ईरान-इजरायल युद्ध 2025: अमेरिका का दोहरापन, हजारों मौतों का जिम्मेदार कौन?

भारत-पाक युद्ध 2025 के सीजफायर की घोषणा के बाद अब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनॉल्ड ट्रम्प ने “ईरान-इजरायल युद्ध 2025” के सीजफायर की घोषणा कर यह दुनिया को बता दिया कि अगला शांति के लिए नोबल पुरस्कार उन्हें ही मिलने वाला है।

लेकिन क्या पहले आग लगा दो और फिर पानी डाल दो। सिर्फ इसलिए कि, “देखो मैंने आग बुझा दी।” लेकिन आखिर ये आग लगाया कौन था और इस आग में कितनी मासूम जिंदगियां जल कर परलोक सिधार गई, इस आग में कितने घर जल गए, इस आग के कारण कितने लोग पलायन कर गए, इसकी भी जबाबदेही तय होनी चाहिए और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आग लगाने वालों को भी एक नोबल पुरस्कार मिलना चाहिए और शांति के नोबल पुरस्कार पाने को भी उस आग लगाने वाले को धन्यबाद देना चाहिए। क्योंकि “आखिर आग लगी तभी तो वह बुछाया और इसके बदले में भारी भरकम नोबल पुरस्कार पाया।”

3 जून 2025 को शुरू हुआ “ईरान-इजरायल युद्ध 2025″ युद्ध सिर्फ दो देशों का टकराव नहीं था। यह एक ऐसी त्रासदी थी, जिसने हजारों जिंदगियाँ छीनीं, लाखों लोगों को बेघर किया, और वैश्विक अर्थव्यवस्था को हिलाकर रख दिया। इस युद्ध के पीछे थी अमेरिका की दोहरी नीति—जिसने कभी शांति के नाम पर ईरान को परमाणु तकनीक सिखाई, और फिर उसी के ठिकानों पर बम बरसाए।

राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की पलटबाजी ने इस संकट को और गहरा किया। गाजा में नरसंहार की छाया से लेकर शेयर बाजारों की उथल-पुथल तक, यह युद्ध एक क्रूर सच्चाई को उजागर करता है: भू-राजनीति के खेल में आम इंसान की कीमत क्या है? आइए, इस युद्ध की जड़ों, जिम्मेदारियों, और”ईरान-इजरायल युद्ध 2025” के लाभार्थियों को बेपर्दा करें।

परमाणु तकनीक का बीज: अमेरिका की ऐतिहासिक चाल

1950 के दशक में, शीत युद्ध की गहमागहमी में, अमेरिका ने ‘एटम्स फॉर पीस’ कार्यक्रम शुरू किया। 8 दिसंबर 1953 को, तत्कालीन राष्ट्रपति ड्वाइट डी. आइजनहावर ने संयुक्त राष्ट्र में घोषणा की, “परमाणु शक्ति को युद्ध के लिए नहीं, बल्कि शांति और प्रगति के लिए इस्तेमाल करना होगा।”

इस कार्यक्रम के तहत, अमेरिका ने कई देशों को परमाणु तकनीक दी, जिसमें ईरान भी शामिल था मतलब परमाणु तकनीक का बीज भी अमेरिका ने दिया और आज उस परमाणु तकनिकी बीज को जड़ से ख़त्म करने पर आमदा हो गया है।

1957 में, शाह मोहम्मद रजा पहलवी के शासन में, अमेरिका ने ईरान के साथ परमाणु सहयोग समझौता किया। 1967 में, तेहरान में एक 5 मेगावाट का रिसर्च रिएक्टर स्थापित हुआ, जिसके लिए अमेरिका ने हथियार-ग्रेड यूरेनियम तक उपलब्ध कराया। उस समय, ईरान अमेरिका का भरोसेमंद सहयोगी था, और यह सहायता सोवियत प्रभाव को रोकने की रणनीति का हिस्सा थी। लेकिन 1979 की इस्लामिक क्रांति ने सब बदल दिया। ईरान अमेरिका का दुश्मन बन गया, और वही परमाणु तकनीक, जो शांति के नाम पर दी गई थी, पश्चिम के लिए खतरा बन गई।

आज, अमेरिका उसी परमाणु कार्यक्रम को नष्ट करने का दावा करता है, जिसकी नींव उसने खुद रखी। यह दोहरापन क्या कहलाएगा? क्या यह एक सुनियोजित चाल थी, या अनपेक्षित परिणामों का खेल? सच्चाई यह है कि अमेरिका की नीतियों ने मध्य पूर्व में एक जटिल संकट को जन्म दिया, जिसकी कीमत आज लाखों लोग चुका रहे हैं।

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ईरान-इजरायल युद्ध 2025: तबाही की आग

13 जून 2025 को, इजरायल ने ऑपरेशन राइजिंग लायन के तहत ईरान के परमाणु ठिकानों—फोर्डो, नतांज़, और इस्फहान—पर हवाई हमले शुरू किए। इजरायल का कहना था कि ईरान का परमाणु कार्यक्रम उसके लिए “अस्तित्व का खतरा” है। जवाब में, ईरान ने तेल अवीव, हाइफा, और यरुशलम पर सैकड़ों हाइपरसोनिक मिसाइलें और ड्रोन दागे। 12 दिनों तक चले इस युद्ध ने दोनों देशों को तहस-नहस कर दिया।

22 जून को, अमेरिका ने B-2 स्टील्थ बॉम्बर्स और GBU-57 बंकर-बस्टर बमों के साथ ईरान के परमाणु ठिकानों पर हमला किया। ट्रम्प ने इसे “सटीक और निर्णायक” कार्रवाई बताया, लेकिन इसने युद्ध को और भड़काया। ईरान ने जवाब में कतर में अमेरिकी एयरबेस पर मिसाइलें दागीं। 24 जून को, ट्रम्प ने “पूर्ण और स्थायी युद्धविराम” की घोषणा की, लेकिन यह कुछ घंटों में टूट गया। ईरान ने दावा किया कि कोई समझौता नहीं हुआ, और इजरायल ने भी हमले जारी रखे।

ईरान-इजरायल युद्ध 2025 में हजारों लोग मारे गए। इजरायल में करीब 3,200 नागरिक और सैनिक मारे गए, जबकि ईरान में अनुमानित 4,500 से अधिक मौतें हुईं। लाखों लोग बेघर हुए, और दोनों देशों में लोग अपने वतन छोड़कर भागने को मजबूर हुए। भारत ने ईरान से 110 छात्रों को निकाला, और इजरायल में उत्तर प्रदेश और बिहार के श्रमिक अपने घर लौटने के लिए परेशान दिखे।

ट्रम्प की पलटबाजी: बयानों का खेल हुआ जारी

ट्रम्प के बयान इस युद्ध के दौरान एक भूलभुलैया बने। ईरान-इजरायल युद्ध 2025 शुरू होने से पहले, उन्होंने ईरान को “मध्य पूर्व का सबसे बड़ा आतंकी समर्थक” कहा और सुप्रीम लीडर अयातुल्ला खामेनेई को निशाना बनाने की धमकी दी। 17 जून को, उन्होंने ट्वीट किया, “ईरान को परमाणु हथियार नहीं मिल सकते। हम जानते हैं कि खामेनेई कहाँ छिपा है।”

लेकिन ईरान-इजरायल युद्ध 2025 के सीजफायर के बाद, 25 जून 2025 को नीदरलैंड्स में नाटो समिट में ट्रम्प ने पलटी मारी। उन्होंने कहा, “ईरान ने युद्ध में बहादुरी दिखाई। वे तेल बेचते हैं, और मैं इसे रोक सकता था, लेकिन नहीं रोका। अगर चीन ईरानी तेल खरीदना चाहता है, तो हमें कोई आपत्ति नहीं।” यह उनकी “अधिकतम दबाव” नीति से पूरी तरह उलट था। इसके साथ ही, उन्होंने इजरायल की आलोचना की, यह कहते हुए कि “युद्धविराम के बाद इतना बड़ा हमला गलत था।”

यह पलटबाजी क्या थी? क्या यह वैश्विक तेल बाजार को स्थिर करने की रणनीति थी, या घरेलू राजनीति में अपनी छवि चमकाने का हथकंडा? ट्रम्प के बयानों ने दोनों पक्षों को भ्रमित किया और युद्ध को लंबा खींचने में योगदान दिया। उनकी नीति में यह असंगति मध्य पूर्व में स्थिरता के लिए खतरा बनी।

गाजा की त्रासदी: इजरायल की क्रूरता का सेकण्ड चेहरा

इजरायल की आक्रामकता सिर्फ ईरान-इजरायल युद्ध 2025 तक सीमित नहीं थी। गाजा में 2023-2024 के दौरान इजरायल की सैन्य कार्रवाइयों ने दुनिया को झकझोर दिया। अक्टूबर 2023 में हमास के हमले के जवाब में, इजरायल ने गाजा पर बड़े पैमाने पर बमबारी की, जिसमें संयुक्त राष्ट्र के अनुसार 40,000 से अधिक फिलिस्तीनी मारे गए, जिनमें ज्यादातर महिलाएँ और बच्चे थे। इसे अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने “नरसंहार” करार दिया, और इजरायल की आलोचना हुई।

इस वर्ष यानी 2025 में, इजरायल ने वही क्रूर रणनीति ईरान में “ईरान-इजरायल युद्ध 2025” के रूप में आजमाई। उसके हमलों ने न केवल परमाणु ठिकानों को निशाना बनाया, बल्कि नागरिक बस्तियों को भी नुकसान पहुँचाया। यह सवाल उठता है: क्या इजरायल गाजा की तरह ईरान में भी बड़े पैमाने पर तबाही मचाना चाहता था? ट्रम्प ने इजरायल को “महान सहयोगी” कहा, लेकिन युद्धविराम के बाद उनकी आलोचना ने उनके दोहरे मापदंड को उजागर किया।

शेयर बाजार की उथल-पुथल: रिटेल निवेशकों की तबाही

ईरान-इजरायल युद्ध 2025 से वैश्विक अर्थव्यवस्था को तगड़ा झटका दिया। ईरान की होर्मुज जलडमरूमध्य को बंद करने की धमकी से तेल की कीमतें 105 डॉलर प्रति बैरल तक पहुँच गईं। इसने शेयर बाजारों में भारी अस्थिरता पैदा की।

  • भारत: सेंसेक्स और निफ्टी में 1,500 अंकों तक की गिरावट देखी गई। रिटेल निवेशकों को अरबों रुपये का नुकसान हुआ।
  • वैश्विक बाजार: डाउ जोन्स, नैस्डैक, और यूरोपीय बाजारों में 3-5% की गिरावट दर्ज की गई।
  • लाभान्वित पक्ष: रक्षा कंपनियाँ (जैसे लॉकहीड मार्टिन, बोइंग) और तेल कंपनियाँ (जैसे एक्सॉनमोबिल, शेवरॉन) इस अस्थिरता में मुनाफा कमाने में कामयाब रहीं।

ईरान-इजरायल युद्ध 2025 के सीजफायर के बाद तेल की कीमतें 6% तक गिरीं, लेकिन रिटेल निवेशकों का नुकसान वापस नहीं आया। यह सवाल उठता है: क्या यह सब आम लोगों की मेहनत की कमाई को दाँव पर लगाकर खेला गया खेल था?

जिम्मेदारी का सवाल: कौन है दोषी?

ईरान-इजरायल युद्ध 2025 की इस त्रासदी की जिम्मेदारी तय करना जटिल है, लेकिन तथ्य कुछ साफ संकेत देते हैं:

  • इजरायल: उसने युद्ध शुरू किया और गाजा की तरह ईरान में भी आक्रामकता दिखाई। नागरिक हताहतों की अनदेखी उसकी नीति का हिस्सा रही।
  • अमेरिका: ट्रम्प की नीतियों ने युद्ध को भड़काया। पहले परमाणु तकनीक देना, फिर बमबारी करना, और बाद में ईरान की तारीफ करना—यह दोहरापन संकट को बढ़ाने का कारण बना।
  • ईरान: जवाबी हमलों और क्षेत्रीय तनाव को बढ़ाने वाली नीतियों ने युद्ध को और जटिल किया। उसका अड़ियल रुख भी स्थिति को बिगाड़ने का कारण बना।
  • अंतरराष्ट्रीय समुदाय: संयुक्त राष्ट्र और अन्य संगठनों ने बयानबाजी तो की, लेकिन प्रभावी हस्तक्षेप की कमी ने स्थिति को अनियंत्रित होने दिया।

सबसे बड़ा सवाल यह है: ईरान-इजरायल युद्ध 2025 में हजारों मौतों और लाखों उजड़े परिवारों की जिम्मेदारी कौन लेगा? क्या इंसान की जान इतनी सस्ती है कि उसे भू-राजनीति के खेल में कुर्बान कर दिया जाए और बाद में सब “ठीक” बता दिया जाए?

इस खेल से किसे फायदा हुआ?

ईरान-इजरायल युद्ध 2025 एक भू-राजनीतिक खेल था, जिसमें कुछ पक्षों ने मोटा मुनाफा कमाया:

  1. रक्षा उद्योग: लॉकहीड मार्टिन, रेथियॉन, और बोइंग जैसी कंपनियों को हथियारों की आपूर्ति से अरबों डॉलर के अनुबंध मिले।
  2. तेल कंपनियाँ: सऊदी अरब, यूएई, और अमेरिकी तेल कंपनियों ने तेल की कीमतों में उछाल से फायदा उठाया।
  3. चीन: ट्रम्प के बयान के बाद चीन को सस्ता ईरानी तेल खरीदने का मौका मिला, जिसने उसकी ऊर्जा जरूरतों को पूरा किया।
  4. ट्रम्प और इजरायल: ट्रम्प ने घरेलू स्तर पर इसे “शांति की जीत” के रूप में पेश कर अपनी छवि चमकाई, जबकि इजरायल ने क्षेत्र में अपनी सैन्य श्रेष्ठता साबित की।

लेकिन इस खेल का सबसे बड़ा हारा हुआ पक्ष था आम इंसान—चाहे वह ईरान का हो, इजरायल का, या गाजा का। उनकी जिंदगियाँ, सपने, और बचत इस युद्ध की भेंट चढ़ गए।

अमेरिका के दोहरे चेहरे को ईरान-इजरायल युद्ध 2025 ने किया उजागर!

ईरान-इजरायल युद्ध 2025 ने दुनिया को अमेरिका के दोहरे चेहरे और ट्रम्प की पलटबाजी का कड़वा सच दिखाया। जिस देश ने शांति के नाम पर ईरान को परमाणु तकनीक दी, उसी ने उसके ठिकानों को तबाह किया। गाजा में नरसंहार और ईरान में तबाही ने इजरायल की आक्रामकता को उजागर किया। हजारों मौतों और वैश्विक आर्थिक संकट की कीमत कोई नहीं चुका सकता। यह युद्ध एक सबक है कि भू-राजनीति के खेल में आम इंसान की कोई कीमत नहीं। सवाल अब यह है: क्या दुनिया इस त्रासदी रूपी “ईरान-इजरायल युद्ध 2025” से कुछ सीखेगी, या यह सब “ठीक” बताकर भुला दिया जाएगा?

स्रोत:

Avadhesh Yadav
Avadhesh Yadav
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