काजोल की ‘मां’: ममता बनाम राक्षसी अंधविश्वास की दमदार परख!

“जब बेटी पर आंच आती है, तो एक मां चंडी बन जाती है” – यही सार है विशाल फुरिया की नई हॉरर-थ्रिलर ‘मां’ का, जहां काजोल एक बेटी की जान बचाने के लिए पौराणिक राक्षस से भिड़ जाती हैं। पर क्या यह फिल्म दर्शकों के दिलों में डर बैठा पाती है? आइए जानते हैं पूरा रिव्यू…

काजोल की ‘मां’: ममता बनाम राक्षसी अंधविश्वास की दमदार परख!

📽️ फिल्म की कहानी: बलि, रहस्य और ममता का युद्ध

‘मां’ की कहानी पश्चिम बंगाल के काल्पनिक गांव चंद्रपुर से शुरू होती है, जहां एक क्रूर परंपरा के तहत राजपरिवार की नवजात बेटियों की दोइत्तो (राक्षस) को बलि दी जाती है । वर्तमान में, शुभांकर (इंद्रनील सेनगुप्ता) इस अभिशाप से दूर शहर में अपनी पत्नी अंबिका (काजोल) और बेटी श्वेता (खेरिन शर्मा) के साथ रहता है। पिता की मृत्यु के बाद जब वह गांव लौटता है, तो रहस्यमय परिस्थितियों में उसकी मौत हो जाती है। अंबिका और श्वेता को चंद्रपुर आना पड़ता है, जहां पहला पीरियड आने वाली किशोरियों के गायब होने का सिलसिला शुरू हो जाता है। जब दोइत्तो श्वेता को निशाना बनाता है, तो अंबिका उससे लड़ने को मजबूर हो जाती है ।

फिल्म की कहानी: बलि, रहस्य और ममता का युद्ध

🎭 परफॉर्मेंस: काजोल का शो, रोनित का रॉयल्टी!

  • काजोल (अंबिका): अपने करियर की पहली हॉरर फिल्म में काजोल ने मां के रोल को गरिमा और जुनून के साथ निभाया है। वर्किंग वुमन से लेकर योद्धा मां तक के ट्रांसफॉर्मेशन में उनकी आंखों का डर, गुस्सा और दृढ़ता देखने लायक है। हालांकि, कुछ दृश्यों में उनकी केमिस्ट्री बेटी के साथ गहराई से नहीं उतर पाई
  • रोनित रॉय (जयदेव/अमसजा): फिल्म का सबसे शानदार पहलू! रोनित के मल्टीलेयर किरदार ने सस्पेंस को जिंदा रखा है। सरपंच की मासूमियत से लेकर राक्षसी चेहरे तक का उनका ट्रांसफॉर्मेशन एक्टिंग का मास्टरक्लास है ।
  • खेरिन शर्मा (श्वेता): डरी हुई बच्ची का रोल ईमानदारी से निभाया, लेकिन स्क्रिप्ट ने उन्हें ज्यादा गहराई नहीं दी।
  • इंद्रनील सेनगुप्ता: सीमित स्क्रीन टाइम में प्रभावी, पर पति-पत्नी के रिश्ते में केमिस्ट्री की कमी खलती है ।

✨ डायरेक्शन एंड ट्रीटमेंट: स्टाइल ओवर सब्सटेंस?

निर्देशक विशाल फुरिया (‘छोरी’ फ्रेंचाइजी) ने पौराणिक कथा (रक्तबीज और देवी काली) को लैंगिक भेदभाव से जोड़कर एक सामाजिक संदेश देने की कोशिश की है । बंगाली संस्कृति, कोहरा और जंगलों का माहौल डर पैदा करने में सफल रहा है। पर फिल्म की बड़ी कमजोरियां हैं:

  • पहला हाफ स्लो: शुरुआती 45 मिनट कहानी सेट करने में लग जाते हैं, जहां न हॉरर है न थ्रिल ।
  • कमजोर VFX: दोइत्तो का डिजाइन और CGI टीवी सीरियल लेवल का लगता है, जो डर के बजाय हंसी पैदा कर सकता है ।
  • प्रिडिक्टेबल क्लाइमैक्स: आखिरी लड़ाई में काजोल का ‘काली शक्ति’ अवतार प्रभावी है, पर ट्विस्ट आसानी से भांप लिए जाते हैं ।

⚡ सामाजिक स्टेटमेंट: कुरीतियों पर करारा प्रहार

फिल्म की सबसे ताकतवर बात है बेटियों के प्रति समाज की कुंठित मानसिकता को उघाड़ना। बालिका हत्या, रूढ़िवादी रिवाज और महिलाओं पर थोपी गई चुप्पी को अलग-अलग सीन्स में सूक्ष्मता से दिखाया गया है। गांव के पुरुष चरित्रों का डर और अंधविश्वास यह बताता है कि “राक्षस सिर्फ जंगल में नहीं, समाज की सोच में भी बसते हैं”

💬 ट्विटर रिएक्शन: दर्शकों की मिली-जुली राय

  • “काजोल शानदार! VFX अच्छा, लेकिन क्लाइमैक्स क्लियर नहीं।” ⭐⭐⭐½
  • “हॉरर कॉन्सेप्ट अच्छा, पर एक्जीक्यूशन फ्लॉप। काजोल फैंस ही देखें।” ⭐⭐
  • “रोनित रॉय ने एक्टिंग से चौंकाया! काजोल के साथ उनकी जंग यादगार।”
परफॉर्मेंस: काजोल का शो, रोनित का रॉयल्टी!

📊 वर्डिक्ट: क्या यह ‘मां’ आपके दिल को छुएगी?

पैरामीटररेटिंग (5 में)टिप्पणी
कहानी3.5पौराणिक-सामाजिक मिश्रण अनोखा
एक्टिंग4.0काजोल और रोनित शानदार
डायरेक्शन3.0पेसिंग और VFX में कमजोरी
टोटल इम्पैक्ट3/5एक बार देखने लायक

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यदि आप निम्न में से एक हैं, तो ‘मां’ जरूर देखें:

  • काजोल या रोनित रॉय के फैंस ।
  • माइथोलॉजिकल हॉरर में दिलचस्पी रखते हैं।
  • सामाजिक मैसेज वाली फिल्में पसंद करते हैं।

निराश हो सकते हैं, यदि आप:

  • ‘शैतान’ जैसी इंटेंस थ्रिल चाहते हैं (हालाँकि यह उसी यूनिवर्स की फिल्म है) ।
  • जंप स्केयर या ब्लड-कर्डिंग हॉरर ढूंढ रहे हैं ।

🎬 फाइनल वर्ड

‘मां’ एक अधूरी मास्टरपीस है जो शानदार कॉन्सेप्ट और एक्टिंग के बावजूद स्लो पेसिंग और औसत टेक्निकल एलिमेंट्स की वजह से पूरा असर नहीं छोड़ पाती। फिर भी, यह फिल्म हिंदी सिनेमा में महिला-केंद्रित हॉरर जॉनर की दिशा में एक सराहनीय कदम है। काजोल के कहने पर – “मैं यहां बैठकर चमत्कार का इंतजार नहीं कर सकती” – यह लाइन फिल्म की आत्मा बन जाती है। अगर सीक्वल आती है, तो उम्मीद है कि डायरेक्शन और विजुअल्स पर ज्यादा ध्यान दिया जाएगा!

#ProTip: फिल्म देखने जाएं, तो क्लाइमैक्स में ‘काली शक्ति’ गाने पर खास ध्यान दें – यह भावनात्मक पीक है!

🎞️ रिलीज डिटेल: 27 जून 2025 | 2 घंटे 15 मिनट | हिंदी, तमिल, तेलुगु, बंगाली | रेटिंग: ⭐⭐⭐ (3/5)

Avadhesh Yadav
Avadhesh Yadav
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