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इजरायल में भारतीय मजदूरों के साथ नस्लीय भेदभाव: जाफा में महिला ने बंकर में घुसने से रोका, कहा ‘गो बैक टू इंडिया

इजरायल में भारतीय मजदूरों के साथ नस्लीय भेदभाव: जाफा में बंकर प्रवेश को लेकर विवाद

नई दिल्ली | 19 जून 2025

चौंकाने वाला वीडियो: “गो बैक टू इंडिया” का नारा

एक वायरल वीडियो में इजरायल के ऐतिहासिक शहर जाफा में एक महिला को भारतीय मजदूरों को बमशेल्टर (सुरक्षा बंकर) में घुसने से रोकते हुए दिखाया गया है। वह “यह यहूदियों का इजरायल है” लिखे बैनर के साथ “गो बैक टू इंडिया” चिल्लाती है। यह घटना ईरान-इजरायल संघर्ष के दौरान तब हुई जब मिसाइल हमलों का खतरा सक्रिय था । वीडियो में दिख रही महिला स्थानीय इजरायली निवासी है, जिसके हाथ में हिब्रू में लिखा बैनर साफ दिखाई देता है: “זה ישראל של יהודים” (यह यहूदियों का इजरायल है) ।

जमीनी हकीकत: कैसे जी रहे हैं भारतीय श्रमिक?

  • जान जोखिम में: अधिकांश भारतीय कामगार इजरायल में कृषि और निर्माण क्षेत्र में काम करने गए थे। संघर्ष शुरू होने के बाद उनकी नौकरियाँ और आवास असुरक्षित हो गए हैं ।
  • बंकरों तक सीमित पहुँच: जाफा जैसे क्षेत्रों में स्थानीय निवासी गैर-यहूदियों (विशेषकर भारतीयों और फिलिस्तीनियों) को बंकरों में जगह न देने पर आमादा हैं। श्रमिक बताते हैं कि रात में मिसाइल हमलों के सायरन बजने पर उन्हें खुले में छिपना पड़ता है ।
  • आर्थिक संकट: कई परिवारों ने सोशल मीडिया पर बताया कि इजरायल में काम बंद होने से आय स्रोत खत्म हो गए हैं, जबकि भारत में परिजनों पर कर्ज का बोझ बढ़ रहा है ।

भारत सरकार की प्रतिक्रिया: चुप्पी या लापरवाही?

  • कोई ठोस बचाव अभियान नहीं: अब तक सरकार ने श्रमिकों को वापस लाने के लिए विशेष विमान या समुद्री मार्ग जैसी कोई योजना नहीं बनाई है।
  • परिजनों की पुकार: उत्तर प्रदेश, हरियाणा और राजस्थान के परिवार सोशल मीडिया और मीडिया के ज़रिए मदद माँग रहे हैं। कई ने PMO और विदेश मंत्रालय को पत्र भेजे हैं ।
  • दूतावास की सीमित भूमिका: तेल अवीव स्थित भारतीय दूतावास ने केवल 24×7 हेल्पलाइन जारी की है, लेकिन संकटग्रस्त श्रमिकों को ठोस सहायता नहीं मिल रही ।

तालिका: भारतीय श्रमिकों की स्थिति का सारांश

पहलूवर्तमान स्थितिप्रमुख चुनौतियाँ
सुरक्षाबंकरों तक सीमित पहुँचस्थानीय भेदभाव, मिसाइल हमले
आर्थिक हालातनौकरियाँ अस्थिरआय रुकी, भारत में कर्ज
सरकारी प्रतिक्रियाकेवल हेल्पलाइनकोई निकासी योजना नहीं

इजरायल का “भेज भाव”: मूल कारण क्या है?

  1. संस्थागत भेदभाव: इजरायल का क़ानून यहूदियों को “राइट टू रिटर्न” (वापसी का अधिकार) देता है, जबकि गैर-यहूदी विदेशियों को द्वितीय श्रेणी का नागरिक माना जाता है ।
  2. सुरक्षा को लेकर पूर्वाग्रह: स्थानीय लोगों का मानना है कि बंकरों में “पहला अधिकार” यहूदी नागरिकों का है। संघर्ष के दौरान यह सोच खुलकर सामने आई है ।
  3. राजनीतिक माहौल: नेतनयाहू सरकार के दौरान दक्षिणपंथी समूहों का प्रभाव बढ़ा है, जो विदेशी श्रमिकों के प्रति शत्रुतापूर्ण रवैया रखते हैं ।

अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया और दोहरे मानदंड

  • फिलिस्तीनियों के साथ समानता: इजरायली मीडिया “मिडिल ईस्ट आई” ने बताया कि जाफा में फिलिस्तीनियों को भी बंकर में प्रवेश से वंचित किया जा रहा है ।
  • यूरोपीय दबाव: ब्रिटेन, फ्रांस और कनाडा ने इजरायल को चेतावनी दी है कि वेस्ट बैंक में नई यहूदी बस्तियों के विस्तार पर प्रतिबंध लगा सकते हैं ।
  • विस्तारवादी नीतियाँ: 29 मई को इजरायल ने वेस्ट बैंक में 22 नई यहूदी बस्तियों को मंजूरी दी, जिसे फिलिस्तीनी प्रशासन ने “स्वतंत्र फिलिस्तीन की स्थापना को रोकने का प्रयास” बताया ।

विशेषज्ञ विश्लेषण: क्या कहते हैं मानवाधिकार संगठन?

मानवाधिकार कार्यकर्ता डॉ. अमित शर्मा के अनुसार:

“यह घटना नस्लीय श्रेष्ठता की मानसिकता को उजागर करती है। इजरायल में गैर-यहूदियों के खिलाफ संस्थागत भेदभाव दशकों से चला आ रहा है। भारत सरकार को UNHRC के माध्यम से तत्काल हस्तक्षेप करना चाहिए।”

क्या हो आगे का रास्ता?

  • भारत सरकार के लिए:
  • “ऑपरेशन गंगा” जैसा मिशन चलाकर श्रमिकों को निकाला जाए।
  • इजरायल सरकार से कड़ा विरोध दर्ज कराया जाए।
  • अंतरराष्ट्रीय समुदाय के लिए:
  • संयुक्त राष्ट्र और ILO को भेदभाव के मामले उठाने चाहिए।
  • इजरायल पर मानवाधिकार उल्लंघन के लिए प्रतिबंधों पर विचार किया जाए।
  • श्रमिकों के लिए:
  • भविष्य में संघर्ष क्षेत्रों में काम करने से पहले सरकार से सुरक्षा गारंटी लिखित में लें ।

जीवन बनाम राजनीति

इजरायल में 42,000 से अधिक भारतीय कामगार फंसे हुए हैं, जिनमें अकेले उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले से 42 लोग शामिल हैं ।

जाफा की घटना कोई पृथक मामला नहीं बल्कि एक सुनियोजित नस्लीय भेदभाव का हिस्सा है। जबकि इजरायल अपने बैंकों में नए खाता खोलने वालों को 1,200 निस्क तक का कैश बोनस दे रहा है , वहीं भारतीय श्रमिकों को बमशेल्टर तक में जगह नहीं मिल रही। यह विरोधाभास इजरायल की मानवाधिकार नीतियों पर गंभीर सवाल खड़ा करता है।

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