मध्य पूर्व की धरती पर फिर से खून की नदियाँ बह रही हैं। तेहरान की गलियों में बमों की गड़गड़ाहट, तेल अवीव के आसमान में मिसाइलों की चीख, और बीच में फँसी मासूम ज़िंदगियाँ, जो हर धमाके के साथ टूट रही हैं। 13 जून 2025 को जब ईरान ने तेल अवीव पर 100 से ज़्यादा बैलिस्टिक मिसाइलें दागीं, तो वो सिर्फ़ शहरों को नहीं, बल्कि माँओं के दिल, बच्चों के सपने, और परिवारों की उम्मीदों को भी निशाना बना रही थीं। इस युद्ध में मरने वाले 78 ईरानी और 70 घायल इजराइली सिर्फ़ आँकड़े नहीं—ये वो लोग हैं, जिनके घर बारूद की भेंट चढ़ गए।
ये लेख सिर्फ़ युद्ध की कहानी नहीं, बल्कि उस दर्द की चीख है, जो सत्ता, तेल और हथियारों के लालच में दब रही है। हम आक्रामक और निष्पक्ष होकर उन चेहरों से नकाब उतारेंगे, जो इस आग में घी डाल रहे हैं। क्योंकि जब मासूमों का खून बहता है, तो चुप रहना गुनाह है।
इजराइल-ईरान युद्ध: आग की शुरुआत
इजराइल और ईरान की दुश्मनी कोई नई नहीं। 1979 की ईरानी क्रांति के बाद से दोनों देश छद्म युद्धों में उलझे हैं। ईरान ने हमास, हिज़बुल्लाह और हूती विद्रोहियों के ज़रिए इजराइल पर दबाव बनाया, तो इजराइल ने मोसाद के ऑपरेशनों, साइबर हमलों और वैज्ञानिकों की हत्याओं से ईरान को जवाब दिया।
2023: चिंगारी:
7 अक्टूबर 2023 को हमास के इजराइल पर हमले ने 1,200 लोगों की जान ली। इजराइल ने गाजा पर बमबारी शुरू की, जिसमें 40,000 से ज़्यादा फ़लस्तीनी मारे गए। ईरान ने इसे “ज़ायनवादी साज़िश” करार दिया और अपने समर्थित समूहों को हथियारों की खेप भेजी।
2024: आग भड़की:
अप्रैल 2024 में सीरिया में ईरानी दूतावास पर इजराइली हमले (16 मरे) ने तनाव को चरम पर पहुँचा दिया। ईरान ने पहली बार इजराइल पर सीधा मिसाइल हमला किया। फिर 2025 में इजराइल ने “ऑपरेशन राइज़िंग लायन” के तहत ईरान के परमाणु ठिकानों (इस्फ़हान, फ़ोर्डो) और मिसाइल बेस (करमानशाह, तबरीज़) को निशाना बनाया। सैटेलाइट तस्वीरें चीख-चीखकर बता रही हैं—ईरान के सैन्य ठिकाने राख में बदल गए।
ईरान का पलटवार:
13 जून 2025 को ईरान ने “ऑपरेशन ट्रू प्रॉमिस” लॉन्च किया। 100 से ज़्यादा मिसाइलें और ड्रोन तेल अवीव पर बरसे। एक इजराइली की मौत, 70 से ज़्यादा घायल, और तेल अवीव की सड़कों पर मलबे का ढेर। ईरान ने अमेरिका, ब्रिटेन और फ़्रांस को धमकी दी—हस्तक्षेप किया, तो उनके ठिकाने तबाह होंगे।
एक माँ की चीख, एक बच्चे का सवाल
तेहरान की गली में एक माँ अपनी 8 साल की बेटी ज़हरा को सीने से लगाए रो रही है। ज़हरा की वो गुड़िया, जिसे वो हर रात गले लगाकर सोती थी, अब मलबे में दबी है। इजराइली हवाई हमले में ज़हरा की साँसें थम गईं। उसकी माँ चीख रही है, “मेरी बेटी का क्या कसूर था?”
तेल अवीव में 12 साल का याक़ोव अपने पिता का इंतज़ार कर रहा है। ईरानी मिसाइलों ने उनके घर को निशाना बनाया। याक़ोव का पिता, जो सुबह उसे स्कूल छोड़ने गया था, अब अस्पताल में ज़िंदगी और मौत से जूझ रहा है। याक़ोव पूछता है, “पापा कब आएँगे?” लेकिन जवाब में सिर्फ़ सन्नाटा है।
ये युद्ध सिर्फ़ मिसाइलों और बमों का नहीं, बल्कि मासूमों के सपनों का है। हर धमाके के साथ एक परिवार टूट रहा है, एक माँ का कलेजा फट रहा है, और एक बच्चे की दुनिया उजड़ रही है।
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अमेरिका: शांति का पाखंड, युद्ध का पुजारी
अमेरिका की दोमुंही नीति इस युद्ध की सबसे बड़ी गुनहगार है। डोनाल्ड ट्रंप ने कहा, “ईरान को परमाणु बम नहीं बनाने देंगे।” IAEA की ताज़ा रिपोर्ट (जो दावा करती है कि ईरान के पास 9 परमाणु बम बनाने लायक यूरेनियम है) ने अमेरिका और इजराइल को हमले का बहाना दिया। लेकिन सवाल ये है—अमेरिका शांति चाहता है या युद्ध?
दिया लॉजिस्टिक सपोर्ट
अमेरिका के मध्य पूर्व में सैन्य ठिकाने (क़तर, बहरीन) इजराइल को लॉजिस्टिक सपोर्ट दे रहे हैं। अमेरिकी नौसेना और वायुसेना ने ईरानी मिसाइलों को रोकने में इजराइल की मदद की।
अमेरिका का असली खेल:
- हथियारों का सौदा: 2024-25 में अमेरिका ने इजराइल को $20 बिलियन के हथियार दिए। लॉकहीड मार्टिन, रेथियॉन जैसी कंपनियाँ मालामाल हो रही हैं।
- तेल की भूख: स्ट्रेट ऑफ़ होर्मुज़ पर खतरे ने तेल की कीमतें $100 प्रति बैरल के पार पहुँचा दीं। एक्सॉनमोबिल और शेवरॉन जैसी कंपनियाँ मुनाफ़े में डूब रही हैं।
- सत्ता का शतरंज: ईरान को कमज़ोर करके और इजराइल को मज़बूत करके अमेरिका मध्य पूर्व में अपना दबदबा बनाए रखना चाहता है।
रोटी सेंकने वाले: इनके चेहरों से नकाब हटाओ
इस युद्ध में हर बड़ा खिलाड़ी अपनी रोटी सेंक रहा है। आइए, इनके काले कारनामों को बेनकाब करें:
1. इजराइल:
नेतन्याहू की सरकार घरेलू संकट से घिरी थी। भ्रष्टाचार के आरोप और गाजा युद्ध ने उनकी साख डगमगा दी थी। ईरान पर हमले ने उन्हें “राष्ट्र रक्षक” की छवि दी। लेकिन परमाणु ठिकानों पर हमले और मोसाद के ऑपरेशन युद्ध को भड़काने का काम करते हैं। इजराइल का दावा है कि वो आत्मरक्षा कर रहा है, लेकिन क्या मासूमों की जान की क़ीमत पर?
2. ईरान:
सर्वोच्च नेता ख़ामेनेई की सरकार आर्थिक संकट और जनता के विरोध से जूझ रही थी। इजराइल पर हमले ने उन्हें मुस्लिम दुनिया में “नायक” बनाया। लेकिन परमाणु कार्यक्रम और मिसाइल हमले क्षेत्र को अस्थिर करते हैं। IAEA की रिपोर्ट को वो “पश्चिमी साज़िश” कहता है, लेकिन ज़हरा जैसी मासूमों का खून कौन चुकाएगा?
3. रूस और चीन:
ये देश ईरान को ढाल बनाकर अमेरिका को चुनौती दे रहे हैं। रूस ने S-400 मिसाइल सिस्टम और ड्रोन दिए, तो चीन ने तेल ख़रीदकर ईरान की अर्थव्यवस्था को ऑक्सीजन दी। उनका मक़सद? अमेरिका का ध्यान यूक्रेन और ताइवान से हटाना। लेकिन इस चक्कर में वो मध्य पूर्व को बारूद के ढेर पर धकेल रहे हैं।
4. हथियार कंपनियाँ:
लॉकहीड मार्टिन, बोइंग, और रेथियॉन इस युद्ध की सबसे बड़ी विजेता हैं। इजराइल, सऊदी अरब और खाड़ी देशों को हथियार बेचकर वो अरबों कमा रही हैं। युद्ध जितना लंबा चलेगा, उनका मुनाफ़ा उतना ही बढ़ेगा।
5. तेल कंपनियाँ:
स्ट्रेट ऑफ़ होर्मुज़ पर खतरे ने तेल की कीमतें आसमान पर पहुँचा दीं। रोज़ 17 मिलियन बैरल तेल इस रास्ते से गुज़रता है। कीमतें बढ़ने से एक्सॉनमोबिल और शेवरॉन जैसी कंपनियाँ मालामाल हो रही हैं। शांति उनके मुनाफ़े के लिए ख़तरा है।
भारत: तटस्थता की क़ीमत और एक मज़दूर का दर्द
भारत इस युद्ध में फँसा हुआ है। ईरान उसका तेल आपूर्तिकर्ता है, तो इजराइल हथियार और तकनीक देता है। तेल की कीमतें बढ़ने से भारत की अर्थव्यवस्था पर बोझ पड़ रहा है। अगर स्ट्रेट ऑफ़ होर्मुज़ बंद हुआ, तो भारत का 80% तेल आयात ठप हो सकता है।
रमेश की कहानी:
रमेश, एक मज़दूर जो दिल्ली में रिक्शा चलाता है, अब हर दिन तेल की बढ़ती कीमतों से परेशान है। उसकी कमाई का आधा हिस्सा पेट्रोल पर खर्च हो रहा है। वो कहता है, “मेरे बच्चों का पेट कैसे भरूँ? ये युद्ध हमारा नहीं, फिर हमें क्यों सजा?” रमेश जैसे लाखों भारतीय इस युद्ध की मार झेल रहे हैं।
भारतीय दूतावासों ने मध्य पूर्व में फँसे भारतीयों के लिए हेल्पलाइन जारी की हैं। एयर इंडिया ने उड़ानें रद्द कर दीं। विदेश मंत्री जयशंकर ने शांति की अपील की, लेकिन भारत की तटस्थता अब भारी पड़ रही है। अगर युद्ध बढ़ा, तो भारत को एक पक्ष चुनने का दबाव पड़ सकता है।
इंसानियत की पुकार: मासूमों का खून क्यों?
तेहरान में एक स्कूल, जो कभी बच्चों की हँसी से गूँजता था, अब मलबे का ढेर है। वहाँ की मास्टरनी फातिमा, जो बच्चों को कविताएँ सिखाती थी, अब अपने स्टूडेंट्स की लाशों को गिन रही है। तेल अवीव में एक अस्पताल, जहाँ डॉक्टर दिन-रात घायलों को बचाने की जंग लड़ रहे हैं, खुद मिसाइलों के निशाने पर है।
ये युद्ध सिर्फ़ सत्ता और तेल का नहीं, बल्कि इंसानियत का है। हर बम के साथ एक सपना टूट रहा है। हर मिसाइल के साथ एक परिवार बिखर रहा है। ज़हरा की माँ, याक़ोव का इंतज़ार, और रमेश की बेबसी—ये इस युद्ध की असली तस्वीर हैं।
युद्ध को भड़काने वाले: शांति क्यों नहीं?
- इजराइल: परमाणु ठिकानों पर हमले और मोसाद के ऑपरेशन युद्ध को भड़काते हैं। नेतन्याहू की सत्ता बचाने की भूख मासूमों की जान ले रही है।
- ईरान: मिसाइल हमले और समर्थित समूहों को हथियार देकर ईरान आग में घी डाल रहा है। ख़ामेनेई की सत्ता के लिए ज़हरा जैसी बेटियाँ कुर्बान हो रही हैं।
- अमेरिका: शांति की बातें करता है, लेकिन हथियार और मिसाइल डिफ़ेंस देकर इजराइल को उकसाता है। ट्रंप का “अमेरिका फर्स्ट” मध्य पूर्व को बारूद के ढेर पर धकेल रहा है।
- रूस-चीन: ईरान को समर्थन देकर वो अमेरिका के खिलाफ़ मोर्चा खोल रहे हैं, लेकिन मासूमों का खून उनके हाथों पर भी है।
सच को चीखने दो
भारत जैसे देश इस युद्ध की क़ीमत तेल की बढ़ती कीमतों और आर्थिक संकट के रूप में चुका रहे हैं। शांति की बातें सिर्फ़ खोखले वादे हैं, क्योंकि युद्ध मुनाफ़े का धंधा बन चुका है।
इजराइल-ईरान युद्ध सिर्फ़ दो देशों की जंग नहीं, बल्कि तेल, हथियार और सत्ता का गंदा खेल है। अमेरिका, रूस, चीन और हथियार कंपनियाँ इस आग में अपनी रोटियाँ सेंक रही हैं, लेकिन जल रहे हैं मासूम लोग—ज़हरा की माँ, याक़ोव का पिता, और रमेश जैसे लाखों मेहनतकश।