देवरिया का रुद्रपुर इलाका एक बार फिर सुर्खियों में है, जहां एक साधारण बैनर ने पूरे बाजार को हिलाकर रख दिया। इतिहास और राजनीति का यह मिश्रण देख इलाके में तनाव फैल गया।
देवरिया (उत्तर प्रदेश), 23 सितंबर: यूपी के देवरिया जिले के रुद्रपुर में मंगलवार 23 सितंबर की सुबह पुराना चौक पर लगे एक बैनर ने विवाद को जन्म दे दिया। बैनर पर लिखा था – “मुगलों का बाप छत्रपति शिवाजी महाराज”, जिसने स्थानीय लोगों में बहस छेड़ दी और भाजपा नेता पुलिस की साथ नोक छोक के बाद धरने पर बैठ गए।
बैनर की शुरुआत और विवाद की जड़
मंगलवार सुबह के समय पुरानी चौक पर यह बैनर अचानक नजर आया, जो छत्रपति शिवाजी महाराज की तारीफ में लिखा गया था। लेकिन “मुगलों का बाप” जैसे शब्दों ने कुछ लोगों की भावनाओं को ठेस पहुंचाई, जबकि दूसरे इसे ऐतिहासिक गौरव का प्रतीक मान रहे थे। जल्द ही भाजपा के स्थानीय नेता छट्ठे लाल निगम, दिलीप जायसवाल, एडवोकेट सुधांशु मोली ओझा जैसे लोग मौके पर पहुंचे। उन्होंने धरना शुरू कर दिया, दावा करते हुए कि यह बैनर शिवाजी महाराज का सम्मान है और इसे हटाना गलत होगा। सैकड़ों कार्यकर्ता उनके साथ जुड़ गए, जिससे इलाका गर्मा गया।
पुलिस की एंट्री: फोर्स तैनात, स्थिति काबू में
जैसे ही खबर फैली, रुद्रपुर थाने की पुलिस मौके पर दौड़ी आई। आसपास के थानों से अतिरिक्त फोर्स बुलाई गई, ताकि कोई अनहोनी न हो। अधिकारियों ने बताया कि वे स्थिति पर नजर रखे हुए हैं और फिलहाल शांति बनी हुई है। लेकिन धरने के चलते बाजार में सन्नाटा पसर गया, दुकानदारों ने शटर गिरा लिए। यह पहली बार नहीं जब रुद्रपुर में पोस्टर या बैनर को लेकर तनाव हुआ हो, पहले भी ऐतिहासिक व्यक्तियों के चित्रण पर बहस हो चुकी है।
नेताओं की प्रतिक्रिया और स्थानीय माहौल
भाजपा नेताओं का कहना है कि यह बैनर शिवाजी महाराज की वीरता को सलाम करने वाला है, और विरोध करने वाले इतिहास से अनजान हैं। छट्ठे लाल निगम ने कहा, “यह सम्मान की बात है, कोई अपमान नहीं।” वहीं समाजवादी पार्टी के नेता हंसराज यादव इसे भाजपा का राजनीतिक स्टंट बता रहे हैं, खासकर चुनावी मौसम में। उन्होंने कहा कि भाजपा धार्मिक सौहार्द को बिगाड़ने के लिए इसे राजनीतिक रूप दे रही है। रुद्रपुर बैनर विवाद ने सोशल मीडिया पर भी तूफान मचा दिया, जहां लोग शिवाजी महाराज की विरासत पर चर्चा कर रहे हैं। इलाके में लोग सतर्क हैं, लेकिन पुलिस की मौजूदगी से बड़ा हंगामा टल गया। इसी तरह के मामलों में पहले तेलंगाना जैसे राज्यों में प्रतिमा लगाने पर विवाद देखा गया है।