कोटा में फिर मातम: NEET अभ्यर्थी जीशान की आत्महत्या, 2025 का 15वां मामला; SC की फटकार के बाद भी सिस्टम ‘हैरान’

पब्लिशर: Smart Khabar News Desk | लेखक: अवधेश यादव | प्रकाशन तिथि: 29 मई 2025

कोटा, राजस्थान (28 मई, 2025): सपनों की नगरी कहे जाने वाले कोटा में एक बार फिर मातम पसर गया है। कोचिंग हब के रूप में विख्यात इस शहर में एक और युवा जिंदगी उम्मीदों के बोझ तले दबकर हमेशा के लिए खामोश हो गई। सोमवार, 26 मई की देर रात, जम्मू-कश्मीर की रहने वाली 18 वर्षीय NEET अभ्यर्थी जीशान ने अपने पीजी में पंखे से लटककर आत्महत्या कर ली।

यह हृदयविदारक घटना इस वर्ष (2025) कोटा में छात्रों द्वारा की गई आत्महत्या का 15वां मामला है, जो सुप्रीम कोर्ट द्वारा हाल ही में व्यक्त की गई गंभीर चिंताओं और राजस्थान सरकार को लगाई गई फटकार के बावजूद सामने आया है। कोटा छात्रा आत्महत्या 2025 का यह नया मामला एक बार फिर शिक्षा के इस दबाव भरे माहौल और हमारी व्यवस्था की विफलताओं पर गंभीर सवाल खड़े करता है।

आत्महत्या से पहले रिश्तेदार को दी थी सूचना

महावीर नगर पुलिस स्टेशन के सर्किल इंस्पेक्टर, रमेश काविया ने बताया कि जीशान कोटा के प्रताप चौराहे स्थित एक पीजी में रहकर मेडिकल प्रवेश परीक्षा NEET की तैयारी कर रही थी। दुखद कदम उठाने से पहले, रविवार (25 मई) को छात्रा ने अपने रिश्तेदार बुरहान से फोन पर बात की थी और आशंका जताई थी कि वह शायद आत्महत्या कर सकती है।

बुरहान ने तुरंत उसी पीजी में रहने वाली एक अन्य छात्रा ममता को फोन कर जीशान को देखने के लिए कहा। ममता जब दौड़कर जीशान के कमरे तक पहुंची, तो दरवाजा अंदर से बंद था। शोर मचाने और अन्य लोगों की मदद से दरवाजा तोड़ा गया तो जीशान फांसी पर लटकी मिली। उसे तत्काल अस्पताल ले जाया गया, जहां डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया।

पुलिस के अनुसार, छात्रा पहले कोटा में ही एक कोचिंग संस्थान से तैयारी कर रही थी, लेकिन कुछ समय पहले वह घर चली गई थी। इस बार वह वापस तो लौटी, लेकिन उसने किसी कोचिंग संस्थान में दाखिला नहीं लिया था और सेल्फ-स्टडी के माध्यम से ही तैयारी करने का निर्णय लिया था। पुलिस ने यह भी पुष्टि की है कि जिस पंखे से छात्रा ने फांसी लगाई, उसमें आमतौर पर हॉस्टलों में अनिवार्य किया गया एंटी-हैंगिंग डिवाइस नहीं लगा था।

यह स्प्रिंग-लोडेड डिवाइस फांसी लगाने की स्थिति में नीचे आ जाता है, जिससे जान बच सकती है। 2024 में ऐसे ही एक डिवाइस से एक छात्र की जान बची भी थी।

सुप्रीम कोर्ट की तल्ख टिप्पणी और सरकारी उदासीनता?

यह घटना सुप्रीम कोर्ट द्वारा 23 मई, 2025 को कोटा में छात्रों की आत्महत्याओं पर की गई तल्ख टिप्पणियों के कुछ ही दिनों बाद हुई है। जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की बेंच ने इस साल (उस समय तक) 14 छात्रों की आत्महत्या को “गंभीर” बताते हुए राजस्थान सरकार को कड़ी फटकार लगाई थी। बेंच ने पूछा था, “आप एक राज्य के तौर पर इसे लेकर क्या कर रहे हैं? स्टूडेंट्स कोटा में ही क्यों आत्महत्या कर रहे हैं?”

सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में राजस्थान सरकार से विस्तृत जवाब मांगा है, जिसकी अगली सुनवाई 14 जुलाई को होनी है। इस 15वीं घटना के बाद सरकारी तंत्र पर दबाव और बढ़ गया है कि वह केवल आश्वासन नहीं, बल्कि ठोस कदम उठाए।

कोटा में छात्रों की आत्महत्या का यह दर्दनाक सिलसिला नया नहीं है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, साल 2024 में कोटा में 17 छात्रों ने अपनी जान दी थी, जबकि 2023 में यह आंकड़ा 26 तक पहुंच गया था। ये आंकड़े उस भयावह दबाव को दर्शाते हैं जिसका सामना यहां आने वाले लाखों युवा करते हैं।

कई गुना दबाव और अधूरी सीख

मध्य प्रदेश सुसाइड प्रिवेंशन टास्क फोर्स के सदस्य और मनोचिकित्सक डॉ. सत्यकांत त्रिवेदी कोटा में हो रही इन घटनाओं पर कहते हैं, “किसी भी आत्महत्या का कोई एक कारण नहीं होता। वही परीक्षा सभी बच्चे दे रहे होते हैं। ऐसे में आत्महत्या के लिए कई फैक्टर्स जिम्मेदार होते हैं, जिसमें जेनेटिक्स, सामाजिक कारण, साथियों का दबाव (पियर प्रेशर), माता-पिता की अत्यधिक उम्मीदें और हमारी शिक्षा प्रणाली की कमियां शामिल हैं।”

डॉ. त्रिवेदी इस बात पर जोर देते हैं कि, “कहीं न कहीं हम बच्चों को यह सिखाने में नाकामयाब हो जाते हैं कि तनाव, अस्वीकृति या असफलता से कैसे निपटना है। आज बच्चा यह मानने लगा है कि उसकी शैक्षणिक उपलब्धि उसके अस्तित्व से भी बड़ी है। बच्चा तैयारी छोड़ने के लिए तैयार नहीं है, जीवन छोड़ने के लिए तैयार है। समाज ने प्रतियोगी परीक्षाओं को इतना ज्यादा महिमामंडित कर दिया है जिसकी वजह से बच्चा यह महसूस करता है कि मैं पूर्ण तभी हो सकूंगा जब कोई परीक्षा क्रैक कर लूंगा।”

क्या एंटी-हैंगिंग डिवाइस जैसे तात्कालिक उपाय काफी हैं

जीशान की मौत कोटा छात्रा आत्महत्या 2025 के बढ़ते आंकड़ों में एक और दुखद इजाफा है। यह घटना एक बार फिर उन तमाम अनसुलझे सवालों को हमारे सामने लाकर खड़ा कर देती है जिनका जवाब हम शायद जानते हैं, लेकिन स्वीकार करने से कतराते हैं। क्या एंटी-हैंगिंग डिवाइस जैसे तात्कालिक उपाय काफी हैं, या हमें कोचिंग संस्थानों के माहौल, अभिभावकों की अपेक्षाओं और समग्र शिक्षा प्रणाली के दबाव पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है?

जब तक इन मुद्दों को संबोधित नहीं किया जाता, तब तक शायद कोटा अपने सपनों के साथ-साथ त्रासदियों का भी शहर बना रहेगा। पुलिस मामले की जांच कर रही है, लेकिन असली जांच हमारे समाज और हमारी व्यवस्था की होनी चाहिए।

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