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मंदिर की घंटी मस्जिद की अज़ान कविता: अवधेश यादव | SmartKhabari

एक ही भगवान

— अवधेश यादव

मंदिर की घंटी, मस्जिद की अज़ान,
दोनों में बसता एक ही भगवान।

पूजा की थाली, नमाज़ का आसमान,
हर धड़कन में गूँजता एक ही संनाद।

गंगा में डुबकी, ज़मज़म का पानी,
दिल की गहराई में एक ही कहानी।
राम का नाम हो या रहीम का ध्यान,
हर रास्ते पे बसता वही सम्मान।

मंदिर की घंटी, मस्जिद की अज़ान,
दोनों में बसता एक ही भगवान।

मीरा के भजन, रूमी का तराना,
प्यार की राहें, एक सा मस्ताना।

जाति के बंधन, धर्म की दीवारें,
क्यों बनाएँ हम ऐसी तकरारें?
आंसुओं का रंग, दर्द का एक स्वर,
हर दिल में बसता है एक ही बस्तर।

मंदिर की घंटी, मस्जिद की अज़ान,
दोनों में बसता एक ही भगवान।

आओ, तोड़ दें नफरत की ज़ंजीर,
इंसानियत का जलाएँ एक चिराग़
नन्हा-सा तीर।


© लेखक: अवधेश यादव
विशेष रचना: SmartKhabari.com

सर्वाधिकार सुरक्षित। अनुमति के बिना प्रकाशन वर्जित।

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