मीडिया की सनसनी: टीआरपी के लिए सच की बलि 📰

भारत-पाकिस्तान युद्ध हो या कुंभ की भगदड़, हमारे फ्रंट मीडिया की एक ही पुकार—टीआरपी चाहिए, सच जाए भाड़ में! ऑपरेशन सिंदूर (मई 2025) में जब भारत ने आतंकी ठिकानों को नेस्तनाबूद किया, तो हमारे न्यूज़ चैनलों ने गाजा और यूक्रेन के पुराने वीडियो चलाकर “भारत की जीत” का ढोल पीटा। नतीजा? दुनिया भर में भारत की हंसी उड़ी। AFP ने पोल खोल दी, और हमारी साख गंगा में तैरती लाशों की तरह बह गई। तो सवाल यह है—क्या हमारा मीडिया खबरें दिखाता है, या सर्कस चलाता है? आइए, इस सनसनीखेज नौटंकी की परतें उधेड़ें और देखें कि टीआरपी के लिए सच की कैसे बलि चढ़ रही है!

गाजा का वीडियो, भारत की जीत?

ऑपरेशन सिंदूर में भारत ने पाकिस्तान के आतंकी ठिकानों को ध्वस्त किया। लेकिन हमारे फ्रंट मीडिया ने तो कमाल कर दिया! एक चैनल ने दावा किया कि भारत ने पाकिस्तान के आधे एयरबेस उड़ा दिए। सबूत? गाजा और यूक्रेन के पुराने वीडियो! अरे भाई, अगर इतना ही जोश था, तो कम से कम वीडियो तो चेक कर लेते! AFP ने जब इन फर्जी वीडियो की पोल खोली, तो दुनिया ने भारत को नहीं, हमारे न्यूज़ चैनलों को ट्रोल किया। एक X यूजर ने लिखा, “भारत ने आतंकियों को मारा, और मीडिया ने साख को!” क्या यह पत्रकारिता है, या टीआरपी का तमाशा?

कुंभ में मीडिया का रोल भूल तो नही गए?

कुंभ मेले में जब डोनॉल्ड ट्रम्प की एंट्री मीडिया कराती है और स्नान भी करा देती है तभी इस खबर को टीवी में देखते हुए हमारे एक मित्र मुझे फोन कर कहते है कि, “देखा!”

मैंने कहा, “क्या देखा?” तो मेरे मित्र कहते है कि, “डोनाल्ड ट्रम्प कुंभ में स्नान कर रहे है।” मैंने कहा यह तो देश के लिए अच्छी बात है साथ ही मैं भी सोच में पड़ गया कि, ‘आख़िर ट्रम्प भारत मे कब आ गए? मुझे अपनी टीम पर गुस्सा आया लेकिन जब टीम ने सबूत दिया कि, ‘ट्रम्प तो अमेरिका में चुनावी रैली कर रहे है?’ तो अपने मित्र पर तरस आया कि, किस कदर मीडिया ने उसका ब्रेनवॉश कर दिया है। 

बाद में जब मीडिया की फ़जीहत होना शुरु हुई तो मीडिया का कैमरा एक आईआईटी वाले बाबा की तरफ घूम गया। इसी बीच कुंभ मेले में मीडिया सीसीटीवी कैमरों को गिनाते हुए सरकार की कसीदों का इस तरह बखान करने लगा मानो वह भी उसी पार्टी का प्रवक्ता है जिस पार्टी की सरकार सत्ता में  है।

वही जब कुंभ मेले में भगदड़ हुई और स्थानीय लोग बोले कि हजारों भगदड़ में मर गए। लेकिन फ्रंट मीडिया ने सरकारी लाइन पकड़ी—”सिर्फ तीस मरे, एक कम, न एक ज्यादा!” अरे, अगर इतनी ही सटीकता थी, तो वीआईपी स्नान की भीड़ को क्यों नहीं रोका? न्यूज़ चैनलों ने भगदड़ की खबर को डिबेट में बदला, और टीआरपी की होड़ में सच को गंगा में बहा दिया। एक चैनल ने तो बाबा का बयान दिखाया, “मरे तो मोक्ष पा गए!” वाह, क्या पत्रकारिता है!

पहलगाम हमला: आतंकवाद या डिबेट का बहाना?

पहलगाम आतंकी हमले (22 अप्रैल 2025) में जब आतंकियों ने मासूमों को निशाना बनाया, तो फ्रंट मीडिया ने क्या किया? तथ्यों की जगह डिबेट शुरू कर दी! एक चैनल ने पूछा, “पाकिस्तान का हाथ या भारत की चूक?” अरे भाई, पाकिस्तान आतंकियों को पनाह देता है, यह तो बच्चा-बच्चा जानता है! लेकिन नहीं, डिबेट में चिल्लम-चिल्ला, पैनल में हंगामा, और टीआरपी की गंगा बहती रही। पाकिस्तानी मंत्री अताउल्लाह तरार ने विदेशी मीडिया में झूठ बोला कि भारत के पास सबूत नहीं, और हमारा मीडिया? बस, स्टूडियो में चीख-पुकार!

टीआरपी का सर्कस, सच का जनाजा

हमारा फ्रंट मीडिया सच दिखाने की बजाय सनसनी बेचता है। ऑपरेशन सिंदूर में जब भारत ने आतंकियों को मारा, तो मीडिया ने “विश्व गुरु” का नारा लगाया। लेकिन जब दुनिया ने भारत को समर्थन नहीं दिया, तो कोई चैनल नहीं बोला कि हमारी विदेश नीति कहाँ चूक गई। क्यों? क्योंकि सवाल उठाने से टीआरपी नहीं मिलती! कुंभ में हजारों लाशों की बात करने की बजाय, “मोक्ष दायिनी गंगा” का राग अलापा गया। और पहलगाम हमले में आतंकियों की सजा की बात करने की जगह, डिबेट में “कश्मीर नीति” पर बहस छेड़ दी। यह पत्रकारिता नहीं, टीआरपी का सर्कस है!

सच बोलने की हिम्मत फ्रंट मीडिया से हुई गायब।

आज कोई अगर सच को तीखे अंदाज़ में कहे, तो उसे “अफवाह फैलाने वाला” करार दे दिया जाता है। लेकिन सच तो यह है कि हमारा फ्रंट मीडिया टीआरपी के लिए सच की बलि चढ़ा रहा है। गंगा में लाशें तैरें या भारत की साख डूबे, चैनलों को बस स्टूडियो में चीख-पुकार चाहिए। क्या यह वही मीडिया है, जो चौथा स्तंभ कहलाता है? या फिर यह बस टीआरपी का गुलाम बन गया है?

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क्या करें अब?

अगर हम चाहते हैं कि पत्रकारिता फिर से सच की आवाज़ बने, तो कुछ करना होगा:

  • सनसनी छोड़ें, सच दिखाएं: गाजा के वीडियो चलाने की बजाय, आतंकियों के जनाजे में पाकिस्तानी सेना की तस्वीरें दिखाएं।
  • सवाल उठाएं: विदेश नीति की चूक हो या कुंभ की लापरवाही, सरकार से जवाब मांगें।

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