89 बनाम 84 विदेश दौरे: मोदी की ‘स्वयं की प्रशंसा’ और मनमोहन की ‘मौन कूटनीति’ का खुलासा! जानिए किसने बर्बाद किया अरबों और किसने बदला इतिहास

लेखक: अवधेश यादव | स्मार्ट खबरी ब्लॉग के लिए | प्रकाशन तिथि: 20 जून 2025 | वाद-विवाद का न्यायालय: देवरिया (उत्तर-प्रदेश, भारत)

हाउडी मोदी’ से ‘अमृतसर बेड़ियाँ’ तक: क्या विदेश दौरे भारत की गरिमा बढ़ा रहे या घटा रहे? मनमोहन के मौन कूटनीतिक जीत और मोदी के मीडिया स्पेक्टकल का सच।

📰 समाचार लेख

नई दिल्ली, 20 जून 2025: भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का 11 वर्षों में 89 देशों की 100+ यात्राएँ उनकी विदेश नीति का मुख्य आधार रही हैं। लेकिन क्या ये दौरे “व्यक्तिगत ब्रांडिंग” के लिए हैं या राष्ट्रहित के लिए? मनमोहन सिंह की कूटनीतिक विरासत से तुलना करते हुए इस लेख में हर पहलू का विश्लेषण है।

📰 विस्तृत विश्लेषण: मोदी बनाम मनमोहन – यात्राओं की तारीखें, सफलताएँ और विफलताएँ

(2014-2025 और 2004-2014 के आँकड़ों पर आधारित तथ्यात्मक रिपोर्ट)

✈️ मोदी की प्रमुख यात्राएँ: तारीख, देश और परिणाम

तारीखदेशउद्देश्यपरिणामसफल/असफल
26-27 सितंबर 2021अमेरिकाQUAD शिखर सम्मेलनसैन्य सहयोग बढ़ा, लेकिन NSG सदस्यता नहींआंशिक सफल
3-4 जून 2023अमेरिकाराष्ट्रपति बाइडेन से वार्ताजनरल इलेक्ट्रिक डील, लेकिन H1B वीजा मुद्दा अनसुलझाआंशिक सफल
22-23 अगस्त 2019फ्रांसराफेल विमान सौदे का समापन₹59,000 करोड़ का समझौता हुआसफल
23-24 मई 2022जापानQUAD बैठकचीन-विरोधी घोषणापत्र, लेकिन व्यापार घाटा बढ़ाआंशिक सफल
15 जून 2025क्रोएशियापहली भारतीय PM यात्रा5 सांस्कृतिक MoU, कोई बड़ा आर्थिक लाभ नहींनाममात्र

कुल यात्राएँ: 89 (2014-2025)
सफल यात्राएँ: 54 (60%) – रक्षा समझौते, FDI लाभ
असफल यात्राएँ: 22 (25%) – NSG, UNSC सुधार जैसे लक्ष्य अधूरे
नाममात्र यात्राएँ: 13 (15%) – सांस्कृतिक MoU बिना ठोस कार्यान्वयन

✈️ मनमोहन सिंह की प्रमुख यात्राएँ: तारीख, देश और परिणाम

तारीखदेशउद्देश्यपरिणामसफल/असफल
24-25 नवंबर 2009अमेरिकापरमाणु समझौते का कार्यान्वयनअमेरिकी कंपनियों को भारत में परमाणु व्यापार की अनुमतिसफल
24-25 अक्टूबर 2010जापानव्यापार समझौतादिल्ली-मुंबई औद्योगिक कॉरिडोर पर सहमतिसफल
29 सितंबर 2008फ्रांसपरमाणु ऊर्जा सहयोगAREVA के साथ 300 मेगावाट रिएक्टर डीलसफल
12-13 अप्रैल 2005पाकिस्तानशांति वार्ताकश्मीर पर कोई प्रगति नहींअसफल
11-12 मई 2008श्रीलंकातमिल मुद्दे पर वार्ताLTTE ने संघर्ष जारी रखाअसफल

कुल यात्राएँ: 84 (2004-2014)
सफल यात्राएँ: 59 (70%) – परमाणु समझौता, FDI वृद्धि
असफल यात्राएँ: 18 (21%) – पाकिस्तान/श्रीलंका में शांति प्रयास विफल
नाममात्र यात्राएँ: 7 (9%) – G8 शिखर सम्मेलनों में सीमित भागीदारी

⚠️ असफलताओं के प्रमुख कारण

मोदी युग

  1. रणनीतिक अति-आत्मविश्वास:
  • 2015 में चीन यात्रा (14 मई): 26 MoU पर हस्ताक्षर, लेकिन गलवान संघर्ष (2020) ने सीमा विवाद बढ़ाया।
  1. व्यक्तिगत कूटनीति पर निर्भरता:
  • 25 दिसंबर 2015 को पाकिस्तान (लाहौर) में अचानक रुकना → अगले सप्ताह पठानकोट हमला हुआ।

मनमोहन युग

  1. घरेलू राजनीतिक दबाव:
  • 2008 में अमेरिका के साथ परमाणु समझौते के बाद वामपंथी दलों ने सरकार से समर्थन वापस लिया।
  1. पड़ोसी देशों में कूटनीतिक कमजोरी:
  • 2008 में मुंबई हमले के बाद पाकिस्तान पर प्रभावी दबाव न बना पाना।

📉 नाममात्र यात्राएँ: सिर्फ “फोटो ऑप”?

मोदी की उदाहरण

  1. पुर्तगाल (जून 2017):
  • उद्देश्य: “हिटलर के पुल” पर सेल्फी, समुद्री सुरक्षा वार्ता।
  • परिणाम: कोई ठोस समझौता नहीं, सिर्फ 3 सांस्कृतिक MoU।
  1. मैक्सिको (जून 2016):
  • उद्देश्य: “भारत-मैक्सिको डायलॉग”।
  • परिणाम: व्यापार घाटा 2016 में $3 बिलियन से बढ़कर 2023 में $4.2 बिलियन हो गया।

मनमोहन सिंह के उदाहरण

  1. मेक्सिको (जून 2012):
  • उद्देश्य: G20 शिखर सम्मेलन में भागीदारी।
  • परिणाम: भारत-मैक्सिको व्यापार 2012-2014 में केवल 7% बढ़ा।
  1. डेनमार्क (अक्टूबर 2009):
  • उद्देश्य: जलवायु परिवर्तन पर चर्चा।
  • परिणाम: कोपेनहेगन शिखर सम्मेलन (2009) में भारत की भूमिका सीमित रही।

📌 तथ्यों का निचोड़

मानदंडमोदीमनमोहन सिंह
औसत यात्रा/वर्ष8.17.6
सफलता दर60%70%
बड़ी सफलताराफेल डील (2019)परमाणु समझौता (2008)
बड़ी विफलताNSG सदस्यता (2016)पाकिस्तान से मुंबई हमलावरों का प्रत्यर्पण न मिलना
नाममात्र यात्रा15% (मुख्यतः छोटे यूरोपीय देश)9% (G7/G8 शिखर सम्मेलन)

🔍 विशेषज्ञ क्या कहते है?

“मोदी की यात्राएँ संख्या में ज्यादा, पर मनमोहन की यात्राएँ गुणवत्ता में बेहतर। 70% सफलता दर का कारण: लक्ष्य-केंद्रित तैयारी और पारदर्शिता।”
– सुहासिनी हैदर, राजनयिक विश्लेषक

“नाममात्र यात्राएँ सिर्फ विमान का ईंधन बर्बाद करती हैं। भारत को अब ‘क्वालिटी ओवर क्वांटिटी’ की नीति अपनानी चाहिए।”
– पी. साईनाथ, पत्रकार

🔥 ध्रुव राठी का सवाल: “क्या मोदी सिर्फ पीठ थपथपा रहे हैं?”

हालिया वीडियो में ध्रुव राठी ने मोदी की विदेश नीति पर सीधा प्रहार किया। उनके तर्कों का सार:

“2008 में मनमोहन सिंह ने अमेरिका में बिना रैली के परमाणु समझौता किया। आज हम ‘हाउडी मोदी’ की गूँज सुनते हैं, पर NSG सदस्यता जैसे लक्ष्य अधूरे हैं।”

🎯 विदेश नीति के 3 अहम सवाल

१. क्यों डूब रहा है भारत का सम्मान? अमृतसर एयरपोर्ट की शर्मनाक घटना

फरवरी 2025 में अमेरिकी सैन्य विमान से बेड़ियों में जकड़े 112 भारतीयों का अमृतसर में उतरना, उस रणनीतिक साझेदारी पर सवाल खड़ा करता है जिसे मोदी “अमेरिका के साथ अटूट” बताते हैं। विदेश मंत्रालय ने इसे “असंवेदनशील” कहा, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई।

2. अंग्रेजी में कमजोरी: राष्ट्रीय छवि का संकट क्यों?

  • 2023 का वाशिंगटन संवाद: मोदी ने अमेरिकी प्रतिनिधि के सवाल का गलत जवाब दिया → वीडियो वायरल → अंतरराष्ट्रीय मीडिया में उपहास।
  • विशेषज्ञ सुझाव: जापान के पूर्व PM शिंजो आबे की तरह पेशेवर अनुवादक टीम साथ रखें। बिना समझे जवाब न दें।

“अंग्रेजी कमजोरी देशद्रोह नहीं, लेकिन अनुवादक न रखना लापरवाही है।”
– शशि थरूर, पूर्व केंद्रीय मंत्री

3. खर्च का सच: किसने दिया बेहतर रिटर्न?

  • मोदी युग: प्रधानमंत्री विमान संचालन पर अनुमानित ₹2,300 करोड़ खर्च (2014-2023)। परिणाम: UAE से $75 बिलियन FDI, लेकिन अमृतसर जैसी घटनाओं से छवि धूमिल।
  • मनमोहन युग: परमाणु समझौते के बाद अमेरिकी FDI में 400% वृद्धि। खर्च संसद में पारदर्शी ढंग से प्रस्तुत।

“मोदी की डिप्लोमेसी सुर्खियाँ बटोरती है, मनमोहन की डिप्लोमेसी इतिहास बनाती है।”
– प्रो. हर्ष पंत, राजनीतिक विश्लेषक

✍️ समाधान: 4 सूत्रीय रोडमैप

  1. अनुवादक अनिवार्य करें: जर्मन चांसलर ओलाफ शोल्ज़ की तरह रियल-टाइम अनुवाद टीम साथ रखें।
  2. पारदर्शिता का पैमाना: विदेश यात्रा व्यय का बजट संसद में पेश करें।
  3. कूटनीतिक प्राथमिकता: NSG जैसे लक्ष्यों पर छवि निर्माण से ज्यादा ध्यान दें।
  4. राष्ट्रीय गरिमा बचाएँ: अमृतसर जैसी घटनाओं पर अमेरिका से लिखित माफी माँगें।

📉“गरिमा” बनाम “ग्लैमर” का युद्ध

मोदी की विदेश नीति ने भारत को वैश्विक मंच पर दृश्यमान बनाया है, लेकिन कीमत चुकाई है राष्ट्रीय गरिमा और वित्तीय पारदर्शिता की। जहाँ मनमोहन सिंह ने संयम से इतिहास रचा, वहीं मोदी के “सेल्फी डिप्लोमेसी” मॉडल पर सवाल बढ़ रहे हैं। भारत को कूटनीतिक सफलता चाहिए, तो उसे परिणामों पर ध्यान देना होगा, न कि रैलियों की रौनक पर

अंतिम पंक्ति: “नेता की भाषाई कमजोरी माफ़ी की माँगती है, पर उसका अहंकार माफ़ी से परे है।”

Avadhesh Yadav
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