भारत के नए मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार की नियुक्ति पर राहुल गांधी ने सरकार को घेरा। रातों रात हुए इस फैसले से सब अचंभित है। दरअसल बुधवार 19 फरवरी को देश के चुनाव आयुक्त राजीव कुमार को सुप्रीम कोर्ट में पेश होना था। लेकिन इसके पहले ही राजीव कुमार की जगह अब ज्ञानेश कुमार मुख्य चुनाव आयुक्त बन गए।
नए मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति पर मचा बवाल।
भारत के नए मुख्य चुनाव आयुक्त के रूप में ज्ञानेश कुमार की नियुक्ति कर दी गई है। वे राजीव कुमार की जगह लेंगे, जो हाल ही में रिटायर हुए हैं। हालांकि, इस नियुक्ति को लेकर राजनीतिक विवाद भी खड़ा हो गया है। विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने इस प्रक्रिया पर सवाल उठाए हैं और इसे न्यायपालिका के आदेशों की अवहेलना बताया है।
राहुल गांधी की असहमति
राहुल गांधी ने इस नियुक्ति के खिलाफ अपना असहमति पत्र प्रस्तुत किया। उनका कहना है कि चुनाव आयोग को पूरी तरह स्वतंत्र और निष्पक्ष होना चाहिए, लेकिन वर्तमान प्रक्रिया में सरकार का अत्यधिक दखल है। उन्होंने इस पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि सरकार ने प्रधान न्यायाधीश (CJI) को नियुक्ति समिति से हटाकर निष्पक्षता पर सवाल खड़े कर दिए हैं।
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय और सरकार का नया कानून
मार्च 2023 में सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने निर्णय दिया था कि चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति एक स्वतंत्र समिति द्वारा की जानी चाहिए, जिसमें प्रधानमंत्री, लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष और भारत के मुख्य न्यायाधीश शामिल हों।
हालांकि, सरकार ने अगस्त 2023 में एक नया विधेयक लाकर मुख्य न्यायाधीश को इस समिति से हटा दिया और उनकी जगह एक केंद्रीय मंत्री को नियुक्त कर दिया। इससे यह स्पष्ट होता है कि अब सरकार की नियुक्तियों पर अधिक नियंत्रण होगा।
क्या सरकार का नियंत्रण निष्पक्षता पर सवाल खड़े करता है?
राहुल गांधी और अन्य विपक्षी नेताओं का कहना है कि चुनाव आयोग को सरकार के प्रभाव से मुक्त होना चाहिए। उनका तर्क है कि यदि नियुक्ति समिति में प्रधानमंत्री और उनकी सरकार के ही सदस्य होंगे, तो क्या यह संभव है कि वे स्वतंत्र रूप से चुनाव आयुक्त का चयन कर सकें?
सुप्रीम कोर्ट में चुनौती और आगामी सुनवाई
राहुल गांधी और कांग्रेस ने इस मामले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है, जिसकी सुनवाई 19 फरवरी 2025 को होने वाली है। विपक्ष का कहना है कि जब यह मामला कोर्ट में लंबित है, तो सरकार को किसी भी नियुक्ति से बचना चाहिए था।
क्या यह मुद्दा हर मतदाता के लिए महत्वपूर्ण है?
इस विवाद का प्रभाव केवल राजनीतिक दलों तक सीमित नहीं है। यह भारत के लोकतंत्र और चुनावी प्रक्रिया की निष्पक्षता से जुड़ा एक अहम सवाल है। यदि चुनाव आयोग पूरी तरह स्वतंत्र नहीं रहेगा, तो चुनावों की निष्पक्षता पर भी सवाल उठेंगे।
निष्कर्ष
भारत में चुनाव आयोग की स्वतंत्रता और निष्पक्षता लोकतंत्र की नींव है। नए मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति को लेकर जो सवाल उठाए जा रहे हैं, वे सिर्फ किसी एक दल या व्यक्ति की चिंता नहीं हैं, बल्कि पूरे चुनावी सिस्टम की निष्पक्षता से जुड़े हैं। आने वाले दिनों में सुप्रीम कोर्ट का फैसला इस विवाद को और अधिक स्पष्टता प्रदान करेगा।