बिहार में आंगनबाड़ी सेविकाओं को जबरन मोदी रैली में भेजा गया: “मंगलराज” के दावों पर सवाल

सिवान, गोपालगंज (बिहार) 20 जून 2025: बिहार में आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक बड़ी रैली को संबोधित किया। उधर रैली में आंगनबाड़ी सेविकाओं को जबरन भेजे जाने का एक वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हुआ है।

वायरल वीडियो में गोपालगंज जिलें की रहने वाली आंगनबाड़ी सेविकाएं यह कहते हुए नजर आ रही है कि, “उन्हें बिना खाएं-पियें ही सुबह बस में बैठा दिया गया कहा गया कि सब लोग सामान्य लोगो की तरह रैली स्थल पर चलो।”

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की 20 जून की सिवान रैली के दौरान आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं और सेविकाओं को प्रशासनिक दबाव में बसों में ठूसकर रैली स्थल पर भेजे जाने का मामला विवादों में घिर गया है। जिला प्रशासन के “यातायात अव्यवस्था और गर्मी” के बहाने स्कूल-आंगनबाड़ी केंद्र बंद करने के आदेश ने सरकारी मशीनरी के राजनीतिक दुरुपयोग की आशंकाएं बढ़ा दी हैं, जबकि विपक्षी दल नीतीश कुमार सरकार के “मंगलराज” के दावों को चुनौती दे रहे हैं।

⚠️ प्रशासन का आदेश: “सार्वजनिक अवकाश” के नाम पर रैली के लिए बंद हुए शिक्षण संस्थान

जिलाधिकारी सिवान द्वारा जारी आदेश में 20 जून को सभी स्कूल, कोचिंग संस्थान और आंगनबाड़ी केंद्र बंद रखने का निर्देश दिया गया, जिसका कारण “प्रधानमंत्री के दौरे के दौरान यातायात व्यवस्था और भीषण गर्मी” बताया गया । इस आदेश के चलते सैकड़ों आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को रैली स्थल पर उपस्थिति सुनिश्चित करने का लक्ष्य दिया गया।

🔍 क्या छिपाना चाहती थी सरकार? “साधारण कपड़ों में आएं”

आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं से कहा गया कि वे “बिना यूनिफॉर्म के आम जनता की तरह” रैली में शामिल हों। एक सेविका के अनुसार: “हमें साफ़ निर्देश दिया गया कि ड्रेस न पहनें ताकि हमारी पहचान सरकारी कर्मचारी के रूप में न उजागर हो”। यह बात रैली में शामिल होने वाली महिलाओं के एक वीडियो में सामने आई, जिसमें उन्होंने मजबूरी का इज़हार किया।

📢 राजनीतिक प्रतिक्रियाएं: “मंगलराज” बनाम “जबरन उपस्थिति”

विपक्ष का हमला

  • मनोज झा (आरजेडी): “NDA सरकार ने शिक्षा के अधिकार का मज़ाक बनाया है। जिस प्रधानमंत्री का नारा ‘पढ़ेगा इंडिया तभी तो बढ़ेगा इंडिया’ है, उनकी रैली के लिए बच्चों की पढ़ाई बंद करवाई गई।”
  • कांग्रेस प्रवक्ता: “बिहार में महिला सशक्तिकरण का झूठा नाटक हो रहा है। आंगनबाड़ी कर्मी जिन्हें ₹4,500 मासिक मानदेय मिलता है, उन्हें राजनीतिक रैलियों के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है।”

सत्ता पक्ष का बचाव

रैली के दौरान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बिहार में “महिला सशक्तिकरण और सुशासन” की उपलब्धियों का श्रेय NDA सरकार को दिया, जबकि प्रधानमंत्री मोदी ने “बिहार के विकास में अवरोध पैदा करने” का आरोप विपक्ष पर लगाया।

⚖️ कानूनी और प्रशासनिक विरोधाभास

  1. सुप्रीम कोर्ट का उल्लंघन: 1996 के निर्देशानुसार सरकारी संसाधनों व कर्मचारियों का राजनीतिक उपयोग प्रतिबंधित है।
  2. संविधान का अनुच्छेद 19: स्वेच्छा से सभा या संगठन में शामिल होने का अधिकार।
  3. आंगनबाड़ी कर्मियों की स्थिति: अधिकांश महिलाएं आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग से हैं। मानदेय कम होने के कारण वे प्रशासनिक दबाव का विरोध नहीं कर पातीं।

📊 तुलनात्मक विश्लेषण: “सुशासन” का दावा बनाम हकीकत

पैमाना“मंगलराज” का दावासिवान घटना की वास्तविकता
महिला सुरक्षामहिला आरक्षण व सशक्तिकरण योजनाएंआंगनबाड़ी कर्मियों पर राजनीतिक दबाव
शासन पारदर्शिताडिजिटल गवर्नेंस व भ्रष्टाचार मुक्त प्रशासनसरकारी मशीनरी का चुनावी उपयोग
कर्मचारी अधिकारसम्मानजनक वातावरण का दावाजबरन रैली में भेजकर गरिमा का उल्लंघन

💡 निष्कर्ष: “मंगलराज” या “दबंगराज”?

सिवान की यह घटना बिहार में सत्ता के वास्तविक चरित्र को उजागर करती है, जहां सरकारी कर्मचारियों—खासकर महिलाओं—को राजनीतिक हितों के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है। जब तक आंगनबाड़ी जैसे ग्रासरूट कार्यकर्ता बिना डर के अपनी असहमति जता नहीं पाते, तब तक “मंगलराज” का नारा महज राजनीतिक प्रचार बना रहेगा। विपक्ष को चाहिए कि वह इस मुद्दे को विधानसभा में उठाए और प्रभावित कर्मचारियों के बयान दर्ज कराने के लिए स्वतंत्र जांच की मांग करे।

सवाल यह है कि क्या सरकारी योजनाओं की रीढ़ बनी ये महिलाएं, सरकारी रैलियों की “भीड़” बनने को अभिशप्त हैं?

स्रोत: स्थानीय प्रशासनिक आदेश, आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं के बयान, राजनीतिक दलों की प्रतिक्रियाएं एवं Smart Khabari की रिसर्च टीम की रिपोर्ट।
रिपोर्टर: अवधेश यादव, मुख्य संपादक

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