अमेरिका में इतिहास रचा ‘No Kings Protests‘ में, ट्रंप की नीतियों के खिलाफ उमड़ी 70 लाख लोगों की भारी ऐतिहासिक भीड़।
अमेरिका के इतिहास ने शनिवार को एक नया अध्याय देखा। देश भर के 50 राज्यों में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की नीतियों और बढ़ती सत्तावादी प्रवृत्तियों के खिलाफ ‘नो किंग्स प्रदर्शन’ (No Kings Protest) में करीब 70 लाख लोग सड़कों पर उतर आए । यह प्रदर्शन केवल एक आंकड़ा नहीं, बल्कि अमेरिकी लोकतंत्र में जनता की आवाज का एक जबरदस्त प्रमाण था। इसने जून में हुए पहले दौर के प्रदर्शनों के रिकॉर्ड को पीछे छोड़ दिया, जब लगभग 50 लाख लोगों ने हिस्सा लिया था।
क्यों उबला अमेरिका? ‘No Kings Protest‘ की वजह जानिए
यह जनाक्रोर एकदम से नहीं उबला। प्रदर्शनकारी ट्रंप प्रशासन की कई नीतियों से नाराज हैं और मानते हैं कि देश लोकतंत्र से तानाशाही की ओर बढ़ रहा है। उनका कहना है कि 1776 में आजादी के बाद अमेरिका एक बिना राजा वाला देश बना था और उन्हें अब कोई ‘राजा’ स्वीकार नहीं है ।
- आव्रजन रैड और संघीय सेना का इस्तेमाल: डेमोक्रेटिक शासन वाले राज्यों में अवैध आव्रजन रैड और राष्ट्रीय गार्ड की तैनाती ने लोगों में रोष पैदा किया है। शिकागो के मेयर ब्रैंडन जॉनसन ने तो यहां तक कहा कि ट्रंप प्रशासन “गृहयुद्ध की पुनरावृत्ति चाहता है।”
- सामाजिक कल्याण कार्यक्रमों में कटौती: मेडिकेयर और सोशल सिक्योरिटी जैसे जनता पर निर्भर कार्यक्रमों में कटौती का प्रस्ताव भी लोगों के गुस्से की एक बड़ी वजह है।
- लोकतांत्रिक संस्थाओं पर अंकुश: प्रदर्शनकारियों का आरोप है कि ट्रंप न्यायपालिका की स्वतंत्रता, प्रेस की आजादी और शांतिपूर्ण विरोध के अधिकार पर लगातार अंकुश लगा रहे हैं।
कैसा रहा ‘No Kings Protests’ का स्वरूप? शांतिपूर्ण, पर कुछ घटनाएं भी
विशालता और व्यापकता
यह’नो किंग्स प्रदर्शन’ देश के बड़े महानगरों से लेकर छोटे कस्बों तक में देखने को मिला। आयोजकों के मुताबिक, देश भर में 2700 से ज्यादा स्थानों पर रैलियां और मार्च निकाले गए। न्यूयॉर्क, वाशिंगटन डीसी, शिकागो, अटलांटा, लॉस एंजिल्स और बोस्टन जैसे शहरों में तो लाखों की भीड़ जुटी।
अहिंसा और रचनात्मकता
आयोजन करनेवाले संगठन इंडिविजिबल प्रोजेक्ट ने इस प्रदर्शन को पूरी तरह अहिंसक रखने पर जोर दिया था । एक अनोखा पहलू प्रदर्शनकारियों द्वारा पहने गए इन्फ्लेटेबल डायनासोर, मेंढक और यूनिकॉर्न जैसे कॉस्ट्यूम थे। यह रचनात्मक विरोध पोर्टलैंड में आव्रजन विरोधी प्रदर्शनों की देन है, जिसका मकसद प्रशासन के ‘युद्धक्षेत्र’ जैसे बयानों का मजाक उड़ाना था।
विपक्ष की प्रतिक्रिया
रिपब्लिकन नेताओंने इन प्रदर्शनों को ‘अमेरिका-विरोधी रैली’ करार देते हुए आलोचना की। हाउस स्पीकर माइक जॉनसन ने भी ऐसी ही टिप्पणी की थी, जिसका जवाब देते हुए सीनेटर बर्नी सैंडर्स ने कहा, “लाखों अमेरिकी आज इसलिए नहीं आए क्योंकि वे अमेरिका से नफरत करते हैं, बल्कि इसलिए आए क्योंकि वे अमेरिका से प्यार करते हैं।”
ट्रंप का पलटवार, AI के जरिए बने ‘किंग’
राष्ट्रपति ट्रंप ने इस जबरदस्त विरोध को गंभीरता से लेने की बजाय एक विडंबनापूर्ण जवाब दिया। उन्होंने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘ट्रुथ सोशल’ पर एक AI-जनरेटेड वीडियो शेयर किया। इस 20 सेकंड के वीडियो में ट्रंप को एक फाइटर जेट के कॉकपिट में एक राजा (किंग) के तौर पर दिखाया गया है, जिसके सिर पर मुकुट है और जेट पर ‘किंग ट्रंप’ लिखा है। वीडियो में वह प्रदर्शनकारियों पर कीचड़ गिराते नजर आते हैं। इससे पहले फॉक्स न्यूज को दिए इंटरव्यू में उन्होंने कहा था, “वे मुझे राजा कह रहे हैं। मैं राजा नहीं हूं।”
पहले और अब: प्रदर्शनों के आंकड़ों में क्या फर्क रहा?
जून में हुए पहले ‘नो किंग्स प्रदर्शन’ और अक्टूबर में हुए दूसरे प्रदर्शन के आंकड़ों में उल्लेखनीय वृद्धि देखने को मिली, जो ट्रंप विरोधी भावनाओं के बढ़ने का संकेत देती है।
पहलू (Aspect) | जून 2025 का प्रदर्शन (June 2025 Performance) | अक्टूबर 2025 का प्रदर्शन (October 2025 Performance) |
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स्थानों की संख्या | 2,000 से अधिक | 2,700 से अधिक |
भाग लेने वाले लोग | लगभग 50 लाख | लगभग 70 लाख |
प्रमुख शहर | वाशिंगटन डीसी, न्यूयॉर्क, शिकागो आदि | वाशिंगटन डीसी, न्यूयॉर्क, शिकागो, अटलांटा, लॉस एंजिल्स आदि |
No Kings Protests का देश की राजनीति पर क्या पड़ेगा असर?
यह ‘नो किंग्स प्रदर्शन’ सिर्फ एक दिन की घटना नहीं है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इस तरह के जनांदोलन आने वाले समय में देश की राजनीति की दिशा बदल सकते हैं। यह प्रदर्शन अमेरिकी जनता के उस गहरे असंतोष का प्रतीक है, जो ट्रंप प्रशासन की नीतियों से पनप रहा है। भविष्य में होने वाले चुनावों में यह जनाक्रोश एक निर्णायक भूमिका निभा सकता है। अमेरिका की सड़कों पर गूंजा ‘नो किंग्स’ का नारा साफ कह रहा है कि जनता अपने लोकतांत्रिक अधिकारों के प्रति सजग है और सत्ता की मनमानी के आगे झुकने को तैयार नहीं है।