुश्किल है,” एक रेस्क्यू अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया।
आपदा से सबक: क्या हम तैयार हैं?
धराली त्रासदी एक बार फिर हमें चेतावनी देती है कि प्रकृति के साथ खिलवाड़ की कीमत भारी पड़ सकती है। उत्तराखंड में पहले भी केदारनाथ, चमोली, और रुद्रप्रयाग में ऐसी आपदाएं हो चुकी हैं। लेकिन क्या हमने उनसे सबक लिया?
सरकार को चाहिए कि वह संवेदनशील क्षेत्रों में निर्माण पर सख्ती करे, मौसम की चेतावनियों को गंभीरता से ले, और रेस्क्यू सिस्टम को और मजबूत करे। साथ ही, पर्यटकों को भी जागरूक करने की जरूरत है कि वे मानसून के दौरान ऐसी जगहों पर यात्रा से बचें।
आगे क्या? एक उम्मीद भरा कदम
धराली त्रासदी ने न केवल उत्तराखंड, बल्कि पूरे देश को झकझोर दिया है। केरल के 28 पर्यटकों और सेना के 11 जवानों समेत लापता लोगों की तलाश जारी है। रेस्क्यू टीमें अपनी जान जोखिम में डालकर काम कर रही हैं।