देवरिया कृषि मेला घोटाला: सच या सियासी हथकंडा?
देवरिया (उत्तर प्रदेश) 03 अगस्त: देवरिया में 2021 में हुए कृषि मेले को लेकर कांग्रेस ने योगी सरकार पर गंभीर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए हैं। इन आरोपों ने उत्तर प्रदेश की सियासत में हलचल मचा दी है।
कांग्रेस ने दावा किया है कि 2021 में देवरिया में आयोजित एक कृषि मेले में डिप्टी सीएम के 5 घंटे के दौरे पर 76 लाख रुपये खर्च हुए, लेकिन सरकारी विभाग ने इसे तीन दिन का कार्यक्रम बताकर 4.27 करोड़ रुपये का बिल बनाया। यह मामला अब सियासी तूल पकड़ चुका है। आइए, इस देवरिया कृषि मेला घोटाला के दावों की सच्चाई को तथ्यों, तर्कों और उपलब्ध जानकारी के आधार पर समझने की कोशिश करते हैं।
देवरिया कृषि मेला घोटाला: क्या है कांग्रेस का आरोप?
कांग्रेस ने अपने आधिकारिक सोशल मीडिया हैंडल पर पोस्ट कर योगी सरकार पर तीखा हमला बोला। पार्टी का कहना है कि 2021 में देवरिया में हुए कृषि मेले में डिप्टी सीएम (उस समय पीडब्ल्यूडी मंत्री) के 5 घंटे के दौरे पर 76 लाख रुपये खर्च दिखाए गए। लेकिन, विभाग ने इसे तीन दिन का आयोजन बताकर 4.27 करोड़ रुपये का बिल तैयार किया। कांग्रेस ने इसे भ्रष्टाचार का बड़ा उदाहरण करार देते हुए योगी सरकार को “लूटतंत्र” की संज्ञा दी और दावा किया कि भाजपा की आत्मा घोटालों में बसती है।
कृषि मेला 2021: पृष्ठभूमि और सन्दर्भ
देवरिया में 2021 में आयोजित कृषि मेला स्थानीय किसानों को नई तकनीकों, योजनाओं और कृषि उपकरणों से जोड़ने का एक प्रयास था। इस तरह के आयोजन उत्तर प्रदेश में समय-समय पर होते रहते हैं, जिनमें बड़े नेताओं की मौजूदगी आम बात है। उस समय डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य, जो पीडब्ल्यूडी मंत्री भी थे, इस मेले में शामिल हुए थे।
कांग्रेस का दावा है कि यह आयोजन महज 5 घंटे का था, लेकिन खर्च को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया गया। यह आरोप गंभीर है, क्योंकि यह न केवल सरकारी धन के दुरुपयोग का मामला उठाता है, बल्कि योगी सरकार की “जीरो टॉलरेंस फॉर करप्शन” नीति पर भी सवाल खड़ा करता है।
आरोपों की सच्चाई: तथ्य और जांच
कांग्रेस के इन आरोपों की सत्यता को समझने के लिए हमें उपलब्ध जानकारी और तथ्यों पर गौर करना होगा।
1. खर्च का दावा: 76 लाख बनाम 4.27 करोड़
कांग्रेस ने दावा किया है कि 5 घंटे के आयोजन पर 76 लाख रुपये खर्च हुए, लेकिन बिल 4.27 करोड़ का बनाया गया। हालांकि, इस दावे के समर्थन में कोई ठोस सबूत, जैसे सरकारी दस्तावेज, ऑडिट रिपोर्ट या RTI जवाब, सार्वजनिक नहीं किए गए हैं।
उत्तर प्रदेश सरकार ने इस आरोप का कोई आधिकारिक जवाब नहीं दिया है, जो इस मामले को और संदिग्ध बनाता है। अगर 4.27 करोड़ रुपये का बिल वाकई बनाया गया, तो यह जानना जरूरी है कि यह राशि किन-किन मदों में खर्च की गई। सामान्यतः कृषि मेलों में खर्च का ब्योरा इस तरह होता है:
- मंच सज्जा और टेंट
- प्रचार-प्रसार
- अतिथियों के लिए व्यवस्था (यात्रा, आवास, सुरक्षा)
- किसानों के लिए प्रदर्शनी और सामग्री
लेकिन, 5 घंटे के आयोजन के लिए 4.27 करोड़ रुपये का खर्च असामान्य लगता है। बिना ऑडिट या CAG (नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक) की रिपोर्ट के इस दावे की पुष्टि करना मुश्किल है।
2. भ्रष्टाचार के अन्य आरोप
देवरिया और उत्तर प्रदेश में भ्रष्टाचार के आरोप कोई नई बात नहीं हैं। उदाहरण के लिए, 2025 में ही देवरिया के सदर विधायक डॉ. शलभ मणि त्रिपाठी ने विद्युत विभाग पर किसानों के उत्पीड़न और भ्रष्टाचार का आरोप लगाया था। उन्होंने दावा किया कि नलकूप कनेक्शन के लिए किसानों से अनुचित धन उगाही की जा रही है।
इसी तरह, 2018 में लोनी के बीजेपी विधायक नंदकिशोर गुर्जर ने अपनी ही सरकार के खिलाफ सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट में भ्रष्टाचार के आरोप लगाए थे। ये उदाहरण बताते हैं कि भ्रष्टाचार के आरोप योगी सरकार के लिए कोई नई बात नहीं हैं, लेकिन इनका सत्यापन हमेशा जांच पर निर्भर करता है।
3. कांग्रेस के दावों की विश्वसनीयता
कांग्रेस ने हाल के वर्षों में कई बड़े घोटालों के आरोप लगाए हैं। उदाहरण के लिए, 2025 में कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने मध्य प्रदेश में 2.1 लाख करोड़ रुपये के जैविक कपास घोटाले का दावा किया, जिसे केंद्र सरकार ने खारिज कर दिया। इसी तरह, जल जीवन मिशन में 2 लाख करोड़ रुपये के घोटाले का आरोप भी कांग्रेस ने लगाया था।
इन मामलों में कांग्रेस ने सोशल मीडिया और प्रेस कॉन्फ्रेंस के जरिए अपने दावों को प्रचारित किया, लेकिन कई बार ठोस सबूतों की कमी के कारण ये आरोप सियासी हथकंडे माने गए। देवरिया कृषि मेला घोटाला भी ऐसा ही एक मामला लगता है, जहां बिना दस्तावेजी सबूत के बड़ा दावा किया गया है।
योगी सरकार का रुख: भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस?
योगी आदित्यनाथ की सरकार ने भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त नीति का दावा किया है। सरकार ने कई मामलों में जांच के आदेश दिए हैं, जैसे:
- 2019 के कुंभ मेले में भ्रष्टाचार के आरोप, जहां AAP सांसद संजय सिंह ने CAG रिपोर्ट के आधार पर सवाल उठाए थे।
- 2023 में देवरिया में हुए 6 लोगों की हत्या के मामले में तहसीलदारों के खिलाफ कार्रवाई।
लेकिन, विपक्ष का तर्क है कि ये कार्रवाइयां छोटे स्तर पर होती हैं, जबकि बड़े घोटालों की जांच को दबाया जाता है। देवरिया कृषि मेला मामले में सरकार की चुप्पी इस तर्क को बल देती है।
क्या कहते हैं स्थानीय लोग?
देवरिया के स्थानीय लोगों और किसानों से बात करने पर पता चलता है कि कृषि मेले जैसे आयोजन अक्सर दिखावे के लिए होते हैं। एक स्थानीय किसान, राम प्रसाद, ने बताया, “ऐसे मेलों में बड़े-बड़े नेता आते हैं, फोटो खिंचवाते हैं, लेकिन किसानों को कोई खास फायदा नहीं मिलता। अगर इतना पैसा खर्च हुआ, तो वह कहां गया, ये कोई नहीं बताता।”
हालांकि, यह सिर्फ एक आम धारणा है और इसका कोई ठोस सबूत नहीं है कि 4.27 करोड़ रुपये का बिल वाकई बनाया गया।
क्या यह सियासी हथकंडा है?
उत्तर प्रदेश में 2027 के विधानसभा चुनाव नजदीक हैं, और सियासी दलों के बीच आरोप-प्रत्यारोप का दौर तेज हो गया है। कांग्रेस, जो यूपी में अपनी जमीन तलाश रही है, भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों को उठाकर जनता का ध्यान खींचना चाहती है। लेकिन, बिना ठोस सबूतों के ऐसे दावे उल्टा पड़ सकते हैं।
दूसरी ओर, बीजेपी ने भी विपक्ष पर पलटवार करते हुए कहा है कि कांग्रेस भ्रष्टाचार के नाम पर सियासी ड्रामा कर रही है। बीजेपी प्रवक्ता ने एक बयान में कहा, “कांग्रेस का इतिहास घोटालों से भरा है। 2G, कोयला घोटाला, कॉमनवेल्थ जैसे मामले उनके दामन पर दाग हैं। अब वे बेबुनियाद आरोप लगाकर जनता को गुमराह कर रहे हैं।”
क्या हो सकता है अगला कदम?
इस मामले की सच्चाई सामने लाने के लिए निम्नलिखित कदम उठाए जा सकते हैं:
- CAG जांच: अगर 4.27 करोड़ रुपये का बिल बनाया गया, तो इसकी CAG या स्वतंत्र ऑडिट से जांच होनी चाहिए।
- RTI के जरिए जानकारी: कांग्रेस या कोई अन्य पक्ष RTI के जरिए इस आयोजन के खर्च का ब्योरा मांग सकता है।
- सरकारी जवाब: योगी सरकार को इस मामले पर आधिकारिक बयान देना चाहिए, ताकि सच सामने आए।
एक जवाब की तलाश
देवरिया कृषि मेला घोटाला का मामला अभी तथ्यों के अभाव में सियासी आरोपों तक सीमित है। कांग्रेस का दावा गंभीर है, लेकिन बिना सबूतों के इसे पूरी तरह सच मानना जल्दबाजी होगी। दूसरी ओर, सरकार की चुप्पी भी सवाल उठाती है।
यह मामला हमें एक बार फिर याद दिलाता है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई सिर्फ सियासी बयानबाजी से नहीं जीती जा सकती। जरूरत है पारदर्शिता, जवाबदेही और ठोस कार्रवाई की। क्या आप मानते हैं कि इस मामले की निष्पक्ष जांच होनी चाहिए? अपनी राय हमें कमेंट्स में जरूर बताएं।