सड़क पर चालान, आसमान में आजादी?
12 जून 2025, सुबह 6 बजे। अहमदाबाद का आसमान आग का गोला बन गया। एयर इंडिया की फ्लाइट AI-456, लंदन से दिल्ली आते वक्त मेडिकल कॉलेज के हॉस्टल से टकराई। 80 से ज्यादा जिंदगियाँ खाक, सैकड़ों घायल, और अभिनव परिहार की चीखें—“आसमान से बम गिरा!” लेकिन सवाल ये नहीं कि हादसा कैसे हुआ। सवाल ये है—जब आम आदमी की बाइक का हॉर्न, हेलमेट, और गाड़ी की उम्र तक चेक होती है, तो विमानों की मनमानी क्यों? सड़क पर चालान काटने वाली पुलिस की नज़र आसमान में क्यों नहीं जाती? क्या जिंदगी सिर्फ सड़क पर कीमती है, और आसमान में सस्ती?
सच, जो सिस्टम की साख जलाता है
- हादसे का काला सच: बोइंग ड्रीमलाइनर, जो “सपनों की उड़ान” का दम भरता था, ताबूत बन गया। प्रारंभिक रिपोर्ट्स में तकनीकी खराबी की बात, लेकिन असल सवाल? DGCA और एयरलाइंस की लापरवाही। 2023 में DGCA ने खुद कबूला था कि 40% विमानों में “मामूली” रखरखाव खामियाँ थीं। मामूली? ये खामियाँ जिंदगियाँ लील रही हैं!
- पिछले हादसों का रीप्ले: कोझिकोड 2020, मंगलोर 2018—वही स्क्रिप्ट। तकनीकी गड़बड़ी, मानवीय चूक, और फिर “जाँच कमेटी” का ढोंग। लेकिन सुधार? वो तो “अगली बार” के लिए टलता रहता है।
- DGCA की लचर निगरानी: 153 एयरलाइंसें, 6000+ दैनिक फ्लाइट्स, लेकिन DGCA के पास सिर्फ 300-400 कर्मचारी। 2024 की RTI ने खोली थी पोल—25% विमानों की जाँच सिर्फ कागजों पर। फिर हादसा हो, तो “सॉरी” और “संवेदनाएँ”।
- एयरलाइंस की मक्कारी: सस्ते टिकट, फाइव-स्टार रेटिंग, लेकिन रखरखाव? वो तो “प्रॉफिट” के आड़े आता है। बोइंग की बदनामी हो रही है, लेकिन क्या एयर इंडिया का मैनेजमेंट जवाब देगा कि पुराने विमानों को क्यों उड़ाया जाता है?
सड़क पर सिपाही, आसमान में सन्नाटा
सड़क पर आम आदमी की बाइक देखते ही पुलिस की आँखें चमक उठती हैं। हेलमेट नहीं? चालान। हॉर्न खराब? चालान। ब्रेक ढीला? चालान। गाड़ी पुरानी? चालान। यहाँ तक कि नंबर प्लेट का फ़ॉन्ट गलत हो, तो भी चालान। लेकिन आसमान में? वहाँ तो एयरलाइंस को खुली छूट! विमान का इंजन पुराना? “चल जाएगा।” रखरखाव अधूरा? “कागजों पर ठीक है।” DGCA की नज़र सड़क पर तो तीखी, लेकिन आसमान में अंधी। क्यों? क्योंकि सड़क पर चालान से जेब भरती है, और आसमान में हादसे से सिर्फ “संवेदनाएँ” बटोरनी हैं।
- पुलिस का जुनून: सड़क पर बाइकवाले की गाड़ी की उम्र तक चेक होती है। 15 साल पुरानी गाड़ी? स्क्रैप कर दो! लेकिन विमान? 20-25 साल पुराने विमान बिना पूरी जाँच के उड़ रहे हैं। क्यों? क्योंकि बाइकवाला तो आसान शिकार है, लेकिन एयरलाइंस के मालिकों की जेब मोटी है।
- DGCA का ढोंग: DGCA का दावा है कि वो “विश्वस्तरीय” निगरानी करता है। लेकिन सच्चाई? 2024 में एक न्यूज़ रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि कई विमानों की जाँच सिर्फ “विश्वास” पर होती है, तथ्यों पर नहीं। सड़क पर तो ट्रैफिक पुलिस CCTV से नज़र रखती है, लेकिन आसमान में? वहाँ तो “भगवान भरोसे”!
- सरकारी नौटंकी: हादसे के बाद 48 घंटे तक चुप्पी। फिर ट्वीट—“गहरी संवेदनाएँ।” अरे, संवेदनाएँ तो ठीक, लेकिन जवाब दो—क्यों DGCA का बजट बढ़ाने की फाइल धूल खा रही है? क्यों सुरक्षा मानक सिर्फ कागजों तक सिमटे हैं? क्योंकि “विकास” में स्टैच्यू और सड़कें दिखती हैं, जिंदगियाँ नहीं।
सवाल जो सिस्टम को ललकारें
- DGCA से: कितने विमानों की जाँच कागजों पर होती है? क्यों नहीं हर विमान का रखरखाव डेटा ऑनलाइन डाला जाता, जैसे सड़क पर गाड़ियों का रजिस्ट्रेशन?
- सरकार से: सड़क पर चालान की मशीनरी इतनी तेज, तो आसमान में इतनी ढील क्यों? क्या जिंदगी की कीमत सड़क पर ज्यादा और आसमान में कम है?
- एयरलाइंस से: सस्ते टिकटों की होड़ में रखरखाव क्यों भूल जाते हो? क्या कभी कोई CEO जेल जाएगा, या सिर्फ “जाँच” के नाम पर पर्दा डाला जाएगा?
- जनता से: कब तक चुप रहोगे? सड़क पर चालान के खिलाफ आवाज़ उठाते हो, तो आसमान में जान देने के लिए तैयार क्यों? अभिनव की चीख सुनो, जो बचा, लेकिन बाकी मर गए।
क्या करें, ताकि आसमान सुरक्षित हो?
- DGCA को हिलाओ: स्टाफ बढ़ाओ, जाँच पारदर्शी करो। हर विमान का रखरखाव डेटा ऑनलाइन डालो, ताकि जनता जान सके—वो उड़ान में बैठ रही है, या ताबूत में।
- एयरलाइंस पर शिकंजा: सुरक्षा से समझौता? भारी जुर्माना, लाइसेंस रद्द। सड़क पर पुरानी गाड़ी स्क्रैप होती है, तो पुराने विमानों को क्यों छूट?
- जनता की ताकत: अभिनव की कहानी शेयर करो। सड़कों पर उतरो। क्योंकि सड़क पर चालान से जिंदगी नहीं बचती, और आसमान में “सॉरी” से मरे हुए वापस नहीं आते।
आखिरी तमाचा
तो सरकार, सुन लो। सड़क पर बाइकवाले का चालान काटते वक्त तुम्हारी आँखें चमकती हैं, लेकिन आसमान में जिंदगियाँ जल रही हैं, और तुम खामोश। ये हादसा तुम्हारी बेशर्मी का सबूत है। DGCA, जागो, वरना अगला हादसा तुम्हारी नाकामी का कफन बनेगा। और जनता, चुप्पी तोड़ो। सड़क पर हेलमेट के लिए लड़ते हो, तो आसमान में जिंदगी के लिए क्यों नहीं? सवाल उठाओ, सिस्टम को ललकारो, वरना अगली उड़ान में तुम भी “संवेदना” का ट्वीट बन जाओगे।